अकेला चना भाड नहीं फोड सकता वाली सोच हमारे मनों में कुछ इस तरह घर कर गई है कि हम में से हरेक को लगता है कि भारतीय समाज को बदलने के लिये वह कुछ भी नहीं कर सकता. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हर कहावत हर जगह लागू नहीं होती है.
दुनियां में जितनी बडी सामाजिक, वैज्ञानिक, एवं वैचारिक क्राँतियां हुई हैं उन में से लगभग 60% से 80% क्राँतियां अकेले व्यक्तियों के कार्य के कारण हुआ है. ऐसे लोग कई साल तक अकेले ही अपना मिशन चलाते हैं. कुछ साल के बाद लोग उनके कार्य को देखते हैं एवं कुछ लोग वैचारिक रूप से उन से जुड जाते हैं. ये चार लोग क्रमश: चालीस को वैचारिक स्तर पर प्रभावित करते हैं एवं उन को अपने साथ जुडने के लिये एक कारण प्रदान करते हैं. इस तरह पांच से पचास साल में एक नई क्रांति उत्पन्न होती है.
पचास साल बहुत लम्बा काल है, एवं अधिकतर लोगों के पास इतने साल इंतजार करने का सबर नहीं है. लेकिन वे भूल जाते हैं कि उनके जीवन में वे जिन चीजों का जम कर आस्वादन कर रहे हैं वे सब उनको इसी तरह से मिले हैं. अत: जिस समाज ने, एवं जिन व्यक्तियों ने, ये सामाजिक, वैज्ञानिक, एवं तकनीकी सुविधायें हमारे लिये जुटाई हैं उनके प्रति कृतघ्नता होगी यदि हम अपनी तरफ से कम से कम एक छोटी चीज इसमें न जोडें.
मेरे बचपन में रोशनाई की गोलियां घर पर लाकर स्याही बनानी पडती थी. आज दो रुपये से लेकर पांच रुपये में लिखो-फेंको वाले बालपेन उपलब्ध है – सिर्फ इस कारण कि एक व्यक्ति ने ऐसा कलम बनाने की ठान ली जो लीक न करे. थॉमस अल्वा एडिसन ने 200,000 प्रयोग किए एवं पहला बिजली का लट्टू बनाया. आज उसके बिना जीवन असंभव है. ग्राहम बेल का टेलिफोन, मार्कोनी का रेडियो, चार्ल्स बेबेज का यांत्रिक कंप्यूटर. सब कुछ मुख्यतया एक व्यक्ति का दर्शन एवं कर्म था.
बाबा आमटे, आचार्य विनोबा भावे, महात्मा गांधी. एक व्यक्ति कैसे अनेक को प्रोत्साहित करके अपने साथ जोड सकता है एवं एक जनांदोलन की नीव डाल सकता है इसके उदाहरण हैं.
आप एकदम कहेंगे कि आप आमटे, भावे, या गांधी के स्तर के व्यक्ति नहीं है. मैं मानता हूँ. लेकिन यह न भूलें कि समाज में मेरेआपके स्तर के भी हजारों काम हैं जिनके द्वारा हम अपने स्तर पर क्रांति ला सकते हैं. एक छोटा सा उदाहरण दूँ. हम सब जानते हैं कि हिन्दी का प्रचारप्रसार होना जरूरी है. इस मामले में एक व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है. आज दस हजारों में लोग हिन्दी सीखना चाहते हैं. लगभग 1 साल पहले मैं ने “हिन्दी सीखिये” नाम से दो वीडियों यूट्यूब पर डाले थे. एक साल में, बिना विज्ञापन 70,000 से अधिक लोग इन दोनों वीडियो को देख चुके है! जी हां सत्तर हजार! कुल मिला कर एक वीडियोकेम खरीदना पडा था इसके लिये.
जरा अपने आसपास देखें! सैकडों कार्य हैं जो आप कर सकते हैं. अकेला चना भाड नहीं फोड सकता, लेकिन अकेला व्यक्ति आसमान छू सकता है.
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सच कहा आपने। आप सच मे शास्त्री जी है। नमन करता हुं आपको।
सही विचार -ठीक बात !
@जरा अपने आसपास देखें! सैकडों कार्य हैं जो आप कर सकते हैं. अकेला चना भाड नहीं फोड सकता, लेकिन अकेला व्यक्ति आसमान छू सकता है.
बिल्कुल सही बात है. हमें बस अपने अन्दर झांकना है और मुट्ठी भींचनी है.
प्रेरक लेख है शास्त्री जी ! सवाल आत्मविश्वास और एक शुरुआत करने का ही है !
आपके लेख में प्रेरणा तो मिलती ही है , साथ पुरानी यादें भी….
“मेरे बचपन में रोशनाई की गोलियां घर पर लाकर स्याही बनानी पडती थी” आज के बच्चों को बताएं , शायद विश्वास ही नही होगा .
कोरस की वे टिकियाँ ….आभार आपका! पुरानी याद दिलाने के लिए !
अकेला व्यक्ति वोट दे सकता है, एक अकेले वोट से भी सरकार गिर सकती है.
धन्यवाद, आप ने मेरी बात पर मुहर लगाई।
यह लेख बड़ा ही प्रेरणादायक है….. चलिए, आज ही से अपने सोंचे गए कार्यों को अंजाम देना शुरू कर दें।
सही कहा आपने.
यतिश जी ने जो बात कही है वो सबसे आसान काम है जो हर कोई कर सकता है. वोट तो डाला ही जा सकता है.एक बहुसंख्यक प्रबुद्ध वर्ग वोट डालने नहीं जाता और देश भुगत रहा है.
आपने सही कहा है। मेरा एक पसंदीदा शेर है-
कौन कहता है आकाश में सूराख हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
बढि्या लिखा।आभार।
अपने हिस्से का काम तो अकेले ही करना पड़ता है। कोशिश चाहे सामूहिक हो या व्यक्तिगत। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से बेहतर है कि एक कदम, छोटा ही सही, आगे बढ़ायें।
अन्धकार को क्यों धिक्कारें, नन्हा सा एक दीप जलायें।
utprerak vichar,vo bhee sahajata se.
अच्छा लेख है।
सहमत हूं आपसे. अकेले ही इंसान बहुत कुछ कर सकता है.
bhaut achha lekh likha gayaa hai