सारथी के लेख आप का क्या कहना है? में मैं ने लिखा था कि "आज सारथी जो कुछ है वह सारथी की विशेषता नहीं बल्कि आप सब के सहयोग एवं संरक्षण का फल है!!"
अनूप शुक्ल ने (चिट्ठाचर्चा) लिखना भी बाजार की तरह लुढकायमान है में इस पर एक गजब का एक-लाईना प्रश्न के रूप में दिया है: "आप का क्या कहना है? : यही कि हमने सारथी को संरक्षण दिया?" इसे पढते ही मुझे लगा कि जो लेखक, रंगकर्मी, कलाकार, खिलाडी, राजनेता अदि जनप्रिय हो जाते हैं उनके बारे में एक महत्वपूर्ण बात पाठकों के समक्ष रखूँ.
मैं ने कई बार देखा है कि जनप्रिय हो जाने पर, किसी प्रतियोगिता में इनाम पाने पर, या किसी प्रकार का सामाजिक आदर मिलने पर कई लोग एक दम घमंड एवं दंभ से भर जाते हैं एवं आम जनता को बेकार समझने लगते हैं, उनका तिरस्कार करते हैं. लेकिन यदि उनकी कलाकृति, उनके कार्य को देखने/सराहने एवं उनको पुरस्कार/आदर देने के लिये यह समूह न होता तो क्या वे इस ऊचाई पर पहुंच पाते?
यदि लाखों दर्शक न होते तो ओलिंपिक खेलों में प्रतियोगियों को क्या मजा मिलता. एक बंद कमरे में जहां कोई आपको देखनेपरखने एवं आप के लिये ताली बजाने वाला नहीं वहां एक नहीं दस स्वर्णपदक मिल जाये तो भी वह किसी तरह की खास खुशी अपने साथ नहीं लाता है. दोचार लोग जो स्वांत: सुखाय रचना या कृति की बात करते हैं वे भी पाठक/दर्शक के अभाव में पलायन कर जायेंगे. पाठक/दर्शक के बिना कृतिकार को कोई स्थाई आनंद नहीं मिल पाता है.
"जंगल में मोर नाचा, किसने देखा" इस बात को बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त करता है. चाहे एक लेख हो, चिट्ठा हो, कलाकृति हो, किसी भी तरह की रचना हो, खेलप्रतियोगिता हो, इन चीजों की क्या कीमत रह जाती है यदि उसे देखनसमझने एवं उसकी तारीफ करने के लिये कोई कद्रदान न हो. यदि उनकी सेवा लेने के लिये कोई न बचे तो एक वकील, डाक्टर, इंजिनियर, या अध्यापक की क्या कीमत रह जाती है. इसमें कोई शक नहीं कि एक पहुंचा हुआ कलाकार या डाक्टर अपनी मेहनत एवं योग्यता के बल पर आगे बढता है. लेकिन यदि उनको उचित दर्शक, मरीज, प्रशंसक न मिले तो उनकी योग्यता एवं मेहनत बेकार हो जाती है.
अफसोस यह है कि अधिकतर लोग सफलता के शिखर छूते ही अपने महत्व को बढाचढा कर आंकते हैं लेकिन उनको यह महत्व प्रदान करने वालों को नजर अंदाज करते है. तिरस्कार भी करते हैं. कुछ साल पहले एक विद्यालयीन वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी टीम शील्ड लेकर मंच पर ही कुछ इस अंदाज में चिल्लाने लगे "हम जीत गये, हम जीत गये" जैसे कि बाकी सब बेकार हों, बेवकूफ हों, अनजान हों.
मैं एक जज था, एवं उस दिन जजों में सबसे वरिष्ठ था. मैं ने माईक पर जाकर पूछा, "तुम जीत गये. सही है. लेकिन यदि ये श्रोता एवं ताली बजा कर तुम्हारा आदर करने वाली भीड न होती तो क्या तुमको इतनी खुशी होती. अत: घमंड के साथ श्रोताओं का तिरस्कार करने के बदले यदि उनके समक्ष झुक कर आभार के दो शब्द बोलो तो तुम्हारी असली जीत होगी". बालक मेरी बात समझ गया, एक दम से माईक पर जाकर उसने यही किया — सबको आभार प्रदर्शित किया. श्रोताओं को आदर मिला, विजेता को एक नया पाठ मिला, सबकी जीत हुई.
यदि सारथी पर नियमित रूप से आने वाले पाठक न होते, टिप्पणी करने वाले मित्र न होते, चिट्ठाचर्चा द्वारा द्वारा प्रोत्साहन देने वाले चर्चाकार न होते, एग्रीगेटर न होते, अपने चिट्ठे पर सारथी की कडी देने वाले न होते, तो सारथी कभी भी इतना जानामाना एवं जनप्रिय चिट्ठा न होता. इसकी हालत "जंगल में मोर नाचा, किसने देखा" वाली होती. अत: सारथी जो कुछ बन पाया है वह पाठकों के कारण है एवं एक बार पुन: मैं उनको शत शत नमन अर्पित करता हूँ!!!
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सफलता के सोपान तय करते…. उच्चतम शिखर की ओर बढ़ते हुए…. इस तरह से आत्म-विश्लेषण, चिंतन न केवल पथिक को अपितु उससे जुडने वाले सभी स्नेही जनों…यथा..प्रशंसक, अनुयायी, प्रदर्शक, सखा और हमसफ़र के अलावा [ आपने पाठक, टिप्पणीकार, चिठ्ठाकार, प्रोत्साहक, चर्चाकार ओर एग्रीगेटर सहित कई नाम देकर संबोधित किया है ], जिनको कह सकते हैं के लिए उर्जा नवीनीकरण की एक प्रक्रिया है. यह आवश्यक केवल इस बात के लिए नहीं है बल्कि पथिक और अन्य की भूमिकाओं का सतत निर्धारण हेतु भी है. साधुवाद…!
दीप पर्व की शुभकामनाएं…!!
diwali ki hardik subhkamnayein.
सुंदर लेख | आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
शास्त्री जी
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
अनुकरणीय विचार…। हम मुग्ध हैं- आप और स्वयं पर भी।
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं…
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सारथी जी का रथ
और
अनूप जी का चिट्ठा
दोनों चलते रहें
चर्चा करते रहें
सार्थक शिक्षाप्रद लेख |
दिवाली की शुभकामनाये |
बहुत सही।
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.
जी बिल्कुल सही कहा। दुनिया में प्रतिभावानों की कोई कमी नहीं , पर यदि किसी को सफलता मिल जाती है , तो उसका श्रेय उसके पीछे खडी भीड को ही दिया जाना चाहिए। आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.जिसके पीछे भीड नहीं खडी हो , उसकी प्रतिभा का क्या महत्व।
सारथी जी का रथ और अनूप जी दोनों ही महान हैं. आप दोनों की दीपावली मंगलमय हो. ई-गुरु राजीव और ‘ब्लॉग्स पण्डित’ की तरफ़ से ढेरों शुभकामनाएं.
सहमत हूँ.
आप ने एक दम सही बात की।
सत्य वचन. अर्थपूर्ण विवेचना.
आपकी विनम्रता और ऊँचे विचार से प्रभावित हूँ।
हम कामना करते हैं कि आपको और अधिक सफलता मिले।
सही कह रहे हैं। और सौ पर्सेंट सहमत हूं।
क्यो की घमंड टूटने मे भी देर नही लगती
मेरी शुभकामनाएं !