न्यूयार्क की एक कला-गेलरी में कई दशाब्दियों पहले एक प्रसिद्ध माडर्न-आर्ट पेंटिग टंगा रहता था जिसके शीर्षक का भावार्थ था “एक कन्या का कुंवारी से स्त्री में परिवर्तन की प्रक्रिया”.
उस गेलरी में पुरुष और स्त्रियों की सबसे अधिक भीड इस चित्र के सामने लगा करती थी. मजे की बात यह है कि उस चित्र में आपको आदमी, औरत, या किसी भी प्रकार की जानीपहचानी आकृति नहीं थी. काफी देर घूर घूर कर उसे देखकर दर्शक आगे बढ जाते थे, क्योंकि किसी को समझ में नहीं आता था कि कुंवारी से स्त्री में परवर्तन कहां/कैसे इस चित्र में दिखाया गया है, लेकिन विषय की नजाकत देखते हुए कोई किसी से इस मामले में कुछ भी पूछता नहीं था.
हैरान होकर आखिर एक बार एक पत्रकार ने पेंटर से पूछ ही लिया कि इस चित्र में कहीं किसी भी तरह की कोई कन्या नहीं दिख रही है, तो फिर आप इस में “एक कन्या का कुंवारी से स्त्री में परिवर्तन की प्रक्रिया” को कैसे प्रदर्शित कर रहे हैं. चित्रकार का जवाब था:
अरे भईया, तुम सही कह रहे हो. इस चित्र में कन्या या स्त्री नामक कोई चीज नहीं है. इस चित्र को बनाने और उसको यह नाम देने के पीछे शुद्ध मनोवैज्ञानिक कारण था – कि दर्शक इस चित्र को निहार निहार कर अपने मन को वासना से भर लें. होता भी यही है. इस चित्र को छोडकर आगे बढने से पहले वे सब अपने मन को “गंदा” कर चुके होते हैं. सबसे मजेदार बात यह है कि इस चित्र को देखने के लिये इस पर पुरुषों से अधिक स्त्रियां टूट पडती थीं. चित्र का लक्ष्य ही दर्शकों के मनों में गहन-पैठ करके उनको वासना से भरना था, और इस कार्य के लिये महज एक वाक्य द्वारा मैं अपने लक्ष्य में सफल रहा.
यही है जो मैं कई आलेखों में कहता आया हूँ – आजकल कला, चिंतन, चिट्ठाकारी, टीवी, पिक्चर, सामाजिक आंदोलन आदि को जरा ध्यान से सोच कर ही अपने जीवन में प्रवेश देना चाहिये. इन में से बहुत सी चीजें दिखती कुछ हैं, लेकिन गहन-पैठ द्वारा वे मानव मनों में करते कुछ और हैं.
एक उदाहरण ले लीजिये. कुछ साल पहले वीआईपी अंडरवियर वाले एक विज्ञापन दिखाते थे. एक पुरुष एक कन्या को बगल में पकडे है और दूसरे हाथ से एक लुच्चे को एक कराटे चॉप रसीद रहा है. गहन-पैठ द्वारा आपके मन में यह संदेश दिया जा रहा है कि “असली मर्द” तो वह है जो दस रुपये के देशी कौपीन को छोड कर पचास रुपये का वीआईपी का माल पहनता है. कितने ही मूर्ख हैं जो अपनी सुविधा का अंडरवियर खरीदने के बदले इस विज्ञापन पर आधारित अंडरवियर खरीदते हैं.
हां, जहां तक अधोवस्त्र की बात है, गलत वस्त्र अपनाने पर वह अधिक से अधिक आपको पहनने में तकलीफ देगा. लेकिन यदि गहन-पैठ के कारण आप गली सडी, जुगुप्साजनक, नैतिक मूल्यों को अपना लेते हैं तो अपना सारा जीवन बर्बाद समझ लीजिये. यदि आपके बच्चे इस मनोवैज्ञानैक तंत्र के शिकार हो जाते हैं तो समझ लीजिये आपका सारा पालन पोषण नकारा हो जायगा.
