लेख 1: स्त्री भोग्या नहीं है!!
लेख 2: स्त्री को भोग्या बनाने की कोशिश!
लेख 2 पर दिनेशराय द्विवेदी जी ने एक मेराथन टिप्पणी दी है जिसका एक वाक्य है: “जब बहुत सारे बिंदु एक साथ आ जाएँ तो सार्थक बहस नहीं हो सकती।” यह उन्होंने टिप्पणियों के संदर्भ में कही है, लेकिन यह चिट्ठे पर छपने वाले आलेखों पर भी लागू होती है. इस कारण 3 लेखों के इस परंपरा में मैं ने मुख्यतया सिर्फ एक विषय प्रस्तुत किया है – कि स्त्री भोग्या नहीं है, एवं हर उस पेशे का विरोध होना चाहिये जहां भोग्या के रूप में उसका शोषण होता है. मुझे लगता है कि कोई भी पाठक मेरे इस कथन से असमत नहीं होगा.
जैसा मैं ने अपने पिछले लेखों में कहा था, बढ रहे सामाजिक अराजकत्व का एक फल है स्त्री को भोग्या के रूप में देखना, दिखाना एवं भोग्या के रूप में उसका पेशेवर (विभिन्न पेशों द्वारा) शोषण करना.
स्त्री को सही नजरिये से देखने की जरूरत एवं सही नजरिया न हो तो उसके विध्वंसक फल को अच्छी तरह समझ कर अधिकतर सभ्य समाजों ने इसके लिये तमाम तरह के आचारविचार एवं वर्जनाओं का निर्माण किया था. इन वर्जनाओं में से कुछ काफी मुख्य हैं:
1. व्यापारिक (या शोषण के) लक्ष्य के साथ स्त्री नग्नता के प्रदर्शन की मनाही
2. स्त्रियों को हर जगह पुरुषों की तुलना में अधिक सुरक्षा
3. ऐसे पेशों में स्त्रीजनों के जाने की मनाही जहां स्त्री का यौनिक शोषण होता है या होने की संभावना है
इन में से पहले दो को हम देख चुके हैं. सारे टिप्पणीकारों ने इस बात को माना कि व्यापारिक लक्ष्य के साथ स्त्री-नग्नता का प्रदर्शन गलत है एवं हर स्तर पर इसका विरोध होना चाहिये. स्त्री भोग्या नहीं है. सारे टिप्पणीकारों ने यह भी माना कि कई प्रकार के पेशों में स्त्री का जाना उचित नहीं है जैसे आर्मी की वे टुकडियां जहां लोगों को आमने सामने लडना पडता है या वे पेशे जो भावनात्मक रूप से व्यक्ति पर भयानक असर डालते हैं जैसे पशुओं के कत्लखाने, शवों की चीरफाड करने वाले पेशे, एवं अन्य जुगुप्साजनक पेशे. ऐसा सामाजिक प्रतिबंध स्त्री को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने के लिये जरूरी है.
दो टिप्पणीकारों ने जम कर मेरे दोनों लेखों का विरोध किया, लेकिन मुझे लगता है कि यह विरोध वैचारिक स्तर पर नहीं बल्कि भावनात्मक स्तर पर किया गया है. कम से कम मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि स्त्री को अनावृत करने को मैं गलत कह रहा हूँ तो उनको क्या सामाजिक आपत्ति है. स्त्री को जुगुप्साजनक पेशों में भेजने का मैं विरोध कर रहा हूँ तो उनको क्या बौद्धिक आपत्ति है. स्त्री को भोग्या बनाने का मैं विरोध कर रहा हूँ तो उनको क्या नैतिक आपत्ति है. मेरी समझ में तो यह महज विरोध के लिये किया गया विरोध है.
अब देखें मेरे तीसरे बिंदु को. हर सभ्य समाज में ऐसे पेशों में स्त्रीजनों के जाने की मनाही जहां स्त्री का यौनिक शोषण होता है या होने की संभावना है. लेकिन कोई भी समाज जब उन्नति के शीर्ष पर पहुंच जाता है तब वह आदर्शों को भूल कर व्यापारिक शोषण एवं यौनिक अराजकत्व की ओर बढने लगता है. सारे के सारे भोगविलावादी पाश्चात्य राज्य इसके आधुनिक उदाहरण हैं. रोमी साम्राज्य एवं मिस्त्र इसके पुरातन/एतिहासिक उदाहरण हैं.
