मेरे पिछले लेख तलवार या कलम -– किसे चुनें? में मैं ने अमर ज्योति जी के कुछ प्रश्नों का हवाला दिया था. उनका उत्तर उस आलेख में नहीं है. वह उत्तर आयगा लगभग 10 से 15 लेखों के बाद. इन 10 से 15 आलेखों में मैं आप लोगों के समक्ष बहुत सारी, आपस में जुडी, बातों को रखना चाहता हूँ जिस से हर बुद्धिजीवी को परिचित होना चाहिये, लेकिन जिनको अधिकतर लोग नजरअंदाज कर देते हैं.
इस परम्परा के अंत तक एक और बात का भी जवाब मिलेगा — कि क्यों कुछ चिट्ठाकार एक दम से अन्य चिट्ठाकारों के चरित्र पर लांछन लगाने की कोशिश करते हैं. सामान्यतया आपसी विरोध प्रगट करते समय हम दूसरों के चरित्र पर लांछन नहीं लगाते हैं. उदाहरण के लिये रचना सिंह को लीजिये, जो हमेशा मेरे तथाकथित पुरुष-केंद्रित आलेखों का विरोध करती रहती है, लेकिन वे हमेशा सिर्फ मेरे आलेखों का विरोध करती हैं लेकिन मेरे चरित्र पर ऊंगली नहीं उठाती है.
लेकिन इसी परिवेश में मेरे एक अन्य मित्र ने सारथी पर छपे मेरे आलेख “गुलाबी चड्डी” अभियान: एक विश्लेषण! (केवल वयस्कों के लिये) के बारे में निम्न टिप्पणी दी है:
आपकी टिप्पणियो में नैतिकता का पतन सॉफ झलकता है.. आप अपनी पर्सनल सेटिसफ़ेक्शन के लिए कहा से कहा पहुँच गये..
सवाल यह है कि जब कई लोग जम कर एक दूसरे का विरोध कर रहे हैं, लेकिन जब उन में से हर कोई सीमा लांघे बिना विरोध कर रहा है तो एक व्यक्ति क्यों एकदम से चरित्रहत्या पर उतर आता है — खास कर जब उस टिप्पणीकार के बारे में मैं ने कुछ भी नही लिखा. इसका उत्तर भी इस लेखन परम्परा के अंत मे स्पष्ट हो जायगा.
अब वापस आते हैं मूल विषय पर — कि सामाजिक आंदोलनों के पीछे छिपे राज को कैसे जानेंपहचानें. इस आलेख में मैं यह याद दिलाना चाहता हूँ कि दूसरों से अपनी बात मनवाने के लिये, उन से अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करवाने के लिये, सामाजिक आंदोलनों का नियंत्रण करने वाले तेजतर्रार लोग कभी भी डंडे का उपयोग नहीं करते. उल्टे, वे हमेशा लाठीबल्लम से दूर रह कर “मानसिक” स्तर पर अपनी बात मनवाते हैं. यह एक तरह का मानसिक युद्ध है लेकिन इसका संचालन इस तरह किया जाता है कि इसके शिकार को कभी गुमान भी नहीं हो पाता कि वह एक युद्ध का शिकार है.
सामान्यतया इस युद्ध को चलाने वाले लोग, लोगों को “आजाद” करवाने या “शिक्षित” करवाने के बहाने अपना गुरिल्ला युद्ध करते हैं. शिकार बाहरी तौर पर इस आजादी या शिक्षा का कार्य देखता रहता हैं, लेकिन इस बीच इस मानसिक युद्ध का सेनानायक उन बिचारों के मन में एक या अनेक “विचार” उनकी जानकारी के बिना बडी चालाकी से “सरका” देता है.
अपने मानसिक शिकार के मन में उसको चौकस किये बिना विचार कैसे “सरकाये” जायें यह एक मनोवैज्ञानैक अस्त्र है जिसे 1930 के आसपास विकसित किया गया था. इसे “डेप्थ टारगेटिंग” भी कहा जाता है क्योंकि बडी चालाकी से “सरकाई” गई बात शिकार के मन की गहराई में स्थाई तौर पर पैठ जाती है. जिस प्रकार अचार पुराने होने के साथ साथ उसका “शौर्य” बढता जाता है उसी प्रकार बडी चालाकी से “डेप्थ टारगेटिंग” द्वारा लोगों के मनों में “सरका दिये गये” विचार उस व्यक्ति के मन को आमूल तौर पर मथ देते हैं और अंत में उससे वह कार्य करवा कर रहते हैं जो समान्यतया वह कभी न करता.