आधुनिकता जरूरी है. आजादी जरूरी है. पुरातनपंथ का परिष्कार जरूरी है. लेकिन ये काम उन लोगों के हाथ में नहीं छोडे जा सकते जो इन बातों की आड में बडे ही चालाकी से हमारे बेटेबेटियों क जीवनों में “गहन-पैठ” की मदद से समाजविरोधी एवं अनैतिक चिंतन को उनके निष्कलंक मनों की गहराईयो में “सरका रहे” हैं.
[कल के आलेख “चड्डी-कंडोम कांड — आखिरी अध्याय!!” के साथ यह परम्परा समाप्त हो जायगी]
यह चिंतन-विश्लेषण परंपरा अभी जारी रहेगी . . . मेरी प्रस्तावनाओं में यदि कोई गलत बात आप देखते हैं तो शास्त्रार्थ की सुविधा के लिये खुल कर मेरा खंडन करें. आपके द्वारा किया गया खंडन या आपकी टिप्पणी मिटाई नहीं जायगी. [Picture by Allie_Caulfield]
इस लेखन परम्परा के लेख आलेख के क्रम मे:
आपकी बाद पूर्णतः सार्थक है। मन हमारा है तो उस पर हमारा पूरा अधिकार होना चाहिए, किसी के प्रभाव में आपका मनोनिर्माण अनुचित है।
चित्र की महिमा बहुत है। आप को समय कम मिलता है। फिर भी मेरी एक इल्तजा है। समय मिलते ही इस गोगोल की इस कहानी मिस्टीरियस पोर्ट्रेट अवश्य पढ़ें। यहाँ लिंक दे रहा हूँ। http://www.online-literature.com/gogol/mysterious-portrait/
पोस्ट के प्रथम भाग को पढ़कर गहन पैठ का अर्थ स्वतंत्र सोच को एक निश्चित दिशा में मोड़ देने जैसा ही हुआ..(क्रमशः)
चित्र का शीर्षक/ वही कविता के साथ भी हो जाता है-और कुछ न सोचने देने के लिए मजबूर कर देता है…(क्रमशः)
मगर ब्लॉग विमर्श में तो दोनों पहलु आ रहे हैं, भले ही विषय वस्तु एक है-फिर कैसी गहन पैठ? जरा प्रकाश डालें.(समाप्त)
@दिनेशराय द्विवेदी
दिनेश जी, इस कडी के लिये आभार. संगणक पर लोड कर लिया है और आज ही इसे पढ लूँगा. आप ने सही कहा कि इन दिनों मैं व्यस्त हूँ, लेकिन व्यस्त लोगों को इस तरह के व्यक्तिगत सुझाव से बहुत फायदा होता है.
सस्नेह — शास्त्री
@समीर लाल
जरूर समीर जी, जरूर प्रकाश डालूंगा.
कल आप के चिट्ठे पर गया था, लेकिन वही ढाक के तीन पात. क्या चिट्ठालेखन से सन्यास तो नहीं ले लिया!!
सस्नेह — शास्त्री
acha raha. thoda aaj-kal ke advertisements ko lbhi charcha jaroor kare
बहुत गुरु गंभीर बहस है. शायद दिमाग की कंडिशनिंग की जा रही है.
रामराम.
@prabhat
यह विषय मेरे अजंडे में है!!
@ताऊ रामपुरिया
जी ताऊ जी, बडे ही सकारात्मक दिशा में की जा रही है!!