जैसे जैसे हिन्दुस्तान पर पश्चिम की भोगविलावादी एवं वाणिज्यकेंद्रित संस्कार का असर हो रहा है वैसे वैसे स्त्रियों को ऐसे पेशों की ओर लुभाया जा रहा है जहां उनका यौनिक शोषन इन पेशों का मुख्य लक्ष्य है. उदाहरण के लिये बारबालाओं को ले लीजिये. जिसको शराब पीनी है वह किसी के भी हाथ से पी सकता है, अत: बारसंचालकों की यह जिद क्यों है कि सिर्फ बालायें यह कार्य सही तरह से कर सकती हैं. सवाल यह है कि क्यों स्त्रियां वहां अपने आप को अनावृत करें, एवं क्यों उन स्त्रीलंपटों के समक्ष नाचे. हर स्तर पर इसका विरोध होना चाहिये. इस तरह का हर पेशा स्त्री को बहन, मां, या आदरणीया प्रदर्शित करने के बदले उसे भोग्या या महज एक खरीदी हुई भोगविलास की वस्तु के रूप में प्रदर्शित करता है, उपयोग करता है.
देश भर में दस हजारों मसाज-पार्लर खुल गये हैं जहां सिर्फ तरुणियां इस कार्य के लिये रखी जाती हैं. तर्क यह है कि स्त्रियां यह कार्य करे तो औषधिक असर अधिक होता है. असल बात यह है कि स्त्रियां यह कार्य करें तो हरेक पार्लर को कमाई अधिक होती है क्योंकि इसका यौनिक असर अधिक होता है.
इस तरह के अनेक पेशे पनप रहे हैं जहां स्त्रियों को भोग्या समझ उनका यौनिक शोषण होता है. भारतीय समाज पतन के इस गर्त में गिर जाये उसके पहले हमें इसका विरोध करना चाहिये. वह हर पेशा जहां स्त्री को कमाई के लिये अनावृत किया जाता है उस पर प्रतिबंध लगना चाहिये. वह हर पेशा जो स्त्री के यौनिक शोषण पर आधारित है उस पर प्रतिबंध लगना चाहिये.
स्त्री भोग्या नहीं है, एवं यदि कोई व्यक्ति उल्टेसीधे तर्कों के आधार पर स्त्री के यौनिक शोषण का पक्ष लेता हैं तो वह स्त्रीस्वतंत्रता का पक्षधर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की आड में वे छुपा हआ स्त्रीविरोधी है! [समाप्त]
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सही कहा आपने,क्या पुरुष कर्मी रखने से मसाज पार्लर और बार चल नही सकते,दरअसल ऐसे पेशे में कारोबारी क्या बेचता है सब समझते है।सही लिखा आपने,आपसे पूरी तरह सहमत हूं।
अच्छी चर्चा है। थोड़ी ज्यादा ही है।
और ऐसा जब कला के नाम पर किया जाये तो जैसे आजकल फिल्मों मैं हो रहा है यहां तक की अभिनैत्री जो कि इस तरह के दृश्य करती है….स्क्रिप्ट की डिमांड पर….तो मेरे विचार से पुरुषों के साथ स्त्रियां भी बराबर की दोषी हैं
“जैसे आर्मी की वे टुकडियां जहां लोगों को आमने सामने लडना पडता है या वे पेशे जो भावनात्मक रूप से व्यक्ति पर भयानक असर डालते हैं जैसे पशुओं के कत्लखाने, शवों की चीरफाड करने वाले पेशे, एवं अन्य जुगुप्साजनक पेशे. ऐसा सामाजिक प्रतिबंध स्त्री को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने के लिये जरूरी है. ”
बहुत ही अफ़सोस हुआ की आप की नज़र मे आर्मी की गरिमा और एक ब्यूटी पार्लर मे कोई अन्तर नहीं हैं .
” स्त्री भोग्या नहीं है, एवं यदि कोई व्यक्ति उल्टेसीधे तर्कों के आधार पर स्त्री के यौनिक शोषण का पक्ष लेता हैं तो वह स्त्रीस्वतंत्रता का पक्षधर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की आड में वे छुपा हआ स्त्रीविरोधी है! ”
शत-प्रतिशत सही बात.