हिन्दुस्तान के नौजवानों को पथभ्रष्ट करने के लिये “डेप्थ टारगेटिंग” का जम कर उपयोग हो रहा है. इस सारे चड्डी-कंडोम कांड में भी यही हुआ लेकिन सडक किनारे करतब दिखाने वाले मदारी के “जमूरे” के समान हिन्दीजगत में कई लोग मदारी की हर बात को एक कठपुतली के समान दुहराते जा रहे हैं.
हमें जमूरे के बुद्धिहीन स्तर से उठ कर “चितन” के स्तर पर आना होगा. इसके लिये किसी भी वादविवाद में पहला प्रश्न जो हम सब को अपने आप से पूछना होगा वह है": “इस चिट्ठाकार की रुचि समाज के समग्र विकास में है, या सिर्फ हर चीज के भंजन में है”.
यह चिंतन-विश्लेषण परंपरा अभी जारी रहेगी . . . मेरी प्रस्तावनाओं में यदि कोई गलत बात आप देखते हैं तो शास्त्रार्थ की सुविधा के लिये खुल कर मेरा खंडन करें. आपकी टिप्पणी मिटाई नहीं जायगी. [Picture by Mike…]
इस लेखन परम्परा के लेख आलेख के क्रम मे:
बस पढ़ रहा हूं इस चिन्तन परम्परा के सारे लेख. क्या कहूं.
फिक्र न करें शास्त्री जी -हम सब साथ साथ हैं -आप जारी रहें -समयोचित विस्तृत टिप्पणी भी दे सकेंगे ! अब क्या रचना सिंह इतना नृशंस हो जायेगीं कि आपके चरित्र पर भी …. ? मैं तो नहीं मानता ! और मतभेद तो स्वाभविक है -मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना और वादे वादे जायते तत्त्वबोध : ! खैर उनसे तो डरता मैं भी हूँ !पर यह अच्छा है कि निंदक नियरे राखिये की प्रणम्य भूमिका में वे हैं इसलिए मुझे प्रिय हैं -बिना साबुन तेल के खर्चे के मन पर एक अंकुश तो लगाए हुए हैं मोहतरमा -वे हिन्दी नारी शक्ति की उद्धत प्रतीक हैं !
अब आपके पोस्ट पर उनके बारे में यह सब लिख कर मं खतरा मोल ले रहा हूँ मगर इसका निपटारा इसी ब्लॉग क्षेत्र में होना चाहिए ! यह दुहाई है !
@Arvind Mishra
मेरा तात्पर्य यह था कि रचना सिंह जम कर मेरे आलेखों की आलोचना-निंदा करती हैं लेकिन कभी भी चरित्र-हनन जैसा कार्य नहीं करती हैं. विवाद को विवाद रहने देती हैं एवं इसे व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का बहाना नहीं बनाती हैं.
चरित्र पर लांछन किसी और चिट्ठाकार ने लगाया है
शास्त्री जी आप हंस है थोड़ा सा झटक लेंगे तो सब साफ़ हो जायेगा,ऐसा मै खुद के लिये भी कहता हूं जब कोई पीठ पीछे कहता है।मै भी आपके साथ हूं।
वैचारिक मतभेद को स्वस्थ प्रतियोगिता के स्वरूप में ही रखा जाना चाहिए और इसका विरोध वैचारिक धरातल पर ही होना चाहिए। इस स्वस्थ प्रतियोगिता में ‘व्यक्तिगत आक्षेप’ नाम का हथियार केवल कायरों को ही शोभा देता है।
आदरणीय शास्त्री जी
कितना आसान है न ढेर में से अपने हिस्से का सच उठा लेना …….जैसे कुछ लोगो के पास युक्तिया नही होती वे इनका उत्तर अपने हठ से देते है ,यदि अपने चिंतन ओर सिद्दांतो को अपने अहंकार के वर्त में रखकर पोषित किया जाये तो वे अपना अर्थ खो बैठते है. ओर अहं की न कोई वसीयत होती है न उम्र .तो शास्त्री जी
विचार महत्वपूर्ण होते है लेखक नही,.असहमतिया बनी रहनी चाहिए …क्यूंकि ये लिखने वाले को आत्ममुग्धता से बचाये रखती है .हिन्दी के बहुत बड़े लेखक थे भारतेंदु हरीश चन्द्र उन्होंने कभी कहा था “धर्म की प्राप्ति यदि उपरी आडंबरो ओर आचरण से होती तो आजकल भारत निवासी सूर्य के समान शुद्ध आचरण वाले हो जाते ..माला से जप नही होता ..गंगा नहाने से तो तप नही होता पहाडो पर चढ़ने से प्राणायाम हुआ करता है ,आंधी -पानी तथा साधाहरण जीवन के उंच नीच ,गर्मी सर्दी अमीरी – गरीबी को झेलने से तप हुआ करता है …..
