प्रकृति की सुरक्षा में मेरी रुचि जान कर हमारे पडोस की एक बुढिया मां ने मुझे इस इलाके के कई कंदमूलों से मेरा परिचय करवाया. हम लोग लगभग 15 साल पहले यहां जमीन खरीद कर बस गये थे. उस समय बस हमारा अकेला घर था, एवं कालोनी के बचे सारें प्लाटों पर सिर्फ पानी ही पानी था. बरसात के समय बच्चे घुटने तक पानी में आतेजाते थे. बुढिया मांई कालोनी की सीमा पर पिछले 80 साल से रहती आई है.
हम ने इन सारे कंदमूलों को लाकर अपने प्लाट पर लगा कर उनको जीवित रखने की कोशिश की जिसमें हम काफी हद तक सफल रहे. आज सब ओर कालोनी है, लेकिन ये पौधे जो हर जगह दिखते थे अब हमारी कालोनी में कहीं नहीं दिखते.
इनमें सबसे उपयोगी है यह अदरख जो आप देख रहे हैं. स्वाद अदरख का है, लेकिन खुशबू कच्चे आम (केरी) का है अत: इसे आमादरख (आम-अदरख) कहा जाता है. इसकी चटनी केरी के साथ, केरी/पोदीने के साथ बहुत गजब की बनती है. आम की महक तो गजब है. अचार भी बहुत अच्छा डलता है. एक अच्छे रसोइया तो सौ काम कर सकता है इनको लेकर.
किसी जमाने में यह केरल में हर जगह मिलता था. आज किसी को मालूम भी नहीं कि यह क्या बला है. मेरी दादी की पीढी के बाद लोगों ने इसे लगभग भुला दिया है, एवं अब यह यहां लुप्त होने पर है. वनस्पतिशास्त्र का कोई ज्ञाता एक टिप्पणी द्वारा इस पर प्रकाश डाल सके तो बडा एहसान होगा. मैं यह भी जानना चाहूँगा कि क्या यह उत्तरभारत में उपलब्ध है. यदि नहीं तो अगले साल इस समय के आसपास इसके कुछ नमूने आपको भेजे जा सकते हैं जिससे आप इनको वहां उगा कर इसे नष्ट होने से बचा सकें.
अदरख तो हर जगह उपलब्ध होनेवाली चीज है, लेकिन आम-अदरख के बारे में हमें कुछ भी जानकारी नहीं है। अन्य क्षेत्रों में भी इसके प्रसार में योगदान करें तो बहुत बड़ा काम होगा।
बेंगळूरु में उपलब्ध है।
तमिल में इसे “माँगा इन्जी” कहते हैं।
कन्नडा में “माविनकाई शुन्टी” कहते हैं।
हम तो इसे कच्चे ही काट के नींबु रस और नमक छिडककर आचार के रूप में उपयोग करते हैं।
स्वाद लाजवाब होता है।
कैसे मिले यह वनस्पति हमें? और उत्तर के वातावरण मेँ पनपेगी?
अरे वाह, हमें तो ऐसे किसी कंदमूल की कोई जानकारी नहीं थी. शुक्रिया!
अरे वाह! क्या चीज बताई है आप ने। पर इसे यहाँ कोटा कैसे मंगाया जाए? चलो कोई उपाय सोचते हैं। वैसे इसे कहीं भी पार्सल कर दिया जाए तो प्राप्त करने वाला अपने यहाँ उगा सकता है। पर उस की खुशबू परदेसी मिट्टी में कायम रहेगी इस में संदेह है।
इसमे आम की महक कैसे आई जरा विस्तार से बताएं
नई जानकारी है यह तो.
मैने इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में भी देखा है। देवरिया के अपने सरकारी आवास के पिछवाड़े लगा रखा था। स्वाद पाने के पहले ही तबादला हो गया। मेरी सहज बुद्धि कहती है कि जहाँ अदरक और आम दोनो पैदा होते हों वहाँ यह भी पैदा हो जाएगा।
बहुत खूब । इसके बारे में और जानने की दिलचस्पी पैदा हो गई है। स्वाद के लिए रसना भी ललचा रही है…
शुक्रिया
क्या खूब समय में आपने इस लेख को लिखा है।
कल परसो की ही बात है जब मैने इस अदरख को याद किया था ।
५-६ साल पहले जब में छोटा सा बच्चा था तब २-३ बार इसकी चटनी मम्मी ने बनाई थी जिसकी याद हमें हर बार अदरख की चटनी खाते वक्त आती हैं।
कृपया मुझे यह बताएँ की इसे में कैसे प्राप्त कर सकता हुँ ?
धन्यवाद