कुछ पुरूष स्त्री-लम्पट होते हैं और कुछ स्त्रियाँ पुरुषों को लम्पट बनाने का प्रयास कर रही हैं और कुछ पेशे भी इन दोनों को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि वहाँ पर ये दोनों ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं.
और यही बातें एक सभ्य समाज को पतन की ओर ले जाने वाली हैं, इनका हर स्तर पर विरोध होना ही चाहिए.
कुछ बातें जैसे-
1. स्क्रिप्ट की डिमांड,
2. बार-गर्ल का आसान तरीका अधिकाधिक रूपये कम समय में बना लेने का,
3. बार-टेंडर बन शराब परोसना.
बहुत ही अच्छा टॉपिक उठाया है आपने, दरअसल ध्यान से देखा जाए तो ये सोची समझी साजिश के तहत है..असल में हुआ ये की जिन दिनों पश्चिम में निस्वानी आज़ादी का आन्दोलन चल रहा था उस समय उनकी कमज़ोर राग को देखते हुए, कारोबारियों ने उनकी इस कमजोरी का भरपूर फायेदा उठाने का सोचा, उन्हें पता था की ओरतों के आने से उनके कारोबार में ग्लैमर का आना तै है..और ग्लैमर मर्द की सब से बड़ी कमजोरी है…यही ग्लैमर उनके कारोबार को ऊंचाई तक पहुँचा सकता है..और हुआ भी यही..ओरत तो इसे अपनी तरक्की समझने की खुशफहमी में जीती रही और आज तक जी रही है. लेकिन फायेदा किसका हुआ, उनसे फायदा किसने उठाया और आजतक उठा रहे हैं ये उसकी समझ में नही आया, कितनी बड़ी विडम्बना है की जिस माकबला-ऐ-हुस्न में लडकियां बिकनी में परेड कर रही होती हैं, वहाँ बैठे जज हजरात थ्री पीस सूट में उनका दीदार कर रहे होते हैं….और क्या कहूँ…
आपके सुझाव देखने में भले ही आदर्श लग रहे हों, पर ये व्यवहारिक नहीं हैं। मेरी समझ से इसका सीध सम्बंध अर्थ से है। जब तक स्त्री के हाथ में सीधे आर्थ्रिक सत्ता नहीं आती, यह क्रम चलता ही रहेगा।
@महामंत्री-तस्लीम
स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता का विरोध मैं ने कहां किया है?
@Capt . Vijay Chandel
प्रिय केप्टेन, मेरे आलेख को एक बार और ध्यान से पढें. यहां आर्मी को नहीं बल्कि अन्य कुछ पेशों को जुगुप्साजनक कहा गया है:
“या वे पेशे जो भावनात्मक रूप से व्यक्ति पर भयानक असर डालते हैं जैसे पशुओं के कत्लखाने, शवों की चीरफाड करने वाले पेशे, एवं अन्य जुगुप्साजनक पेशे. ”
मेरे परिवार में कई लोग आर्मी पृष्ठभूमि से है अत: स्वाभाविक है कि आर्मी को मैं बहुत ऊची नजर से देखता हूँ.
आज ये ब्लॉग लिंक देखा
http://blogspundit.blogspot.com/
e guru राजिव जी के ब्लॉग का हैं . एक महिला का चित्र लगा हैं जिस पर लिखा हैं THE HOME OF BLOGS PUNDIT
जिसका सीधा हिन्दी का अर्थ हैं ” ब्लोग्स पंडितो का घर ”
मेने इस का स्क्रीन शोट शास्त्री जी को ईमेल कर दिया हैं .
भारतीये सभ्यता , नारी शोषण और स्त्री के यौनिक शोषण का निरंतर विरोध कर रहे e guru राजिव से जरुर जानना चाहती हूँ की एक विदेशी महिला का चित्र किस बात का परिचायक हैं उनके ब्लॉग पर और जो कथन उस पर लिखा हैं वो क्या दर्शाता हैं .
अपने ब्लॉग पर महिला का चित्र पर्दर्शित करना और फिर भारतीये सभ्यता और संस्कृति पर इतना लंबा भाषण देना . दोहरी जिन्दगी जीने से बाहर आए मित्र , पुरूष है और वही बने रहना चाहते हैं , बने रहे पर दुसरो पर लाछन ना लागाये की वो आप की टिपण्णी से नाराज होते हैं . ये बात मे पिछली पोस्ट मे ही कह सकती थी पर शास्त्री जी की भाषण माला समाप्त हो जाए तभी आपका असली चरित्र सामने लाऊ एसा सोचा .
