मेरी मां मेरी दुश्मन है 001

प्रश्न: शास्त्री जी मेरी समस्या बडी कठिन है, एवं आप ही मेरा सही मार्गदर्शन करें. मैं 24 साल का हूँ. मैं जब 2 साल का था तब पिताजी गुजर गये. इन 24 सालों में मेरी मां ने कठोर परिश्रम कर,  बडे ही प्यार से मुझे पाला है. कभी भी मुझ से कोई काम नहीं करवाया. मेरे कपडे तक आज भी वे खुद धोती हैं. घर आने में मुझे देर हो जाती है तो वे बिन खाना खाये मेरा इंतजार करती रहती हैं. लेकिन यह सब एक दिन बदल गया.

मैं एक बैंक में काम करता हूँ. एक हफ्ते पहले एक महिला कर्मचारी मेरे ब्रांच में तात्कालिक ड्यूटी पर आई एवं एक नजर में हम दोनों का प्यार हो गया. मैं ने उससे शादी का प्रस्ताव किया एवं बिन मांबाप से पूछे ही उस ने मुझ से शादी करने का वचन दे दिया.

दुर्भाग्य से वह मेरे जाति की नही है, पर मुझे निश्चय था कि मेरी मां उसे स्वीकार करे लेंगी. लेकिन मामला हुआ एकदम उलटा. मां इस बात पर बुरी तरह भडक गईं एवं तबसे उन्होंने ढंग से खानापीना भी बंद कर दिया है.

एक तरफ मैं उस लडकी को छोड नहीं पा रहा, पर दूसरी ओर मां मेरी दुश्मन बनी हुई हैं. मैं उस लडकी के बिना नहीं रह सकता.  मैं क्या करूं कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. आपका — नवीन

उत्तर: नवीन, तुम ने यह अच्छा किया कि पानी सर के ऊपर पहुंचने के पहले परामर्श लेने का सोच लिया. किसी भी विषय पर सोचते समय एक से दो भले रहते हैं. प्रश्न में काफी अतिरिक्त जानकारी देने के लिये आभार! उस में से सिर्फ जरूरी बातों को इस आलेख में दे रहा हूँ.

सबसे पहले तो तुम्हारे आखिरी सवाल को देखते है: "मैं क्या करूं कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे". स्पष्ट है कि तुम चाहते हो कि मां के विरोध के बावजूद शादी करना चाहते हो और मुझ से उम्मीद करते हो कि मैं तुम को इसका कोई आसान सा तरीका बता दूँ.

सबसे पहले तो यह बता दूँ कि जिस तरह डाक्टर मरीज की इच्छा की दवा नहीं बल्कि उसके मर्ज की दवा देता है उसी प्रकार मैं जो सुझाव दूँगा वह असल मर्ज के इलाज के लिये होगा, न कि तुमको कोई "चीप एंड बेस्ट"  गुर सुझाने के लिये.

तुम ने लिखा कि यह कन्या सिर्फ एक हफ्ते पहले ही तुम्हारे दफ्तर में आई है और नजर चार होते ही तुम को उससे प्यार हो गया. मुझे ऐसा लगता है कि गुड्डे गुडिया के काल्पनिक स्तर से ऊपर उठ कर तुम ने प्यार, विवाह एवं परिवार को देखने की कोशिश नहीं की. न ही अपनी मां के त्याग को वास्तविकता के चश्मे से देखने की कोशिश की.

तुम ने जिस कन्या के ऊपर जान छिडक दिया है उससे उसकी पृष्ठभूमि, परिवार आदि के बारे में पूछे बिना ही तुम ने विवाह का प्रस्ताव रख दिया. क्या तुम ने कभी सोचने की कोशिश की कि विवाह से पहले कई बातों में तालमेल जरूरी है. तुम ने निम्न बातों को एकदम नजरअंदाज कर दिया:

1. लडकी के परिवार के लोग किस प्रकार के लोग हैं. विवाह पश्चात उन से तुम्हारी निभेगी या नहीं, क्योंकि हर विवाह में कम से कम दो परिवार जुडते हैं.

2. तुम कहोगे कि विवाह पश्चात यदि उसके परिवार के लोग तुमको नहीं जंचे, यदि वे ऐसे लोग हैं जो सामाजिक मर्यादाओं का पालन नहीं करते, यदि वे अपराधी किस्म के लोग है, आदि तो तुम उनको नजरअंदाज कर दोगे. लेकिन क्या वह कन्या अपने मां बाप, भाईबहन को नजरअंदाज कर सकेगी. क्या इस तरह तुम्हारे और उस में तालमेल के बदले खीचातानी नहीं शुरू हो जायगी.

3. सच कहा जाये तो तुम को उस कन्या के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है. तुम उसके चेहरे, शरीर या हाव भाव  को देख एकदम बेसुध हो गये हो.

क्रमश:

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Author: Super_Admin

9 thoughts on “मेरी मां मेरी दुश्मन है 001

  1. बहुत अच्‍छी सलाह दी है आपने। दो चार दिन की मुलाकात जीवनभर मां का प्‍यार देनेवाली से बडी कैसे हो सकती है ?

  2. शास्त्री जी प्रश्न ऎसा है कि एकतरफ़ा जवाब उचित नही जान पड़ता। अतः मैने यही सवाल अपने बेटे से किया जो १७ साल का है, उसने जो कहा मै लिख रही हूँ,” यह जरूरी नही की उसे प्यार न हुआ हो, प्यार एक नजर में भी हो जाता है, और फ़िर आजकल जात-पात के क्या मायने हैं है तो आखिर इंसान ही, लड़की अच्छी है तो माँ भी मान ही जायेगी, जो माँ अपने बेटे से इतना प्यार करती है दुश्मन कैसे हो सकती है? उसे एक बार कोशिश करनी चाहिये माँ से इस बारे में जिद नही,बेटे की बात मुझे भी उचित लगी। शायद माँ मान जाये। हो सकता है पुराने विचारों के रहते माँ न माने तो उसे अपनी माँ की खातिर अपने प्यार को भूला देना चाहिये। क्योंकि प्यार का दूसरा नाम बलिदान भी है।

  3. बिल्कुल सही बात, माँ बड़ी है, माँ का प्यार बड़ा है. और एक नज़र में प्यार नहीं आकर्षण ही होता है. जरूरत है इन दोनों को सही ढंग से समझने की. आजकल की फिल्में और बाज़ार भी यह अन्तर मिटाते जा रहे हैं, आख़िर उन्हें भोगवाद को जो फैलाना है ताकि फिल्में चल पायें और बाजारवाद भी.

  4. माँ का प्यार और उस लड़की के प्यार की तुलना कर रहा है यह लड़का . अफ़सोस माँ का संघर्ष माँ की इच्छा को जो भूल जाते है वह भी याद नहीं रखे जाते . आजकल वासना ममता पर हावी हो ही जाती है

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