मेरा पिछला आलेख विश्वनाथ जी का विचित्र प्रस्ताव विश्वनाथ जी के एक प्रश्न के बारे में था. इस पर उन्होंने एक मेराथन टिप्पणी दी है जिसके अंत में उन्होंने एक प्रस्ताव रखा है जिसमें चिट्ठाकारी के बारे में एकदो भारी तकनीकी गलती है. चूंकि यह गलती बहुत से चिट्ठाकार करते हैं, अत: मुझे लगा कि मैं विश्वनाथ जी को जवाब देने के द्वारा अन्य चिट्ठाकारों को भी कुछ बातें बता दी जाये. उन्होंने लिखा:
शास्त्रीजी, बहुत आभारी हूँ। एक तुच्च (और विषय से कुछ हटकर) टिप्प्णी को चुनके आपने मुखप्रष्ट पर पेश करके मेरा इतना सम्मान किया। इसकी अपेक्षा नहीं की थी मैंने। ज्ञानजीने भी ऐसा ही किया मेरे साथ कुछ दिन पहले। क्या मैं इस योग्य हूँ? हम तो एक असफ़ल चिट्ठाकार हैं।
पंकज बेंगाणी की दी हुई कड़ी पर आपको मेरे पिछले साल के कई अंग्रेज़ी और हिन्दी में लिखे हुए चिट्ठे मिल जाएंगे। केवल पंकज ने यदा कदा कोई टिप्पणी की है। उनके सिवा मैं नहीं जानता इन चिट्ठों को किसीने पढ़ा भी या नहीं।
और किसी ने टिप्पणी नहीं की। हार मानकर मैंने nukkad.info के blog विभाग में चिट्ठा लिखना बन्द कर दिया और टिप्पणीकार का रोल अपना लिया।
मज़े की बात यह है के मेरी टिप्पणीयाँ ज्यादा पढ़ी जाती हैं और ज्ञानजी, अनिताजी और आपकी कृपा से हिन्दी ब्लॉग जगत में मेरा नाम पहचाना जाने लगा है।
और लोग तो टिप्पणीकार को एक ऐसा अतिथि का दर्जा देते हैं जिनका प्रवेश घर के बरामदे तक ही सीमित है। लेकिन आपने, अनिताजी ने और ज्ञानजी ने मुझको अन्दर बुलाकर सोफ़ा पर बिठाकर सम्मान दिया है। इस कृपा के लिए मैं आप सबका आभारी रहूँगा।
अभी मेरा पक्का और full time blogger बनना संभव नहीं है। पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, दफ़्तर का काम और मेरी अन्य रुचियाँ और गतिविधियाँ मुझे रोकती हैं। मैं casual/ occasional/ half-hearted blogging करना नहीं चाहता। भविष्य में अवश्य पूरे मन से अपना अलग ब्लॉग लिखूंगा। उसके लिए मेरा पेशे से रिटायर होना अवश्य है। अभी कुछ ही साल बाकी हैं। उस दिन की प्रतीक्षा में आजकल समय काट रहा हूँ। जब मैदान में कूदने का समय आएगा, आशा है की आप सब मित्रों का सहयोग, प्रोत्साहन और तकनीकी सहायता मिलेगा। तब तक टिप्पणीकार का रोल मुझे मंजूर है और जब कभी मन हुआ तो इधर उधर अतिथी पोस्ट भेजकर full time blogging के लिए warming up exercises करता रहूंगा।
विश्वनाथ जी, एक हिन्दी चिट्ठाकार न होते हुए भी यदि ज्ञान जी, अनिता जी, प्रशांत प्रियदर्शी, एवं मैं ने आपके बारे में इतना अधिक लिखा तो इसका मतलब है कि हम सब दिल से चाहते हैं कि आप चिट्ठाकारी आरंभ कर दें, वह भी हिन्दी में. आपकी भाषा (हिन्दी) बहुत अच्छी है, एवं जो कमी है वह हम सब मिलकर ठोकठाक कर ठीक कर देंगे. दूसरी बात, आपके विचार उच्च कोटि के हैं, सुलझे हुए हैं, एवं आप उसे बहुत अच्छे तरीके से व्यक्त कर लेते हैं. अत: आपको जरूर हिन्दी चिट्ठाकारी शुरू कर देनी चाहिये.
मैं ने आपका अंग्रेजी चिट्ठा देखा. वह असफल हुआ, मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ. आपने प्लेटफार्म गलत चुना, गलत गाडी में चढे, गलत दिशा में गये – एवं आपको लगा कि आप चिट्ठाकारी नहीं कर सकते, गंतव्य स्थान पर नहीं पहुंच सकते. गलती चिट्ठाकारी की नहीं है, बल्कि गलत प्लेटफार्म पर पहुंचने के कारण हुई है.