और शास्त्री जी आप को चित्र मिल गए होगे और अब आप को भी अपने ब्लॉग पर आप की हां मे हां मिलने वालो का असली चेहरा दिख गया होगा . कमेन्ट डिलीट होगा तो नारी ब्लॉग पर चित्र समेत जरुर आएगा अन्यथा यही रहेगा . बहुत जरुरी हैं की हम जो कहे उसको अपने ऊपर लागू करे . आत्म अनुशासन से ज्यादा कोई अनुशासन नहीं होता . परिवार और समाज मे स्त्री को अनुशासित करने की जगह अपने अंदर की गंदगी को साफ़ करे पहले , समाज अपने आप सुधर जायेगा
आज ये ब्लॉग लिंक देखा
http://blogspundit.blogspot.com/
e guru राजिव जी के ब्लॉग का हैं . एक महिला का चित्र लगा हैं जिस पर लिखा हैं THE HOME OF BLOGS PUNDIT
जिसका सीधा हिन्दी का अर्थ हैं ” ब्लोग्स पंडितो का घर ”
मेने इस का स्क्रीन शोट शास्त्री जी को ईमेल कर दिया हैं .
भारतीये सभ्यता , नारी शोषण और स्त्री के यौनिक शोषण का निरंतर विरोध कर रहे e guru राजिव से जरुर जानना चाहती हूँ की एक विदेशी महिला का चित्र किस बात का परिचायक हैं उनके ब्लॉग पर और जो कथन उस पर लिखा हैं वो क्या दर्शाता हैं .
अपने ब्लॉग पर महिला का चित्र पर्दर्शित करना और फिर भारतीये सभ्यता और संस्कृति पर इतना लंबा भाषण देना . दोहरी जिन्दगी जीने से बाहर आए मित्र , पुरूष है और वही बने रहना चाहते हैं , बने रहे पर दुसरो पर लाछन ना लागाये की वो आप की टिपण्णी से नाराज होते हैं . ये बात मे पिछली पोस्ट मे ही कह सकती थी पर शास्त्री जी की भाषण माला समाप्त हो जाए तभी आपका असली चरित्र सामने लाऊ एसा सोचा .
और शास्त्री जी आप को चित्र मिल गए होगे और अब आप को भी अपने ब्लॉग पर आप की हां मे हां मिलने वालो का असली चेहरा दिख गया होगा . कमेन्ट डिलीट होगा तो नारी ब्लॉग पर चित्र समेत जरुर आएगा अन्यथा यही रहेगा . बहुत जरुरी हैं की हम जो कहे उसको अपने ऊपर लागू करे . आत्म अनुशासन से ज्यादा कोई अनुशासन नहीं होता . परिवार और समाज मे स्त्री को अनुशासित करने की जगह अपने अंदर की गंदगी को साफ़ करे पहले , समाज अपने आप सुधर जायेगा
@rachna
आप ने कहा “कमेन्ट डिलीट होगा तो नारी ब्लॉग पर चित्र समेत जरुर आएगा अन्यथा यही रहेगा”
सारथी की टिप्पणी नीति आप जानती हैं कि (देशद्रोह, अपराधप्रेरणा एवं ईशनिंदा आदि को छोड) हम किसी का भी कमेंट नहीं मिटाते हैं.
सारथी एक बौद्धिक शास्त्रार्थ चिट्ठा है एवं हम मतभेद को छुपाने की कोशिश नहीं करते. जो वादविवाद करते हैं, वे अपना पक्ष खुद रखेंगे.
सारथी एक बौद्धिक शास्त्रार्थ चिट्ठा है एवं हम मतभेद को छुपाने की कोशिश नहीं करते. जो वादविवाद करते हैं, वे अपना पक्ष खुद रखेंगे.
yae keh kar aap apni hi post ko juthlaa rahey haen sir
jo log stri ko bhigyaa banaa rahey haen aap unko bachhaa rahey haen
मेरी टिपण्णी 9 वें नंबर पर है जो ठीक 12:00 बजे प्रकाशित हुई है.