.अंत में आपको एक कथा सुनाता हूँ
“जिसमे एक स्त्री पुलिस थाने में फोन करती है की कुछ युवा लड़के उसके घर के पास नदी में में नहा रहे है इससे उसे तकलीफ है .पुलिस इंसपेक्टर उसकी शिकायत सुनकर उन लड़को को वहां से हटा देता है ….थोडी देर बाद वो दुबारा फोन करती है “इंसपेक्टर साहब वे अभी भी नहा रहे है ” इंसपेक्टर कहता है “ऐसा नही हो सकता ,वे आपके घर से बहुत दूर है….नही इंसपेक्टर साहब छत से दूरबीन से देखने पर साफ़ दिखते है ”
वैसे मैंने भी कुछ प्रश्न उठाये थे लगता है आपकी नजर उन पर नही पड़ी …खैर
जैसा की ताऊ जी कहते है राम -राम
आप भारतीये संस्कृति के नाम पर पिछले एक वर्ष से सम्पूर्ण भारतीये नारी जाती का च्ररित्र हनन कर रहे हैं . उस भारतीये संस्कृति के नाम पर जहाँ इतनी सहिष्णुता हैं की एक बिन ब्याही माँ { Mother Mary } को भी पूजने { यानी चर्च स्थापित } करने की छुट देती हैं .
आप संस्कृति के नाम पर बलात्कार के ऊपर भी अगर लिखते हैं तो चित्र मे एक बाला को दिखाते हैं और उनको ही अपने बलात्कार का दोषी बताते . जब आप से कमेन्ट मे कहा जाता हैं ” assign responsibilty for man ” तो आप का जवाब होता हैं keep reading my nxt articel पर वो दूसरी पोस्ट नहीं आती .
आप निरंतर संस्कृति के नाम पर शोर मचा कर कहते हैं ” हमारी बहु बेटियों को नहीं चाहिये ये सब “”
प्रश्न हैं की आप किस सर्वे के साथ अपनी बात को रखते हैं . कितनी बहु बेटियाँ अब आपके ब्लॉग पर आ कर आप से सहमति दर्ज करा रही हैं ?? पिछली पूरे एक साल की पोस्ट देखे अपने ब्लॉग की और उन सब पोस्ट पर जहाँ मेने आप से कमेन्ट मे कहा हैं की औरतो को जितनी शिक्षा देते हैं पुरुषों को भी दे , उन पोस्ट मे और कितनी बहु बेटियाँ आप के साथ खड़ी हैं ??? आज मै इस ब्लॉग मंच पर आप से खुले रूप से प्रश्न कर रही हूँ , हिन्दुस्तान में अगर सब हिंदू ये मांग करे की हमारी संस्कृति के विषय मै किसी और धर्म का व्यक्ति कोई बात नहीं कहेगा तो आप को कैसा महसूस होगा ??
