कल मैं ने अपने आलेख गुण्डे काबू किये जा सकते है! में यह याद दिलाया था कि काफी सारी गुण्डागर्दी काबू में लाई जा सकती है, बशर्ते लोगों में यह करने की इच्छा हो. मैं उस आलेख का दूसरा भाग लिखने वाला ही था कि ताऊ जी ने टिपियाया:
असली समस्या इन गुंडा तत्वों को ताउओं (नेताओं) द्वारा दिए जाने वाला प्रश्रय ही है. असल में चोर के बजाये चोर की माँ को मारा जाए तो सब समस्याएँ जड़ मूल से सुलझ सकती हैं. (ताऊ रामपुरिया)
मैं भी यही कहना चाहता था कि असल समस्या गुण्डों से अधिक उनके संरक्षकों का है. चाहे धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक संस्थायें हों, या सरकारी दफ्तर, व्यापार, आदि हो, हर जगह गुण्डे कार्यशील रहते हैं. लेकिन यदि इन को उन्नत स्थानों से संरक्षण न मिले तो बहुत जल्दी इन पर काबू किया जा सकता है. समस्या यह है कि लगभग हर जगह ये संरक्षक लोग जनता को मूर्ख बना कर अपना एवं गुण्डों का वर्चस्व बनाये रखते हैं.
मुझे यह पाठ कई जगह मिला. जिस अस्पताल की चर्चा मैं ने कल की थी उस के चुने हुए 11 डायरेक्टरों में से एक बना तो दूसरे बोर्ड-मीटिंग में ही पता चल गया कि असल गुण्डे तो पहले से मौजूद डायरेक्टर लोग हैं. अत: हम तीनचार लोगों को पहले उन ताऊओं को बाहर करना पडा. दांतो तले पसीना आ गया, कई बार लगा कि वे बने रहेंगे और हम लोग बाहर हो जायेंगे, लेकिन अंत में विजय हमारी हुई.
अब सवाल यह है कि चरित्रवान नेता कहां से लाये जायें. इसके लिये कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, बल्कि अपने गिरहबान में झांक कर देखना पर्याप्त होगा. हम जो बच्चे पाल रहे हैं ये कल के राजनेता, अफसर, अध्यापक, व्यापारी, कानूनगो होंगे. यदि चरित्रवान नेता लाना हो तो हमें अपने बच्चों में नैतिकता, आदर्श, अनुशासन, और चरित्र ठूस ठूस कर भरना होगा.
क्या आप तैय्यार हैं ??
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“हमें अपने बच्चों में नैतिकता, आदर्श, अनुशासन, और चरित्र ठूस ठूस कर भरना होगा.”
सही कहा आपने. इन मूल्यों के साथ ही सदजीवन का अस्तित्व है.
जी, यह कार्य मेरे पिता जी ने बखूबी कर लिया था..अब हमें तो आप तो राजनेता बने ही समझो. 🙂 वैसे आपका सुझाव निश्चित ही अमल किया जाना चाहिये हर माता, पिता, गुरु एवं मित्रों के द्वारा.
बच्चे तो अधिकतर अनुकरण से ही सीखते हैं। अपना आचरण सही रखते हुए बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के बारे में सजग रहें तो बहुत अन्तर पड़ सकता है।
ताऊ की जय हो ! ताऊ वास्तव में शानदार इंसान हैं !
ताऊ तो आख़िर ताऊ ही है. हेराफेरी से बाज नहीं आयेगा. उसी को तो कहते हैं सकलकर्मी. हम आप की बात से सहमत हैं.
हा हा….. घणी अच्छी बात करते हैं आप भी! बच्चों में नैतिकता, आदर्श, अनुशासन, और चरित्र ठूस ठूस कर भरे गए तो वो लोग राजनीती में जायेंगे ही क्यों? आज भी ऐसे बच्चे, और नौजवान हैं तो सही पर सब गन्दगी से दूर रहना चाहते हैं, किसी ठीक ठाक सी नौकरी में आराम की ज़िन्दगी गुजारना चाहते हैं. ये लोग अक्सर पढ़ाई में अच्छे और प्रतिभावान होते हैं तो कॉर्पोरेट सेक्टर इन्हे हाथों हाथ लेता है. कोई अभिभावक नही चाहता की उसकी सबसे संस्कारवान और लायक संतान नेतागिरी ज्वाइन करे, और कमीनों का साथ करे, इतनी प्रतिभा है तो डॉक्टर, इंजिनियर, आइएएस बने, या एमबीए करके किसी कंपनी की इज्ज़त से चाकरी करे.
तो राजनीती में कौन आता है?
आज की पीढी अपनी महत्वाकांक्षा को पूरी करने में इतनी व्यस्त है कि उन्हें अपने बच्चों को नैतिकता, आदर्श, अनुशासन, और चरित्र सिखलाने की फुर्सत ही नहीं है…..आनेवाले समय में देश के लिए यह बहुत बडा नुकसान है।
बिलकुल सही कहा आपने और ताउ ने भी, संरक्षण समाप्त हो जाए, तो गुण्डे तो खुद ही तौबा कर लेंगे।
बच्चों में नैतिकता, आदर्श, अनुशासन, और चरित्र ठूस ठूस कर भरना होगा.
अन्तत: हर आसान हल कठिन होता है! 🙂
sahi lekh hai …achchha laga padhkar …..
उम्मीद पर दुनिया कायम है।
आज भी ईमानदार और अच्छे लोग मिल जाएंगे परंतु वे गंदगी से दूर रहना चाहते हैं। हमें तो गांधी जैसा मेहतर चाहिए जो इस माहौल को साफ कर सके।
हम प्रयत्न करें तो गंदगी को साफ कर सकते हैं। लेकिन हम तो यह सब काम सरकार या दूसरों पर थोप देना चाहते हैं।