मैं जब सुबह ‘सारथी’ पर आया था तो यहाँ पर मुझसे पहले 5, 6, 7, और 8 वें नंबर की टिप्पणियाँ ही थीं. अतः मैं किसी और टिपण्णी को नहीं देख सका.
शास्त्री जी ! ये टिप्पणियों का क्रम कुछ गड़बड़ सा क्यों है !!
1, 2, 3, 4 नंबर की टिपण्णी तो बाद में लिखी गई हैं पर वे ऊपर कैसे प्रकाशित हो गयीं हैं !! 🙁
इससे जो व्यक्ति बाद में आया होगा वह तो यही समझेगा कि मैंने भी उन टिप्पणियों को पढ़ा होगा. जबकि ये टिप्पणियाँ तो थीं ही नहीं.
समझने वाला तो ये भी समझेगा कि मैंने रचना जी की टिप्पणियों का जवाब जान-बूझकर नहीं दिया है. शायद ई-गुरु राजीव डर गया अपनी निंदा से या उसका सच खुल गया और वह कहीं भाग गया. 😉
भारत माता के लाल डरते नहीं हैं, रचना जी ! भगा-भगा के मारते हैं. 🙂
वे डरते हैं तो अपने उसूलों की सीमाओं से, अपने आदर्श-मार्ग से विचलित हो जाने के भय से. इन्हीं सीमाओं में ख़ुद को बाँधकर वे आज़ाद होकर, सीना तान कर बहादुरी से घूमते हैं, शेरों की तरह.
like a Lion, not like a fish as you said yesterday.
मैं शुरुआत उल्टे क्रम से करता हूँ यानी 4थे नंबर की टिपण्णी से।
हमारी संस्कृति में बड़ों को प्रणाम कहा जाता है और बराबर वालों को राम-राम या नमस्कार कहा जाता है।
जब मैं संस्कृत भाषा से M.A. कर रहा था तो मेरे आदरणीय गुरूजी ने मुझे सिखाया था
1. हर बड़ा प्रणाम का अधिकारी नहीं होता है, उसे नमस्कार कह कर ही आगे बढ़ें.
2. यदि कोई उम्र में छोटा हो और ज्ञान में बड़ा हो तो भी वह पैर छूने योग्य है.
अतः रचना जी, आपको नमस्कार है.
सबसे पहले तो आप को बता दूँ कि मैं आप से नाराज़ था क्योंकि कल आपने कहा था कि मैं (( shastri ji ke mehnat par naa paani daaley unki taraf sae jawaab naa dae )) तो प्रति-टिपण्णी न देने की कसम खा ली थी और ठान लिया था कि जब आप ख़ुद मांगने आएँगी तो ही मैं आपको अपनी टिपण्णी दूँगा.
अब आज आप ने कुछ माँगा है तो मैं ज़रूर दूँगा.
आपकी 4 नंबर वाली टिपण्णी कुछ यूँ है – (( सारथी एक बौद्धिक शास्त्रार्थ चिट्ठा है एवं हम मतभेद को छुपाने की कोशिश नहीं करते. जो वादविवाद करते हैं, वे अपना पक्ष खुद रखेंगे.
yae keh kar aap apni hi post ko juthlaa rahey haen sirjo log stri ko bhigyaa banaa rahey haen aap unko bachhaa rahey haen )) कल आपने मुझे रोका था यह कहकर मैं उनकी तरफ़ से टिपण्णी दे रहा हूँ, चलिए हमने मान लिया और खामोशी की चादर ओढ़ ली थी.
पर ये क्या आज जिस बात पर मुझे जवाब देना है आप उसका जवाब शास्त्री जी से मांग रही हैं !!
मेरा पक्ष रखने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है, वे ‘ब्लॉग्स पण्डित’ से किसी भी रूप में नहीं जुड़े हैं. वे पूरी तरह से मेरे ब्लॉग से अलग हैं. अतः उन्हें यह हक़ नहीं है कि मेरे ब्लॉग पर लगी किसी भी तस्वीर के बारे में कोई सफाई पेश करें.
आप सीधे ई-गुरु राजीव से मुखातिब होइए न.
शास्त्री जी ! आपकी टिपण्णी-नीति में एक कमी है.
