सारथी के सारे पाठक जानते हैं कि आटोरिक्शा वाले पैसे के लिये कैसे मोलभाव करते हैं. यदि आपने पहले से भाडा तय नहीं किया तो आपकी मुसीबत है. पांच रुपये के भाडे की जगह पच्चीस की मांग आम बात है.
पिछले दिनों मैं अपने बेटे डा आनंद के साथ कोल्हापुर के कुछ दर्शनीय स्थल देखने गया. आटो वाले से राजमहल जाने का भाडा पूछा तो वह बोला कि मीटर से दे देना. यकीन नहीं हुआ, लेकिन अंत में उसने मीटर से ही भाडा लिया. तीसरे आटो में भी ऐसा ही हुआ, लेकिन गंतव्य स्थान पर पहुंच कर पता चला कि किसी कारण से मीटर चला नहीं और संख्या 00.00 है. लेकिन ड्राईवर ने सिर्फ एक मामूली सी राशि मांगी, और मेरा अनुमान था कि मीटर चल रहा होता तो भाडा सिर्फ इतना ही होता.
उस दिन हम ने पांच बार आटो किया और पांचों बार मीटर से पैसे लिये गये, जबकि हमारी बोली से वे सब समझ गये थे कि कम दोनों मराठी-भाषी नहीं बल्कि हिन्दी प्रदेश के लोग थे.
कुछ महीने पहले मैं ने एक आलेख में बताया था कि केरल में भी ऐसा ही होता है. त्रिश्शूर और इस तरह के कुछ शहरों में वे मीटर चला देते हैं लेकिन अधिकतर शहरों में मीटर का प्रयोग नहीं होता बल्कि सरकार द्वारा तय किये गये प्रति किलोमीटर के हिसाब से पैसे लेते है. किसी भी तरह के मोलभाव की जरूरत नहीं पडती. सौ में से एक ड्राईवर हो सकता है कि पांचदस रुपये अधिक ले ले, लेकिन यह सिर्फ एक अपवाद होता है.
सवाल यह है कि हिन्दुस्तान में बाकी जगह ऐसा क्यों नहीं हो सकता? यदि जनवाहनों को जो अधिकारी नियंत्रित करते हैं वे अपने दफ्तरों में सोने के बदले अपना कार्य करने लगें तो हिन्दुस्तान के हर इलाके में यह हो जायगा. यात्रियों को लूटने की घटनायें महज अपवाद बन कर रह जायेंगी. मोलभाव के बदले विश्वास से काम चलने लगेगा.
समस्या यह है कि हम लोग अपने अधिकारों को मांगना नहीं जानते.
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Photograph by mckaysavage
हमने तो आटो में मीटर देखा ही नहीं अपने आस-पास.
वैसे यह होता तो हैं जनता की जागरूकता से और यह तभी होता हैं जब जनता पढ़ी लिखी हो. इसीलियी आपकी बात अपवादस्वरूप केरल में लागू हो रही है, नहीं ठहरिये आपने त्रिश्शूर की बात की है न. वहां रेलवे प्लेटफोर्म पर कुली कर के देखिये. पेंट उतरवा लेंगे.
अपवाद सब जगह होते हैं पर अधिकतर जगह यह समस्या है. और अधिकारी इस लिये सोते रहते हैं कि वो खुद इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जम कर वसूली करते हैं, यानि ओटो, बस, ट्रक आदि उनकी सोने का अण्डा देने वाली मुर्गियां हैं तो कौन बेवकूफ़ इनको मारेगा या इन पर हाथ डालेगा?
यह अधिकारियों से नही होगा जब हमारी नैतिकता हमे पुकारेगी तभी होगा.
रामराम.
हर क्षेत्र की बातेँ
वहाँ जा कर ही पता चलतीँ हैँ शास्त्री जी ….
– लावण्या
दिल्ली में तो मीटर से चलना गुनाह समझते हैं अधिकतर ऑटो वाले ..
राज्य की राजधानी है रायपुर और यहां आटो मे मीटर लगाने के कई बार प्रयास किये गए है मगर मज़ाल है आटो मे कोई मीटर लगवा सका हो।कई सरकार आई और गई,कई अफ़सर आए और गए मगर ………………………………………………॥लूट-खसोट जारी है।
यह पूरा देश कोल्हापुर क्यों नहीं बन जाता!
ऐसा जो हो जाए तो जीवन सरल बन जाए।
घुघूती बासूती