परिश्रमचंद काफी गरीब था, लेकिन काफी मेहनत कर अथाह धन एवं एक हवेली का जुगाड किया लिया था. पैसे के बल पर अपने एकमात्र लौंडे पोपटमल की शादी लालची नगरसेठ की छोटी पुत्री स्वर्णमुखी से करवाने में भी वह सफल रहा. स्वर्णमुखी ने आते ही अपने नजारे दिखाने शुरू कर दिये.
शादी के दूसरे साल ही स्वर्णमुखी के कहने पर पोपटमल ने पिताजीजी को मुख्य बेडरूम से बेदखल कर दिया. फिर तो हर साल उनको खिसकाते खिसकाते आखिर नौकरों के कमरे में भेज दिया गया. एक दिन वह भी आ गया जब स्वर्णमुखी ने कह दिया कि ससुर को टीबी है अत: अब उनको सिर्फ मिट्टी की हंडिया में ही खाना दिया जा सकता है.
मिट्टी की हंडिया कहां मिलती, अत: एक दिन पोपटमल अपने पांच साल के बेटे को अपनी इंपाला में बैठा कर शहर के बाहर के गावों में मिट्टी की हंडिया ढूढने निकला. आजकल मिट्टी की हंडिया में कौन खाना खाता है. सुबह से दोपहर हो गया, और दोपहर से शाम. आखिर अचानक एक गांव में उनको हंडिया मिल ही गई. पोपटमल ने एक दर्जन हंडिया खरीद ली.
वापसी के लिये गाडी चालू करने वाला ही था कि 5 साल का बेटा एकदम बोल उठा कि कुछ और हंडियायें खरीद ली जायें. पोपटमल ने कारण पूछा तो बहुत ही भोली आवाज में बेटा बोला:
डैड, एक दिन आप भी दादाजी के समान बूढे होंगे. तब मेरी पत्नी भी बोलेगी कि आप के लिये मिट्टी की हंडिया खरीद लाऊं. लेकिन मैं तो बहुत व्यस्त हूँगा और इस तरह से दिन भर हंडिया ढूढने नहीं जा पाऊंगा. अत: यदि अभी से मिट्टी की हंडिया खरीद कर नहीं रखते तो मेरी पत्नी को शायद नौकरों के कमरे की जमीन पर आप के लिये खाना परोसना पडेगा!!
यह भी खूब रही !
सुंदर बोधकथा. काश ऐसे भोले बच्चे हर घर में हों तो परिश्रमचंद को यह दिन देखने न पड़ें.
“प्रेरक प्रसंग….कुछ भावुक कर गया….लकिन बेटे की बात से पोपटमल की आँखे जरुर खुली होंगी…की जो आज मै अपने पिता के साथ कर रहा हूँ वही आने वाले समय में मेरे साथ भी…..काश बच्चे समय रहते ही इस बता को समझ अपने माँ पिता के बुडापे का सहारा बने ”
Regards
बहुत सुंदर…..अपनी चालाकी से दादाजी को कष्ट से बचा दिया।
डैड, एक दिन आप भी दादाजी के समान बूढे होंगे. तब मेरी पत्नी भी बोलेगी कि आप के लिये मिट्टी की हंडिया खरीद लाऊं. लेकिन मैं तो बहुत व्यस्त हूँगा और इस तरह से दिन भर हंडिया ढूढने नहीं जा पाऊंगा. अत: यदि अभी से मिट्टी की हंडिया खरीद कर नहीं रखते तो मेरी पत्नी को शायद नौकरों के कमरे की जमीन पर आप के लिये खाना परोसना पडेगा!!
क्या बात कही है शास्त्री जी उपरोक्त पैराग्राफ़ में आपने! बहुत ही बड़ा मंज़रे-सच है यह। सोचने के मजबूर करता हुआ। काश ! हमारा समाज इस दुख को दुनिया से मिटा पाता।
बहुत सुंदर भवभिब्यक्ति… ढेरो बधाई आपको शास्त्री जी…!
डैड, एक दिन आप भी दादाजी के समान बूढे होंगे. तब मेरी पत्नी भी बोलेगी कि आप के लिये मिट्टी की हंडिया खरीद लाऊं. लेकिन मैं तो बहुत व्यस्त हूँगा और इस तरह से दिन भर हंडिया ढूढने नहीं जा पाऊंगा. अत: यदि अभी से मिट्टी की हंडिया खरीद कर नहीं रखते तो मेरी पत्नी को शायद नौकरों के कमरे की जमीन पर आप के लिये खाना परोसना पडेगा!!
जो अपने लिये नही चाहते वो दुसरो के साथ मत करो.
आज ये भी गीता सदृष्य ज्ञान आपने दिया. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बच्चे ही सच बोल सकते हैं और हमें सुधार सकते हैं।
जैसा बोना वैसा काटना…। बेटे ने अच्छा चेताया।
बहुत सुंदर, काश आज के बडे यह सब समझते,आज कल तो बहुत ही बुरा चल रहा है बुजुर्गो के संग.आप ने इस लघु कहानी मै, बहुत बडा इशारा कर दिया. धन्यवाद
एक छोटी सी कहानी के जरिये इतने बड़े सच का उजागर…