आज से कुछ साल पहले एक अंग्रेजीदां लडकी के घमंड के दर्शन की चर्चा मैं ने सडक छाप कुत्ते की जनानी कौन? में की थी. कल फिर ऐसा एक मौका आया.
मेरे घर से 3 किलोमीटर दूर एक सुपरमार्केट है जहां किराना, सब्जी, फल, और दैनिक आवश्यक्ता की लगभग हर चीज गारंटी के साथ बाजार से कुछ कम कीमत पर मिल जाती है. मैं अपनी काफी खरीददारी वहीं करता हूँ. कल खरीददारी के लिये गया तो एक देशी “मेम” दिखी जो इठला इठला कर ऐसे अंग्रेजी बोल रही थी जैसे कि उसने आसमान हासिल कर लिया हो. शायद विदेश में कहीं काम करती है और छुट्टी पर अपने “देस” पधारी हुईं थी.
उसका मर्द (जिस में मर्दानगी का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं दिख रहा था), मियामियाते उसके पीछे चल रहा था जैसे उसका जरखरीद गुलाम हो. उसके दो बच्चे (5 से 8 साल उमर होगी) एक कोने में रखे सामान एवं पत्रिकाओं के साथ जम कर बलात्कार कर रहे थे, लेकिन सामान के गिरने की आवाजों को उनकी मैय्यो पर कोई असर न हुआ. वह देख रही थी कि उसके बच्चे क्या कर रहे हैं लेकिन उसके कानों पर जूँ भी नहीं रेंग रही थी.
इस सुपरमार्केट में काफी सारे महाविद्यालयीन विद्यार्थी शाम के समय पार्टटाईम काम करते हैं. वह उन से ऐसा अपमानजनक व्यवहार कर रही थी जैसे कि वे उसके पालतू कुत्ते हों. मेरे उन सब से बडे अच्छे ताल्लुकात हैं और कई ने आंखों आंखों में मुझ से पूछा भी कि सर क्या आप यह सब देख रहे हैं.
थी तो लोकल स्त्री, लेकिन बस अंग्रेजी का भूत ऐसा था कि साम्राज्यवादी अंग्रेजों के समान हरेक को कुचलती जा रही थी. उसको कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था. हरेक को अंग्रेजी में कोस रही थी. आप लोग तो जानते ही हैं कि इस तरह के कालें अंग्रेजों को देख कर मेरे मन में क्या गुजरती है.
संयोग से मैं सामान लेकर काऊंटर पर पहुंचा तो मेरा नम्बर उसके ठीक पीछे लगा. मुड कर मेरे टीशर्ट, एवं हाथ में पकडे रीडर्स डायजेस्ट की प्रति, एवं थैले में पडे कुछ डब्बाबंद खाना देख कर उसे एकदम लगा कि मैं भी शायद उसकी ही नस्ल का हूँगा. एकदम से अंग्रेजी में मुझ से बोली “यहां इंडिया में किसी को ढंग से काम करना नहीं आता. सब के सब सडक छाप कुत्ते हैं.” जवाब देने का एक मौका मिल गया था. मैं नें तुरंत उसी विदेशी अंग्रेजी उच्चारण में उसे जवाब दिया, “सच है देवी, सच है. शायद इसी कारण बहुत सी अंग्रेजीदां कुतियें खरीददारी के लिये यहां पधारती हैं”.
[Picture by exfordy]
जवाब तो उपयुक्त था, पर जवाब देना कठिन हो जाता है ऐसी स्थिति में. आप ने दे लिया, और वह भी उसकी भाषा में – बधाई.
यह भी खूब रही !
आपकी सलामती के लिए कामना के साथ !!!!!!
सही जवाब! अगर यह देश इतना ही बुरा लगता है उन्हें तो यहां आते क्यों हैं?
@हिमांशु
जवाब देना इस लिये आसान हो गया क्योंकि आसपास लगभग हर व्यक्ति उस के कारण परेशान हो चुका था, और बिल्ली के गले घंटी बंध जाने की कामना कर रहा था.
ओहो तो आपने टी शर्ट पहन रखा था. उसी का कमाल था. कुरता होता तो वह कुत्ता ही समझती. (क्षमा!)
@PN Sunramanian
कुर्ता होता तो “देसी” कुत्ता समझती. लेकिन टीशर्ट पहन रखा था, अत: उसे लगा कि मैं भी उसके समान “विदेशी” नस्ल का कुकर हूँ!!
बहुत सही जवाब दिया। पता नही विदेश से लौटने पर ऐसा बुखार उन्हें क्यों चड़ जाता है।
दादा यह भी खुब रही चलो इस बहाने ही सही कुछ आपसे ओर कुछ देशी बनाम विदेशी मेम कुतीया से मुलाकत हो गई। आपभी हर जगह पन्गा लेने को आतुर रहते है।
@HEY PRABHU YEH TERA PATH
सिर्फ उन लोगों से पंगा लेता हूँ जो देशद्रोही एवं मानव-विरोधी हैं!! यदि हर कोई ऐसा करने लगें तो देश की हालत बदल जाये!!
क्षमा करे गुरुदेव, मेरे कहने का मतलब कुछ अलग तरह के पन्गे से था। उसने आपसे पन्गा ले लिया।
बेचारी का दिन ही खराब था जो इन्डियन ब्लोग फायर मेन शास्त्रीजी ( indian angry young man} को बोली- “यहां इंडिया में किसी को ढंग से काम करना नहीं आता. सब के सब सडक छाप कुत्ते हैं.” अगर वो आपसे मुत्ताबिक होकर नही भी बोलती तो आप उसे कहा छोडने वाले थे, बिच रास्ते मे उसे रोक उसकी घटीया हरकत का जवाब दे आते। क्यो कि वो तो उसकि घटिया छवि बहुत देर पहले ही आपके दिमाग को जागृत कर दिया था । जब तक आप उसको उसकि घटीया हरकत का रपटा नही मारते आपको कहा खाना हजम होने वाला था । सलाम आपको सलाम आपकी देश भक्ती को।
जय हिन्द॥॥॥॥
सरजी। कभी कभी हम देश भक्तलोगो से भी पन्गा ले लिया करो। इस बहाने आपके ब्लोग के मुख्य पृष्ट पर आने का मोका मिल जायेगा। शायद देशद्रोहीयो का नशीब हम देश भक्तो से ज्यादा बलवान है जो बार बार आपके दिमाग मे जगह पाते है।
@HEY PRABHU YEH TERA PATH
वाह, क्या बात कही है, “आपको कहा खाना हजम होने वाला था”
सच कहते हो! काले-अंग्रेजों को देख कर मेरा खून खौल जाता है, और वह भी जब विदेशों में नौकरी करके (देश को धता बताने के बाद) वापस आकर स्थानीय लोगों की बुराई करते हैं.
@HEY PRABHU YEH TERA PATH
“सरजी। कभी कभी हम देश भक्तलोगो से भी पन्गा ले लिया करो।”
चलो मौका ढूढते हैं. जल्दी ही आप को “खीच” लायेंगे सारथी के मुख पृष्ठ पर. अगले आलेख के छपते ही सूचना दे देना!! काम हो जायगा!!
“खीच” लायेंगे सारथी के मुखपृष्ठ पर.
“Pitaaee” Mat Kar dena sir !
thanx. have a nice day and God bless u
@HEY PRABHU YEH TERA PATH
समर्पित शिष्यों को तो पिटाई के लिये भी तय्यार रहना चाहिये!!
इस आलेख की भाषा से ही पता लग रहा है कि कल उस महिला के दर्शन आप में कितनी कड़ुवाहट घोल गए हैं।
“सच है देवी, सच है. शायद इसी कारण बहुत सी अंग्रेजीदां कुतियें खरीददारी के लिये यहां पधारती हैं”.
इस जवाब के लिये ताऊ की तरफ़ से पूरे के पूरे सौ नम्बर. और आगे भी ऐसे ही जवाब दियें जाने चाहिये.परंतु “कुतियें” शब्द की जगह आदर पुर्वक श्रीमती कुकुर
संबोधित किया जाये. तख्लिया….
रामराम.
शास्त्रीजी मेने उस लेख पर भी टिपण्णी दी थी, ओर आज फ़िर कहुंगा कि सच मै यह काले अग्रेज अपनी ओकात भुल जाते है,आज हम केसे भी हो, लेकिन हमे यह कभी नही भुलना चाहिये कि हमारी पहचान सिर्फ़ हमारे भारत से ही है, ओर अपने घर की इज्जत, घर मै रहने वालो की इज्जत अगर हम नही करेगे तो दुसरा हमारी इज्जत भी नही करेगा.
धन्यवाद
यह जो कुत्तॆ का फ़ोटू आप ने लगाया है यह टोपी जर्मन पुलिस की है, ओर यह थेला भी , ओर उस पर जो चिन्ह है वो भी जर्मन का ही है