सन 1990 की बात है. मैं एड्वांस-काउंसलिंग पर स्कालर्शिप द्वारा अमरीका से ट्रेनिंग के बाद दिल्ली पहुंचा था. साथ में अपने खुद के लिये और परिवारजनों के लिये बहुत कुछ था.
मेरे साढू भाई हवाईअड्डे पर आ गये अत: कोई परेशानी न हुई. अगले दिन वे मुझे स्टेशन पहुंचाने भी आये. स्टेशन पर उतर कर पैसा देने के बाद सामान उठाया तो दिल धक रह गया — मेरी यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि तो आटोरिक्शा में रह गई थी. आज की कीमत के अनुसार लगभग 4 लाख रुपये का लेपटाप, वह भी उस जमाने में जब हिन्दुस्तान में लोगों ने सिर्फ यह नाम सुना मात्र था. उसी थैले में था एक हार्ड ड्राईव जो ग्वालियर के डिफेन्स रिसर्च लेब तक में उस समय उपलब्ध हार्ड ड्राईव से भी उन्नत था.
मेरे साढू भाई बहुत निराश हो गये क्यों कि थैला उनकी जिम्मेदारी थी. मैं ने एकदम कहा कि "आटो ड्राइवर एक सरदार था, अत: जैसे ही थैला दिखेगा वे वापस ले आयेंगे. सिर्फ इतना करें कि अपन यहीं खडे रहें जिससे कि उनको ढूढना न पडे"
जैसा मैं ने कहा, ठीक पांच मिनिट बाद ऑटो वहीं आकर रुका. सरदारजी बोले "भाईसाहब आपका कुछ माल गाडी में रह गया है". हुआ क्या था कि जैसे ही उनको अगली सवारी मिली, तो सवारी ने टोका कि यह क्या पडा है. सरदार जी ने तुरंत ही वह सवारी छोड दी और हवा से बातें करते हुए वहां पहुंचे जहां हम को गाडी से उतारा था.
मैं ने कुछ अतिरिक्त पैसे आभार के रूप में दिये तो वे बोले "मेरे बच्चे आज मिठाई खायेंगे. बोल दूंगा कि चाचा जी ने भेजे हैं." यह मेरे लिये डबल सुखद अनुभूति की बात थी.
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“जो बोले सो निहाल,
बोलो सत्त स्री अकाल”
यूँही नहीँ सरदारोँ की साख बनी इस जग मेँ –
जो सच्चे सरदार हैँ वे अच्छे इन्सान भी हैँ
– लावण्या
“ईमानदारी की अनोखी मिसाल ”
Regards
सारथी साहब,
बड़ी ही सुखद बात है. दिल्ली जैसी जगहों पर ऐसे इंसान कहाँ ?
ऐसे वाकये कम ही देखने को मिलते हैं
ऐसी घटनाएं यदा कदा अखबारों में पढने को मिलती हैं.
हरे..हरे
मेरा देश जहाँ आज ईमानदारी आश्चर्य की श्रेणी मे आती है और खबर बन जाती है सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या इमानदार को भी संरक्षित श्रेणी मे शामिल कर लिया जाए
बढिया प्रेरक पोस्ट है।
जी, आप्ने सही कहा ! सरदारो की एक मिसाल हुआ करती थी ! पर हिन्दुस्थान मे ऐसे प्राणी अब सरंक्षित क्षेत्र मे ही पाये जाते हैं !
रामराम !
मुसाफिर जाट तैने मालूम नई बन्दा इंसान नही ‘सरदार था ‘
“मोहे देहि शिवा वर एही ,शुभ करमन ते न टरों “||
” सूरा सो जानिए ,जो लरै दीन कै हेत
पुर्जा पुर्जा कट मरै ,तबहू छाडे ना खेत ”||
[ खेत = संघर्षक्षेत्र ]
साधारणतया सभी सरदार बहुत ही अच्छे होते हैं. अपवाद तो श्रीष्टि का नियम ही है.
ईमानदारी की अनोखी मिसाल
सत श्री अकाल।
वाह, पर कहीं ऐसी पोस्ट आपने सरदारों को खुश करने के लिए तो नही लिखी ?
इस तरह की घटनाएँ देखने को कम मिलती है। लेकिन लोगों में ईमानदारी है,कुछ में ही सही।
आपने सही कहा है | सरदार ख़ुद में एक मिसाल हैं | क्या कभी आपने किसी सरदार भिखारी को देखा है ? मैंने तो नहीं | इस बारे में मैंने यहाँ लिखा भी है |
http://www.cuckooscosmos.com/Musings/2007/11/30/never-become-your-own-joke/
जो बोले सो निहाल,
बोलो सत्त स्री अकाल”
प्रेरक पोस्ट
है बुराई से अच्छाई ज्यादा, इसीलिये दुनिया टिकी हुई है।
मेरा सदा से यही मानना रहा है।
अच्छा संस्मरण!, ईमानदारी ही दुनिया को टिकाये हुऐ है!
sat sri akal means truth is eternal.and sardar mean the boss
aaaaaa
किसी भी नागरिक से यही आशा की जाती है. अपवाद भी होते हैं. किस भावना से आपने लेख का शीर्षक ‘चूँकि वह एक सरदार है …’ रखा?