आप को उन टिप्पणियों को भी हटा देना चाहिए, जो विषय से इतर हैं क्योंकि कभी जब कोई पुराने लेखों को पढता है तो उसके लिए लेख से जुड़ी टिप्पणियाँ ही मायने रखती हैं और विषयेत्तर टिप्पणियाँ लेख का महत्त्व और वाद-विवाद का महत्व घटा देती हैं, ध्यान भटका देती हैं.
आप ने यदि टिप्पणियाँ हटा दीं होतीं तो मुझे बहुत ज्यादा पाठक आज मिल गए होते और मुझे इसकी सख्त ज़रूरत है क्योंकि मैं पिछले 4-5 दिन से कोई लेख नहीं लिख पाया हूँ. 😉
और कब अगला लेख आएगा पता नहीं.
शास्त्री जी, आपने भी यह नहीं बताया कि सारथी चिट्ठे पर तुम्हारी प्रतिष्ठा से खेलने की कोशिश की जा रही है. कम से कम एक मेल तो कर दिया होता तो मैंने दिन में ही जवाब दिया होता. रात के 3:22 बजे लिख रहा हूँ वह भी प्रति-टिपण्णी !! 🙂
कल के लेख की अन्तिम टिपण्णी यतीश जी की रही कि मैं भूल गया कि लेख क्या था !!
इसका ध्यान रखें कि विषयांतर करने वाली टिपण्णी न प्रकाशित हो.
हिन्दी का लोगो लगाने से हिन्दी आगे नहीं बढती, !!
आप उन चिट्ठाकारों को रोमन में टिपण्णी से मना क्यों नहीं करते जो देवनागरी में लिख सकने योग्य होकर भी नहीं लिखते.
🙁
अब पहली और दूसरी टिपण्णी का जवाब एक ही साथ क्योंकि दोनों में सबकुछ समान है बस टिपण्णी-प्रकाशन का समय ही अलग है.
वैसे आप बहुत ही धैर्यवान हैं पहली टिपण्णी के बाद (जो कि संभवतः शास्त्री जी ने प्रकाशित होने से रोक दी थी) आपने पूरे 12 मिनट तक प्रकाशित होने की प्रतीक्षा की, जब नहीं हुई तो एक बार फ़िर टिपण्णी की. 🙂
अब आते हैं आपकी टिपण्णी की एक-एक पंक्ति पर, ताकि आपका हर एक दुःख-दर्द मिटा सकूं.
((आज ये ब्लॉग लिंक देखा
http://blogspundit.blogspot.com/))
धन्यवाद कि आप हमारे ब्लॉग पर आयीं और मेरे ब्लॉग के भीड़-तंत्र को और सुदृढ़ किया.
(( एक महिला का चित्र लगा हैं जिस पर लिखा हैं THE HOME OF BLOGS PUNDIT
जिसका सीधा हिन्दी का अर्थ हैं ” ब्लोग्स पंडितो का घर ” ))महिला के चित्र को मैंने नहीं बदला है बल्कि फ़िर से देखा कि क्या आपकी बात सही है !!
तो पता चला कि आपकी बात तो झूठी है महिला के चित्र पर THE HOME OF BLOGS PUNDIT नहीं लिखा था वहाँ पर तो ‘THE HOME OF BLOGS “PANDIT” ‘ लिखा हुआ है.
इन दोनों में वही अन्तर है जो भारत और अमेरिका में है. BLOGS PUNDIT (‘ब्लॉग्स पण्डित’) हिन्दी का ब्लॉग है और BLOGS PANDIT अमेरिकन भाषा का ब्लॉग है.
ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि आपकी बात झूठी निकली वरना दोनों ब्लॉग का आपसी लिंक गड़-बड हो गया होता.
और जहाँ तक इसके हिन्दी अर्थ की बात है तो वह बिल्कुल भी नहीं है जो आपने निकाला है.
इसका अर्थ है ” ब्लॉग्स के जानकार का घर “.
((मेने इस का स्क्रीन शोट शास्त्री जी को ईमेल कर दिया हैं .))जब आपने यह फोटो चुरा कर (बिना मेरी अनुमति लिए) शास्त्री जी को भेज दी तो फ़िर उनके लिए यह टिपण्णी क्यों !!
या तो यह दूसरों के लिए थी तो फ़िर इस बात आपको ज्यादा प्रमुखता से उठाना चाहिए.
नारी पर एक लेख लिखना चाहिए था.
मैं आप से कहता हूँ कि लिखें नारी पर एक लेख मेरे ब्लॉग के लिए, मुझे बहुत ही अच्छा लगेगा. यह मैं दिल से कह रहा हूँ. आप ख़ुद सोचिये एक टिपण्णी या एक लेख किसका पलडा भारी है !!
फ़िर आपके तो कई ब्लॉग हैं, जैसे आप ने एक ही टिपण्णी को दो बार प्रकाशित किया है उसी तरह से दर्ज़नों बार उस लेख को दर्जनों ब्लॉग पर प्रकाशित करें.
सच में मेरे ब्लॉग को ज्यादा लिंक की ज़रूरत है.
आज ही एक ब्लॉगर कुन्नू ने लिखा था कि ई-गुरु राजीव के ब्लॉग को लिंक कम ही मिले हैं, पर लेख बहुत बेहतरीन हैं. आपको तो पता ही है, आपने भी वहाँ पर टिपण्णी की थी. 🙂
(( भारतीये सभ्यता , नारी शोषण और स्त्री के यौनिक शोषण का निरंतर विरोध कर रहे e guru राजिव से जरुर जानना चाहती हूँ की एक विदेशी महिला का चित्र किस बात का परिचायक हैं उनके ब्लॉग पर और जो कथन उस पर लिखा हैं वो क्या दर्शाता हैं .))
थोड़ा धैर्य रखा कीजिए हड़-बड़ी में अपने मुझे भारतीय सभ्यता का विरोधी करार दे दिया है. इसे सुधार लें अन्यथा मुझे जानने वाले भी आपको झूठा कहने लगेंगे (मैं तो कह ही रहा हूँ.) और कोई भी आपकी बात सुनना ही छोड़ देगा,
फ़िर जब आप सच बोलेंगी तो भी लोग झूठ मान लेंगे.
धन्यवाद कि आप ने मुझे “नारी शोषण और स्त्री के यौनिक शोषण का निरंतर विरोधी” कहा.
पर एक बात से कुपित हुआ कि आप ने मेरा नाम सम्मान के साथ नहीं लिया है मुझे आपने e guru राजिव कहकर लिखा है. क्यों ????
क्या मेरा नाम सम्मान का हकदार नहीं ????
पिछले आलेख में मेरा नाम ए गुरु राजीव लिखा था. क्यों ????मेरा नाम ई-गुरु राजीव है आप चाहें तो मुझे E-Guru Rajeev भी कहकर बुला सकती हैं. पर e guru राजिव या ए गुरु नहीं. समझ गयीं आप !!
मैंने तो हमेशा ही आपका नाम सम्मान के साथ लिया है (रचना जी) कहकर, चाहे तो पिछले इतिहास उठा कर देख लें.
कभी भी रचनवा, रचनिया या केवल रचना भी नहीं कहा. मेरे पूरे परिवार ने मुझे अपने से बड़ों का आदर जो करना सिखाया है. अब यदि आप ने मेरा नाम सही ढंग से नहीं लिया तो मैं जवाब नहीं दूँगा, यह बात याद रखियेगा हमेशा.
आपने विदेशी महिला के फोटो का उल्लेख किया है,
मैं समझ नहीं सका कि आपको महिला के फोटो से आपत्ति है या विदेशी महिला के फोटो से आपत्ति है ??
मेरे लिए किसी भी देश की महिला हो सभी महिला ही हैं. आपकी आपत्ति समझ के बाहर है.
1. यदि विदेशी महिला है तो आप को आपत्ति है.
2. यदि भारतीय महिला की फोटो होती तो आपको आपत्ति होती.
3. यदि माता सरस्वती की फोटो पर वैसा लिख देता तो भी आप को आपत्ति होती. (ख़ुद मुझे भी, इसीलिए ऐसा नहीं किया है.)
कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो किसी भी परिस्थिति में खुश नहीं होते, आप भी उन्हीं में से लगती हैं !!
महिला की फोटो में कुछ भी बुरा नहीं है, उसने सारे कपड़े पहन रखे हैं और वह पूरी तरह से शालीन लग रही है, उसके न ही अश्लील हाव-भाव हैं. आप को आख़िर कहाँ पर आपत्ति है ?? कृपया यह बता दें तो विचार कर उसे हटाने के बारे में सोचूंगा. अब आप के मस्तिष्क में क्या चल रहा है, उसे सबके सामने रखें.