“आपकी टिप्पणियो में नैतिकता का पतन सॉफ झलकता है.. आप अपनी पर्सनल सेटिसफ़ेक्शन के लिए कहा से कहा पहुँच गये.. ”
आप की जिस पोस्ट पर ये कमेन्ट कुश नए किया हैं उस पोस्ट मै आप के कमेन्ट का स्तर क्या हैं इस पर चर्चा ना ही की जाए तो बेहतर होगा ? समझ का उम्र से कोई नाता नहीं होता और बेटा { यानी कुश की उम्र का युवा वर्ग } अगर जवान और समझदार हो तो उसकी बात को सुनना होगा क्युकी वही हमारी भावी पीढी हैं
कुश ने आपके ब्लॉग के गिरते नैतिक स्तर पर कमेन्ट किया है और आप ने उसको यहाँ ग़लत अंदाज से कटघरे मै खडा किया हैं . बात मसजीवी नए भी वहा वही कही जो कुछ ने कही फिर आप का आक्षेप उन पर क्यूँ नहीं हैं ???
इस देश ने अपनी बहु बेटियों के लिये संविधान मै बहुत कुछ दिया हैं , और हम बात उस बराबरी के अधिकार की करते हैं .
इस देश की बहु बेटियाँ इतनी समझदार जरुर हैं की अब अपने फैसले पुरूष के साये से निकल कर ख़ुद कर सके . आप क्यूँ बार बार संस्कृति की आड़ में बहुत से कम उम्र के पुरूष ब्लॉगर को ये संदेश देते हैं की औरत को आगे जाने का कोई अधिकार ही नहीं हैं .
आप विश्लेषण करते हैं तो जितनी भी पोस्ट आप ने महिला के विरोध मै लिखी हैं और उस पर जितने कमेन्ट आए हैं आप के फवौर में उसमे कितने पुरूष ब्लॉगर ३५ साल से ऊपर हैं ज़रा प्लेस इस का डाटा उपलब्ध करवाए .
इस पोस्ट का क्या मकसद हैं पता नहीं लेकिन क्युकी मेरा नाम हैं सो कमेन्ट हैं अन्यथा अब आप के साईट का बहिष्कार करने का निश्चय कर चुकी हूँ . आप साईट चला रहे हैं ब्लॉग नहीं लिख रहे , , एक नारी विरोधी साईट जिसको भारतीये बहु बेटियाँ ना ही पढे तो बेहतर होगा .
@Dr anurag
प्रिय डाक्टर
सिर्फ अमर जी का नाम लिया है, क्योंकि उनका प्रश्न लगभग
अंत में आया था. लेकिन आप ने भी महत्वपूर्ण
प्रश्न पूछे थे. उनका भी मेरी सोच पर जबर्दस्त असर हुआ था
जो आप को मेरी इस लेखन परम्परा में दिखा जायगा.
खास कर आज आपने जो महत्वपूर्ण शाश्वत सत्यों का जिक्र
किया है इनका तो उपयोग मैं जरूर करूंगा
सस्नेह — शास्त्री
@rachna
आपके चिट्ठे पर मैं कोई टिप्पणी करता हूँ तो आप उसे फुर्ती से माडरेट/डिलीट कर देती हैं. लेकिन सारथी “शास्त्रार्थ” के लिये खुला है अत: मैं आपकी टिप्पणी को डिलीट नहीं करूंगा.
आप ने एक बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है:
“आज मै इस ब्लॉग मंच पर आप से खुले रूप से प्रश्न कर रही हूँ, हिन्दुस्तान में अगर सब हिंदू ये मांग करे की हमारी संस्कृति के विषय मै किसी और धर्म का व्यक्ति कोई बात नहीं कहेगा तो आप को कैसा महसूस होगा ??”
मुझे कुछ भी महसूस नहीं होगा. हिन्दुस्तान के प्रति वफादार, भारतमाँ को माँ मानने वाल हर व्यक्ति हिन्दू है. अत: भारतीय समाज के बारे में पहली टीकाटिप्पणी तो उन्हीं लोगों को करनी चाहिये जो हिन्दुस्तान को माँ मानते हैं.
यही कारण है कि बाल्टियान बाबा (वेलेंटाईन) जैसे विदेशी त्योहार को लोग जब “स्त्रीमुक्ति” के नाम पर हिन्दुस्तान पर थोपने की कोशिश करते हैं तो मुझ जैसा भारतमाँ का चरणसेवक उसका विरोध करता है.
चिट्ठे पर आने के लिये एवं टिप्पणी रेखांकित करने के लिये आभार. आपके चिट्ठे पर आप मेरी टिप्पणियां डिलीट कर देती हैं, लेकिन सारथी पर आपकी टिप्पणियों का स्वागत है.