शास्त्री जी,बहुत विचारणीय बात है।इस “गहरी पैठ” से बचा कैसे जाए?आज की जीवन शैली में पैसों के सिवा कुछ नजर तो नही आता।आधुनिकता का लबादा ओड़े हम सिर्फ दोड़ लगा रहे हैं।इस की चिन्ता किसे है कि हम क्या-क्या हजम करते जा रहे हैं।
अगली पोस्ट की प्रतिक्षा रहेगी।
@परमजीत बली
प्रिय परमजीत इस लेखन परम्परा के खतम होने के बाद आपकी बताई बातों की चर्चा जरूर करेंगे. कल इस परम्परा का आखिरी लेख देखने के बाद सुझाव दे सकें तो एहसान होगा.
@ पेंटर ने कहा-“चित्र का लक्ष्य ही दर्शकों के मनों में गहन-पैठ करके उनको वासना से भरना था, और इस कार्य के लिये महज एक वाक्य द्वारा मैं अपने लक्ष्य में सफल रहा.”
किसी को ऐन-कैन प्रकार से अपनी बात मनवाने या सहमत करने के लिये जो हथकण्डा अपनाया जाये उसे मनोनियंत्रण गहन-पैठ, माना गया। यह वास्तु-विषय तक भिड खिचने के या आकर्षण के कारण हो गये।
जैसे आपने अपने आलेख का हेड” कुंवारी कैसे स्त्री बन जाती है!” यह भी गहन पैठ वाली बात है ! अगर आपकी मन्शा भिड इकठा करना नही है तो चलो मान लेते है मनोनियंत्रण नही है।
देखे, यह सभी कारक भी मनोनियंत्रण गहन-पैठ वाली बात के समिप है? -:
जैसे लडकियो द्वारा जीन्स को कमर से निचे तक बाध्ना।
युवको द्वारा कटी फटी जीन्स पहनना एवम जिन्स कमर से गिरना एवम अन्डरवियर का साफ झलकना।
लडकियो/ स्त्रियो द्वार टाईट टीशर्ट पहनकर लोगो को अपनी और आकर्षित करने के भाव(ईच्छा) रखना, एवम साडी का पल्लु गिराना, या नाभी का प्रदर्शन करना,
सफेद बालो को काला करना,
सेन्ट छिडकना,
जैसे अनेक बाते है जो आम जिवन मे है। यह सभी करते समय हमारे मन वचन काया मे यह विचार आये या इस मकसद से हम सज्जधज्ज के आते है कि लडके आकर्षित होगे या लडकिया मुझे देख आहे भरे तो क्या यह मनोनियंत्रण गहन-पैठ के श्रेणी मे नही आते ?
क्या किसी को अपनी और आकार्षित करने को ही “मनोनियंत्रण गहन-पैठ” कहते है? तो फिर शास्त्रीजी इसकि नीवे तो आम जन जिवन मे गहरी पैठ जमाऐ बैठी है। यह दिमागी खुरापात का जहर तो घर घ्रर मे भरा पडा है।
You are the best blogger who write clearly and cleverly everything in your articles.
You have no fear of anyone because you know what exactly you are writing and covey your message without any ‘laag-lapet’–hats off to you !
I am not so bold to publish my identity.
Sorry for writing without a name.
Keep going!God bless you.
@परमजीत बली -“आज की जीवन शैली में पैसों के सिवा कुछ नजर तो नही आता।आधुनिकता का लबादा ओड़े हम सिर्फ दोड़ लगा रहे हैं।इस की चिन्ता किसे है कि हम क्या-क्या हजम करते जा रहे हैं।
मै भी इस बात से सहमत हू दादा!
