मेरे कल के आलेख जुगनू: किसी ने देखा है क्या? में मैं ने इस बात पर जोर दिया था कि परिवर्तन अवश्यंभावी है, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि परिवर्तन की अंधी दौड में आप अपने बच्चों को वह न दे पायें जिसकी उनको बहुत जरूरत है.
काऊंसलिंग के दौरान एक बात जो मैं ने बार बार लोगों से सुनी है वह है: पचास की उमर के पहले एवं पचास पार करने के बाद जिन्दगी एक दम अलग तरीके से दिखती है. पचास के पहले सामाजिक एवं पेशाई सफलता सब कुछ दिखती है, लेकिन पचास के बाद अचानक समझ में आता है कि यदि परिवार अखंडित हो तो ही ये सफलतायें कुछ मायना रखती हैं.
परिवार एक इकाई है. लेकिन यह एक इकाई के रूप में अपने आप पैदा नही नहीं हो जाता बल्कि जिस तरह गारे से ईंटें जोडी जाती हैं, तराई द्वारा जोड मजबूत किया जाता है, और चूते पानी को उलीच कर जिस तरह जोडों को कमजोर होने से बचाया जाता है, उसी तरह परिवार को एक इकाई के रूप में जोडना, मजबूती बढाना, और आपसी रिश्तों को कमजोर होने से बचाना एक लम्बी प्रक्रिया है. शादी से लेकर लगभग 50 साल की उमर इस कार्य के सर्वोपयुक्त है क्योंकि उसके बाद तो सब कुछ बदल जाता है.
क्या आप वाकई में अपने बच्चों को पर्याप्त ध्यान एवं समय दे पा रहे हैं इसे जांचना चाहते हैं तो जरा अपने आप से पूछें: आप के बच्चों और आप के बीच वे कौन सी तीन घटनाये हैं या अवसर हैं जो आपके मन में लम्बे समय तक रहेंगे. यदि आप का बच्चा 15 के ऊपर जा चुका है तो इसे जरूर आज ही अपने आप से पूछें क्योंकि आपके पास मुश्किल से 3 साल बचे हैं. उसके बाद तो पंछी आप के हाथ में नहीं रहेगा.
अपने पापाजी से पूछना पड़ेगा..
वैसे मुझे १० से भी ज्यादा घटना याद रहेगा जीवन भर जो मैंने पापा-मम्मी के साथ गुजरे हैं.. 🙂
विवाह ही नही किया तो बच्चे कहां से,और बच्चे नही तो पूछुं किससे।वैसे आपका सवाल जायज है।
मेरे बच्चे अभी छोटे हैं, लेकिन मैं उनकी हर साँस अपनी यादों में समेटने की सम्भावना देख रहा हूँ। सत्यार्थमित्र पर भी सजोता जा रहा हूँ। बच्चों को समय न दे पाने वाले एक अलौकिक सुख से वन्चित हैं।
आपकी बात सही है।
आजकल की भागती-दौड़ती जिंदगी मे लोगों के पास समय की कमी होती जा रही है ।
हम खुशकिस्मत है की हमें अपने माँ-पापा के साथ गुजारे हुए और अपने बच्चों के साथ बिताये हुए हुई अनेकोनेक पल याद है ।
आज की आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी ।
क्या आप वाकई में अपने बच्चों को पर्याप्त ध्यान एवं समय दे पा रहे हैं इसे जांचना चाहते हैं तो जरा अपने आप से पूछें..
“आपके इन शब्दों ने कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है……”
regards
बच्चों को तो समय दिया ही। भविष्य में उनके बच्चों को भी समय देंगे ताकि बच्चे , जो अब बच्चे नहीं रहे हैं, अपने काम व शेष समय अपने बच्चों के साथ खेलने, गप्प करने, लाड़ लड़ाने, सिखाने,पढ़ाने में बिता सकें, दिन प्रतिदिन के अधिक काम अपने हाथ में लेकर मैं उन्हें अपने काम व बच्चों को समय दे पाने में सहायता कर पाऊँ तब अच्छा लगेगा। यह सब तभी यदि वे चाहें तो। उन्हें अच्छे व्यक्ति बनाने व पढ़ाने का सही लाभ तभी होगा।
घुघूती बासूती
आपका कहना कुछ हद तक वाजिब है. असल मे आजकल की जिन्दगी बडी सुपर फ़ास्ट हो गई है. आपके हमारे समय मे सब कुछ मर्यादित था अब वो मर्यादा नही रही हैं.
एक मध्यमवर्गिय परिवार के अभिभावक आज भी अपने बच्चों को पर्याप्त समय देते हैं, जैसा कि मैं अपने आपके बारे मे पाता हूं पर फ़िर भी कहीं ना कहीं एक खालीपन जरुर है. या हो सकता है कि ये जनेरेशन गैप हो? जिसे मैं खालीपन कह रहा हूं.
फ़िर बच्चों की नोकरी और छोटे होते परिवार यानि कुछ मजा नही आ रहा है. आपने ये बात छेडकर ऐसी बात को सोचने पर मजबूर कर दिया जिस पर अभी तक नही कभी सोचा ही नही था.
अब और आगे सोचकर कभी बतायेंगे.
रामराम.