कई चिट्ठाकार मित्र पत्रव्यवहार करते समय एक महत्वपूर्ण बात भूल जाते हैं जिस कारण उनको काफी नुक्सान होता है. पढिये इस आलेख में इस बात का एक विवरण !!
जब मैं चिट्ठाकारी में आया तब हिन्दी में कुल मिला कर 500 से कम चिट्ठे रहे होंगे एवं चिट्ठाकारों की संख्या 200 से नीचे रही होगी. उस समय किसी भी मित्र के चिट्ठे का जालपता याद रखना आसान था. उस समय यदि चिट्ठाकार का नाम आनंद, चिट्ठे का नाम विकृति, एवं चिट्ठे का जालपता www.X3pn5dCqd.com होता तो भी तीनों विपरीत चीजों को याद रखने में कोई परेशानी नहीं होती थी. कुल मिलाकर बीस पच्चीस चिट्ठे ही तो थे काम के जिनको याद रखना पडता था.
आज 5000 के करीब चिट्ठे हो गये हैं जिन में कम से कम 500 अति उत्तम चिट्ठे हैं. लेकिन कोई अतिमानव भी इन 500 के जालपते नहीं याद रख सकता है. चिट्ठाकारों ने भी याद रखने की इस प्रक्रिया को कठिन बना दिया है क्योंकि बहुत लोगों के चिट्ठे के नाम एवं जालपते में कोई भी संबंध नहीं है. यह एक भारी गलती है जिसे समय रहते सुधारना अच्छा है.
इस समस्या का एक छोटा सा हल यह है कि चिट्ठाकार मित्र जब भी अन्य चिट्ठाकारों को ईपत्र भेजें तो उसके अंत में अपने सारे, या अपने महत्वपूर्ण चिट्ठों के जालपते जोड दें. या सक्रिय कडियां जोड दें. सारी ईमेल कंपनियां "हस्ताक्षर" जोडने की सुविधा देती है. एक बार आप हस्ताक्षर फाईल बना लें तो अपने आप हर पत्र के साथ यह जुडता चला जाता है.
मुझे कई बार पत्र मिलते है "शास्त्री जी, मेरी नई रचना पर अपनी राय जरूर दें". इस तरह के किसी भी पत्र को मैं कभी भी नजरअंदाज नहीं करता. लेकिन वे मित्र अपने चिट्ठे का जालपता देना कई बार भूल जाते हैं. फल यह है कि इच्छा होते हुए भी कई बार उन चिट्ठों पर जा नहीं पाता क्योंकि उस जालमित्र को पांच मिनिट का सहयोग देने के लिये उनका जालपता ढूढने में पन्द्रह मिनिट खपाना पडता है.
कृपया अपने हर ईपत्र के अंत में अपना जालपता जरूर जोडें. पाठक उस पर चट्का लगा कर आपके चिट्ठे पर चला जायगा. यदि आप हस्ताक्षर में अपना जालपता नहीं देते तो हर बार आप एक पाठक खो देते हैं.
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बिल्कुल सही बात है. मार्गदर्शन देने के लिए आभार.
सही कहा.. मैनें भी ऐसा करना आरंभ कर दिया है.
बहुत अच्छी बातें बतायी आपने। धन्यवाद।
आदरणीय सारथीजी,
सादर प्रणाम!
ईपत्र —कई चिट्ठाकारों की गलती!सरजी!आपकी बात सोलाह आन्ने सच्च है!आप लोग चिठ्ठाजगत के माई बाप है,और हम बच्चे!
आपको तो हमेशा बच्चो को अगुली पकड कर चलाना सीखाना ही पडेगा! और आप को एक दिन खुशी होगी की यह बच्चे अपने पैरो पर खडे होकर चलने लगेगे। तब ब्लोग जगत मे नई क्रान्ति का सुत्रपात्त होगा और आप बडो का सिना खुशी से फुला नही समाऐगा। मुझे याद है मेरा ब्लोग “हे प्रभु यह तेरापन्थ” कि शुरुआत मे आपने मुझे बधाई दी थी और आपने मेरा होसला अफजाई की थी मै आपका तह दिल से अभार व्यक्त करता हु। आप से अनुरोध है आप अपना कुच्छ समय हम जैसे नोसीखीये चिठ्ठाकरो पर क्रिया प्रतिक्रिया पर दे तो आपका बडा ही आभार होगा! एक बार फिर सविनय प्रणाम एवम आपके दीर्ध आयु की मगल कामना करते हुऐ।
आपका अपना
महावीर बी सेमलानी” भारती”
HEY PRABHU YEH TERA PATH
http://ctup.blog.co.in
सलाह सही है। पर इस का पालन तो हम बहुत पहले से करते आ रहे हैं।
शास्त्री जी नमस्कार
आपकी बहूमूल्य टिप्पणी मिली तो उत्साहवर्धन हुआ। धन्यवाद
आपके कहे अनुसार दोनों साइडबार में एडसेंस लगा लिया है पर फिर भी कोई खास फर्क नहीं लगा। इस बारे में अगर कुछ और सुझाव दे सकें तो मेहरबानी होगी।हिंदी लिखने में बडी दिक्कत होती है । तख्ती का प्रयोग करता हूँ। कोई अच्छा उपाय हो तो सुझाएँ। आभारी रहूँगा।
अच्छी सलाह दी.ऐसे ही हमारा मार्गदर्शन करते चलें. आभार.
सभी नये चिठ्ठो को आपकी टिप्पणी मिलती है । मुझे भी मिली । यह मार्गदर्शन हमेशा ही मिले यही कामना है
aapki salaah sar maathe par..thanx
बहुत सुन्दर सलाह है शास्त्री जी। यह बात ब्लॉगर को बहुत माइलेज दे सकती है।
SAHEE BAAT HAI
बहुत अच्छी बातें बतायी आपने
Sir ji
kaise hain