“आज सारी दुनिया मे पैसे को लेकर हाय-हाय मची है। जब से पैसो का अविष्कार हुआ है उसका महत्व बढता ही गया। अब तो पैसा कमाना ही जिन्दगी बन गया है। चोरी करो, डाका डालो, झुठ बोलो, धोखा दो, कुछ भी करो ,पर पैसा कमाओ। जिसमे पैसा नही वह काम नही करना चाहिये। आर्थिक उदारिकरण का सबसे बडा प्रभाव यही हुआ है। अब हर चीज का मुल्य पैसे मे है। पैसे के सामने प्रेम भाईसारा इन्शानियत,सभी बेकार है।जो भी चीज घन्घा नही वो बेकार है।”
गुरुजी! हे प्रभु यह तेरापन्थ पर पिछले दिनो
“कसम से, भगवान तो नही,पर भगवान से कम भी नही” नामक पोस्ट लिखी थी देखे
http://ombhiksu-ctup.blogspot.com/
–तो शायद “मनोनियंत्रण गहन-पैठ” मे पैसे कि भुमिका कितनी है पत्ता चलेगा ।
@परमजीत बली -“आज की जीवन शैली में पैसों के सिवा कुछ नजर तो नही आता।आधुनिकता का लबादा ओड़े हम सिर्फ दोड़ लगा रहे हैं।इस की चिन्ता किसे है कि हम क्या-क्या हजम करते जा रहे हैं।
मै भी इस बात से सहमत हू दादा!
“आज सारी दुनिया मे पैसे को लेकर हाय-हाय मची है। जब से पैसो का अविष्कार हुआ है उसका महत्व बढता ही गया। अब तो पैसा कमाना ही जिन्दगी बन गया है। चोरी करो, डाका डालो, झुठ बोलो, धोखा दो, कुछ भी करो ,पर पैसा कमाओ। जिसमे पैसा नही वह काम नही करना चाहिये। आर्थिक उदारिकरण का सबसे बडा प्रभाव यही हुआ है। अब हर चीज का मुल्य पैसे मे है। पैसे के सामने प्रेम भाईसारा इन्शानियत,सभी बेकार है।जो भी चीज घन्घा नही वो बेकार है।”
गुरुजी! हे प्रभु यह तेरापन्थ पर पिछले दिनो “कसम से, भगवान तो नही,पर भगवान से कम भी नही” नामक पोस्ट लिखी थी देखे http://ombhiksu-ctup.blogspot.com/ ——-तो शायद “मनोनियंत्रण गहन-पैठ” मे पैसे कि भुमिका कितनी है पत्ता चलेगा ।
@———
Dear Unidentified
thank you very much for your very kind words and also for encouragement.
No, I do not insist upon names and identification as long as the comment contributes to the ongoing discussion — pro or con.
Kindly keep passing on your comments, and please do not forget to read the conclusion of this series which will appear tomorrow.
@HEY PRABHU YEH TERA PATH
इतने विस्तार से टिप्पणी करने के लिये आभार.
आप ने सही कहा, गहन-पैठ का प्रयोग हर जगह हो रहा है — और वह भी लोगों से गलत काम करवाने के लिये. इसी लिये सारथी हर विषय पर शास्त्रार्थ के द्वारा एक सकारात्मक अभियान चला रहा है.
सस्नेह — शास्त्री
सही है. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज अधिकांश आबादी का मन दूषित हो गया है और मीडिया में भी बैठे कुछ लालची लोग इसी दूषण का लाभ उठा रहे हैं.
लेकिन कमल भी तो कीचड मै ही खिलता है, तो क्यो नही हम कोशिश करते की हमारे बच्चे, ऎसी बाते ना सीखे, जिन से सिर्फ़ नुकसान ही हो, अगर खराब खाना खाने से पेट खराब होता है तो हम उस खाने से भी तो बचते है, .
शास्त्री जी बहुत सुंदर लिखा, ओर समझाने का ढंग भी निराला है आप का.
धन्यवाद
यह गहरी पैठ सचमुच में बडी समस्या है जी।
आप का कहना एकदम ठीक है.
मेरे विचार इस टोपिक पर यहाँ सुने
http://abcamit.blogspot.com/
mai aap ke bat se sahmat hu
WHAT A AMAZING TOPIC. I SALUTE YOU AGAIN AND AGAIN, IT IS THE REFLEXION OF DISTORTED MENTALITY OF SOCIETY