सस्नेह — सारथी
your only one comment has been deleted and on the post of rape and your posts because it was totally out of context and u had satrically said that you are happy that naari blog has consolidated all your post under one refrence , now u will not have to do such a job your self . and comment moderation is totally the right and progative of the blog owner . you are again trying to tell me what I should be doing and what is right to do . where is it a rule that all comments are mandatory to be there on every post .
यही कारण है कि बाल्टियान बाबा (वेलेंटाईन) जैसे विदेशी त्योहार को लोग जब “स्त्रीमुक्ति” के नाम पर हिन्दुस्तान पर थोपने की कोशिश करते हैं तो मुझ जैसा भारतमाँ का चरणसेवक उसका विरोध करता है.
indian culture is amalgamation of many cultures and we would like to it to remain that way . we want to open our hearts and homes to all cultures .
and each one of us is a patriotic including the journalist nisha who started the campign against mauthalik .
@rachna
“your only one comment has been deleted”
चलिये आप ने इतना तो लिखित में मान लिया कि आप ने अपने चिट्ठे पर मेरी कम से कम एक टिप्पणी जान बूझ कर मिटाई थी.
इसे यहां सारथी पर लिखने के लिये भी आभार!!
सस्नेह — शास्त्री
@rachna
“indian culture is amalgamation of many cultures”
आपने एकदम सही कहा. लेकिन “अमालगमेशन” का मतलब विदेशी संस्कृति की अंधी आयात नहीं है. मैं अंधी आयात का विरोध करता हूँ, करता रहूँगा.
@rachna
“अब आप के साईट का बहिष्कार करने का निश्चय कर चुकी हूँ”
आप की इस टिप्पणी के बाद आप ने दो और टिप्पणियां सारथी पर की है. पता नहीं कितनी और करेंगी. यह भी पता नहीं कि सारथी पर भविष्य में आने वाले आलेखों के विरुद्ध अपने चिट्ठे पर अभी आप कितने और आलेख लिखेंगी.
मामला साफ है — आप लाख कहें कि “आप अब आप के साईट का बहिष्कार करने का निश्चय कर चुकी हूँ”, लेकिन “सारथी” आप से नजरअंदाज नहीं किया जा रहा.
आपके इस “सारथी-स्नेह” का आभार !!
सस्नेह — शास्त्री
aap ki aatmmugdhtaa sahrahniyae haen
@rachna
आप पुन: पधारीं !!
देवी, आपके इस “सारथी-स्नेह” का आभार !!
सस्नेह — शास्त्री
आप वरिष्ठ लोगों के व्यक्तिगत चर्चा के कारण मैं मुख्य बहस पर फोकस नहीं कर पा रहा हूँ ….. शायद इससे भी कोई ज्ञान चक्षु खुलें ? बेहतर होता कि किसी और माध्यम से आप यह आपसी – चर्चा करते !!
बहरहाल इस मुद्दे पर आशीष जी की टिप्पणी को मेरी भी टिप्पणी का दर्जा दिया जाए !!!
अरे बाप रे! आप तो बहुत डटे हैं!
शास्त्री जी कल आऊगां, लेकिन आप का लेख मुझे बहुत अच्छा लगता है, ओर सच हमेशा कडवा ही होता है, जिसे निगलना बहुत कठिन होता है.
धन्यवाद
Sastri ji,
aab to man jaye itna datne ka kya matlab hai?
aap logo ki baudhik kasrat aachi hai. padh kar accha mano ranjan hota hai.
यह सब चर्चा पहले नहीं देख सका था। अफसोस है। आज पढ़कर सोच में पड़ गया। आपकी इतनी मेहनत और सावधानी से लिखी हुई बोधगम्य पोस्ट भी कुछ बदल नहीं पा रही है। कोई जैसा था वैसा ही बना हुआ है। भगवान की रचना शक्ति भी अद्भुत है।
अरे वाह शास्त्री साहब, बहुत सुन्दर लिखा है. आपका हर एक लेख पिछले से बेहतर होता है. फिर पिछला पढ़ो तो वह अच्छा लगता है. प्रत्येक मुद्दे पर बहुत गहराई से चली है अब तक आपकी कलम. गहन चिन्तन से भरा हुआ लेख.