किसी का चिट्ठा उसका अपना चिट्ठा होता है और उसे हक़ है कि वह कोई भी तस्वीर या फोटो लगाए,
आपको चिट्ठा पुलीसिंग का लाइसेंस किसने दे दिया !!
यहाँ तक कि ख़ुद ब्लॉगर भी सभी को छूट देता है किसी भी तरह की फोटो या वीडियो लगाने का, फ़िर आप कौन ???
मेरे लिए तो निंदक नियरे राखिये वाली बात है,
मुझे तो अच्छा लगेगा कि लोग यह सुझाएँ कि इसमें क्या लगाएं और क्या हटायें.
आज ही किसी ने कहा कि मुख्य-पृष्ठ पर बहुत ज्यादा समान है, हटा दें.
शुक्र है कि आप ने वह फोटो देख ली वरना आप यदि अगले दिन आतीं तो उसे न पातीं.
अब तो वह संभवतः सबके दर्शनार्थ बना रहेगा.
((बहुत जरुरी हैं की हम जो कहे उसको अपने ऊपर लागू करे . आत्म अनुशासन से ज्यादा कोई अनुशासन नहीं होता . परिवार और समाज मे स्त्री को अनुशासित करने की जगह अपने अंदर की गंदगी को साफ़ करे पहले , समाज अपने आप सुधर जायेगा))
ऐसा क्या मैंने कह दिया जो मैं ख़ुद पर लागू नहीं कर पाया !!
(अपने अंदर की गंदगी को साफ़ करे पहले , नारी-उत्थान अपने आप हो जायेगा)
ऐसा तो मैं भी आप से कहूँगा बल्कि मैं सौ जगहों से ये बात आप के बारे में चिल्ला-चिल्ला कर कहूँगा यदि आप ने एक लेख नारी पर मेरे चिट्ठे के बारे में और उस लड़की की फोटो के बारे में नहीं लिखा.
प्यारी सी गुलाबी टी-शर्ट पहने और प्यारी सी मुस्कान वाली महिला की फोटो से पता नहीं आपको क्या एलर्जी हो गई. !! यदि आपको उसकी मोहक मुस्कान में वासना के कतिपय अंश दिख रहे हों तो ये सिर्फ़ आपके दिमाग की उपज है.
मेरी नज़र में वह एक प्यारी सी लड़की है.
अधनंगी या कुछ और नहीं.
भगवान् जाने आपको उसमें क्या बुरा दिख गया.
अपनी सोच को सही रखें यह ज़रूरी नहीं कि जो घटियापन आपको दिखा वही मुझे भी दिखे.
मुझे बस 5 महीने दीजिये मैंने लोगों के सैकड़ों ब्लोगों पर वह फोटो न लगवा दी तो मेरा नाम ई-गुरु राजीव नहीं,
याद रखियेगा. फिलहाल यही है, इसे याद रखियेगा. 🙂
आप ज़रा नारी पर एक लेख लिख दीजिये और बताइये कि आपको उस तस्वीर में क्या बुरा लगा, कुछ विकल्प मैं दे देता हूँ-
1. उसके कपड़े.
2. कपड़े का रंग.
3. उसकी हँसी.
4. टी-शर्ट पर लिखा वाक्य.
5. उसके बाल.
6. वाक्य के फॉण्ट
साथ ही यह भी बताइये कि कैसी फोटो वहाँ पर अच्छी लगेगी. मैं विचार कर यदि उचित समझा तो आप अपने अनुसार बदलाव पाएंगी.
Capt . Vijay Chandel की आपत्ति पढ़कर मन उदास हो गया, और यह यकीन पुख्ता हो गया की सेना में आज के भौतिकवादी माहौल में sirf औसत दर्जे की प्रतिभाएं ही आ पा रहीं हैं. जो इन्सान एक जिम्मेदार सैन्य पद पर होते हुए भी बिना ध्यान से आलेख पढ़े आपत्ति जताता हो उसे बुद्धिमान तो कतई नहीं कहा जा सकता. और टिप्पणी से यह भी ज़ाहिर है की उनमें between the lines पढने की योग्यता का आभाव है. सच में आज हमारा देश घटिया लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है. हताश हूँ!