यदि आपने ब्लागर (ब्लागस्पाट) या वर्डप्रेस पर अपना चिट्ठा बनाया होता तो यह गडबड न होती एवं आप जम कर चिट्ठाकारी कर रहे होते. आपको लगेगा कि मैं मजाक कर रहा हूँ. नहीं, यह मजाक नहीं है. जरा एक बात बताईये: यदि आप एक अच्छे से होटल में खाना मंगाये, एवं वे उसे अखबार पर परोसें, एवं जमीन पर रख आपको खाने को कहें तो आप खायेंगे या नहीं?
चिट्ठाकारी के लिये कोई भी व्याक्ति जो प्लेटफार्म चुनता है वह उसे बढाने या मिटाने के लिये पर्याप्त है. अगली बार सही प्लेटफार्म चुनें.
एक बात अभी रह गई है, एवं उसे अगल आलेख में देंगे !!! सस्नेह – शास्त्री
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आप ने विश्वनाथ जी को सही सलाह दी है। उन्हें अपना अंग्रेजी ब्लाग ब्लागर पर शिफ्ट कर देना चाहिए। चूंकि उस पर हिन्दी आलेख भी हैं तो ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत पर पंजीकृत कराया जा सकता है। वे जब भी लिखेंगे निगाह में आएँगे। टिप्पणियों की कोई कमी न रहेगी।
आपने विश्वनाथजी को सही सलाह दी …एक बात पर मैने भी गौर किया….हिन्दी ब्लागिंग और ब्लागरों के बारे में भी विश्वनाथजी संभवतः यह धारणा बनाए हुए हैं कि इनमें से ज्यादातर फुलटाइमर हैं। फुलटाइम ब्लागिंग अगर नहीं हो सकती तो सिर्फ हिन्दी में …क्योंकि यहां तो ब्लागर भूखो मर जाएगा। सभी ब्लागर किसी न किसी पेशे से जुड़े हैं और तमामा पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए ही आठ से बारह घंटे रोजी-रोटी के लिए खटते हैं । उसके बाद ब्लागिंग के लिए वक्त निकालते हैं जहां से कोई आर्थिक लाभ अभी तक तो नहीं है।
अलबत्ता कई साथियों को दफ्तर में बैठकर ब्लाग पढ़ने और टिप्पणी करने की सुविधा है। मेरे जैसे कई लोग होंगे जो न ऐसा करना चाहते हैं और न करते हैं। सो ब्लागिंग के लिए अपने खाते का वक्त ही चुराना पड़ता हैअब विश्वनाथजी अगर रिटायरमेंट के बाद ब्लागिंग की बात कह रहे हैं । मेरा भी यही मानना है कि सही गाड़ी पकड़ कर अभी जितना वक्त वे टिप्पणियों में दे रहे हैं उतना ही वक्त अपने ब्लाग पर दें तो भी काम आसान हो जाएगा।
हम सब भी विश्वनाथजी का इंतजार करेंगे…धन्यवाद ,आप दोनो को …..आपके आपसी बातचीत से हमें भी ढेर सारी जानकारियां मिली।
विश्वनाथ जी के माध्यम से अच्छी सलाह और जानकारी के लिए धन्यवाद!
शास्त्रीजी,
आप के विचार साफ़-साफ़ व्यक्त करने के लिए और उपदेश के लिए ध्न्यवाद। शायद आप ठीक कह रहें हैं कि ज्यादा से ज्यादा पाठक और टिप्पाणी के लिए मुझे blogger या wordpress पर अपना अलग खाता खोलना चाहिए था।
पर आपके शब्दों के चयन में एक मामूली सा बदलाव करना चाहूँगा।
nukkad.info को मैं “गलत” platform नहीं मानना चाहता।
वह केवल एक ऐसा मंच था जिससे मेरी जान पहचान सबसे पहले हुई थी और जो मुझे अच्छा लगा।
अंतरजाल से मैं पिछले ८ साल से परिचित हूँ और उसका लाभ उठाते आया हूँ। पर मेरी पहुँच केवल अंग्रेज़ी जाल स्थलों तक सीमित थी।
क़रीब एक साल पहले हिन्दी जालस्थलों के बारे में पता चला। यहाँ वहाँ हिन्दी जालस्थलों पर भ्रमण करना आरंभ किया।
पर कभी सक्रिय योगदान नहीं दे सका। हिन्दी में कैसे पोस्ट कर सकते हैं, कैसे टिप्पणी की जाती है, unicode क्या होता है, वह मैं जानता नहीं था।
काफ़ी पूछताच की थी अधिक जानने के लिए।
हिन्दी से अपार प्रेम है मुझे और अंतरजाल पर हिन्दी का प्रयोग करने की तीव्र इच्छा मरे मन में जागी। इत्तिफ़ाक से, श्री देबाशीष(नुक्ताचीनी), श्री शशी सिंह (पॉडभारती, ज़ी टीवी?), पंकज बेंगाणी, और संजय बेंगाणी(तरकश), से संपर्क हुआ और इन्होंने मुझे हिन्दी जालजगत में पहला कदम रखने में सहायता की और प्रोत्साहन दिए। उनका सदा के लिए मैं अभारी रहूँगा।
अंग्रेज़ी में कई ई मेल चर्चा समूहों में और फ़ोरम पर सक्रिय रहा था। पर हिन्दी में पहली बार nukkad.info से परिचित हुआ और मेरी राय में यह शायद पहला ऐसा मंच था जहाँ हिन्दी प्रेमी अंतर्जाल पर मिलकर एक दूसरे से संपर्क कर सकते थे। मैं खुशी और पूरे जोश के साथ इस मंच से जुड गया था। यहाँ प्राय: सभी लोग युवा थे जिनसे संपर्क करना मेरे लिए खुशी की बात थी। हिन्दी में लिखने की चाह की पूर्ति भी होनी लगी।
पंकज बेंगाणी पिछले डेढ साल से पूरी कोशिश में लगे हैं कि यह मंच लोकप्रिय साबित हो लेकिन दुर्भाग्य से यहाँ लोग अपना नाम रेजिस्टर करते थे पर बाद में भाग नहीं लेते थे। पंकज, मैं और कुछ तीन चार लोगों को छोड़कर, कोई भी यहाँ नियमित रूप से कुछ पोस्ट करता नहीं था।
इस मंच को लोकप्रिय बनाने के लिए धीरे धीरे इसमे अन्य सुविधाएं भी जुड़ने लगीं। पंकज ने कोई कसर नहीं छोड़ी। ब्लॉग विभाग तो बाद में आरंभ हुआ और शायद सबसे पहला ब्लॉग मेरा ही था। मेरा ब्लॉग लिखने का कारण भी पंकज का बार बार मुझे प्रोत्साहित करना ही था। ब्लॉग से बचने के लिए मेरे सभी बहानों का उत्तर उसके पास तैयार था। आखिर मुझे मानना ही पड़ा और यहाँ, इस मंच पर लिखने लगा। उस समय मेरा इरादा एक नियमित ब्लॉग्गर बनना नहीं था और आज भी नहीं है। सोचा था मेरे जैसे और भी होंगे और मिलकर हम बारी बारी से लिखेंगे । जिस समय मैंने लिखना आरंभ किया मुझे “हिट्स” की या टिप्पणियों की परवाह नहीं थी। शौकसे लिखता चला। कई महीने बाद मुझे हिन्दी ब्लॉग जगत के बारे में पता चला। ब्लॉगवाणी, नारद, वगैरह से परिचित हुआ और आप सब के बारे में जानकारी मिली।
अवश्य जब अपना ब्लॉग लिखने लगूंगा तो wordpress या blogger पर ही लिखूंगा। लेकिन तब तक एक सम्मानित अतिथि की हैसियत मुझे स्वीकार है।
मुझे खेद अवश्य है कि मेरे लिखे हुए चिट्ठे ज्यादा पढ़े नहीं गए पर इस का दोष मैं platform को नहीं देना चाहता। यदि ऐसा किया तो बेंगाणी बन्धुओं पर नाइंसाफ़ी होगी।
अंत में एक बार पुन: कहना चाहूँगा कि “गलत” platform मैंने नहीं कहा। यदि ऐसा कहता तो मुझ पर यह आरोप लग सकता है :
“नाच न जाने, आंगन टेडा” यानी कि इस सन्दर्भ में “ब्लॉग्गिंग न जाने, platform गलत”
इस सारवजनिक मंच पर मेरी प्रशंसा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
मिलते रहेंगे बार बार आपके ब्लॉग पर।
शुभकामनाएं
नुक्कड के बारें मे आप ने जो कहा उसके लिये आभार. इसके लिये जो कुछ किया गया है वह स्तुत्य है, लेकिन इसके प्रोमोटरों ने जाल-सौन्दर्यशास्त्र (नेट-इस्थेटिक्स), पठनीयता, एवं किसी चिट्ठे को प्रभावित करने वाले बहुत से कारकों को हिसाब में नहीं लिया. हिसाब में लिया होता एवं सही प्रचार किया होगा तो नुक्कड हम सब का नुक्कड बन गया होता.
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ “”पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ “”