मुझे खुशी है कि यह वैज्ञानिक-सामाजिक लेखन परंपरा को पाठकों के लिये उपयोगी सिद्ध हो रही हैं. नीचे दी गई टिप्पणी इस बात का एक अच्छा उदाहरण है. माना जाता है कि प्रति टिप्पणी पीछे कम से कम दस लोग होते हैं जो वही बात लिखना चाहते थे लेकिन लिख न पाये. सारथी पर यह संख्या प्रति टिप्पणी कम से कम पच्चीस की है जो वही बात कहना चाहते थे लेकिन समयाभाव के कारण लिख न पाये.
(अन्तर सोहिल) आदरणीय, नमस्कार!! जब से आपको पढना शुरू किया है, आपकी बातों पर(मुझे नही पता क्यों) सहज ही विश्वास हो जाता है। अभी तक मेरी विचारधारा यही थी कि हिजडे पैदाईशी नही होते, ये वो पुरुष होते हैं जो जानबूझ कर अपना लिंग बदल या विकृत कर लेते हैं या रूप बदल लेते हैं । श्री रूपेश जी ने भी जब तब लैंगिक विकलांगों का जिक्र किया, तब भी मैं अपने मानसिकता को सही रास्ते पर नही ला पाया। हालांकि मुझे लैंगिक विकलांगों से ना कोई कुंठा, नफरत और ना ही कोई लगाव है। मैं अर्धसत्य का भी नियमित पाठक हूं । क्योंकि कहीं भी कुछ लिखा जाता है तो मैं उसमें से कुछ (जिन्दगी) सीखने की कोशिश करता रहता हूं।
अब आपने बताया है तो सचमुच विश्वास हो गया है कि यह जन्मजात विकलांगता होती है। मैं आपसे, रूपेश जी से और सभी लैंगिक विकलांगों से अपनी मानसिकता के लिये क्षमाप्रार्थी हूं।
पिछले आलेख हिजडा योनि में जन्म 001 में जैसा मैं ने कहा कि एक मानव भूण में करोडों जीन होते हैं. भूण के विकास के साथ साथ इनकी अरबों प्रतियां बनाई जाती हैं. इस जटिल प्रक्रिया में करोडों बार गलतियां हो जाती हैं लेकिन जीन की गलतियों को सुधारने वाली जैव-रासायनिक प्रक्रियायें उनको सुधार देती हैं. इसके बावजूद करोडों गलतियों में से कई बार एकाध विकृत जीन सुधर नहीं पाता और उसके कारण बच्चे विकलांग पैदा होते हैं. जब यह विकलांगता यौनांगों की होती है तो बाह्य तौर बच्चा न तो पुरुष होता है न स्त्री. इनको हिजडा कहा जाता है. लेकिन चूंकि यह शब्द कई बार इन लोगों को नीचा दिखाने के लिये प्रयुक्त होता है, अत: “लैंगिक विकलांग” का प्रयोग बेहतर, वैज्ञानिक एवं अधिक मानवीय है. मेरी जानकारी के अनुसार, चिट्ठाजगत में इस शब्द का सबसे पहला प्रयोग डॉ रूपेश श्रीवास्तव ने अपने चिट्ठे आयुषवेद पर किया था. उनकी प्रेरणा से आरंभ किये गये चिट्ठे अर्धसत्य पर भी आप इसे देख सकते हैं.
डॉ रूपेश के अथक प्रयास एवं प्रोत्साहन के कारण अर्धसत्य पर कई लैंगिक विकलांग चिट्ठालेखन की कोशिश करते हैं. इस तरह लैंगिक विकलांगों को एक नवजीवन प्रदान करने के जरिये के रूप में हिन्दी चिट्ठाकारी उभर रहा है. मेरा अनुरोध है कि पाठगण इन लोगों को जरूर प्रोत्साहित करें एवं अर्धसत्य पर नियमित रूप से टिपिया कर इस शुभ कार्य को अंजाम दें.
टिपियाते समय इस बात को न भूलें कि आनुवांशिकी की समस्या बढ रही है. इस कारण जो लोग सामान्य सामाजिक जीवन से वंचित हो जाते हैं उनके प्रति समाज की काफी बडी जिम्मेदारी है. निम्न दो टिप्पणियां इस बात को बडे सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत करती हैं:
(दिनेशराय द्विवेदी) हम अन्य विकलांगों को जिस तरह से अपनाते हैं उसी तरह इन शिशुओं को भी अपना सकते हैं। इस तरह के अनेक लोग परिवारों में पलते हैं और जीवन जीते हैं। उन्हें परिवारों द्वारा अपनाने की आवश्यकता है।
(संजय बेंगाणी) लैंगिक विंकलांगों को विकलांगों को मिलने वाले आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. और धनार्जन की वर्तमान व्यवस्था खत्म होनी चाहिए.
इस नजरिये के साथ आईये आज कुछ करें. (क्रमश:)
Article Bank | Net Income | About India । Indian Coins | Physics Made Simple | India
Photographs by rahuldlucca
शास्त्री जी ,
मुझे तो यह लगता है कि लैंगिक विकलांग एक और जहां विद्रूप कुदरती परिहास के परिणाम होते हैं वही ये अपने कुनबे को बढाने के फेर में लावारिस बच्चों को जबरिया “हिजडा ” भी बनाते हैं जो अनैतिक ही नहीं आपराधिक कृत्य है ! इन षड्यंत्रों से भी सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि यह एक और स्लमडाग हकीकत है जिससे मुंह मोड़ना ठीक नहीं है !
आदरणीय मिश्रा जी ने जो कुनबा बढ़ाने की बात कही है उस बारे में बस इतना कहना चाहती हूं कि क्या अंधे अपना कुनबा बढ़ाने के लिये सबकी आंखे फोड़ते फिरते हैं? ये एक ऐसी धारणा है जिसे आपने कही-सुनी बेवकूफ़ी भरी बातों के आधार पर बना लिया है,हमारे नाना शास्त्री जी आपको बेहतर तरीके से समझा देंगे वरना सच तो ये है कि मुझे इस तरह की जाहिलपने की बातों पर गुस्सा आ जाता है कि ऐसे तो हैं ये समाज के पढ़े-लिखे जानकार लोग जो दूसरों को आइना दिखाते फिरते हैं और खुद…????
हमें खेद है. अरविन्द मिश्राजी कि टिपण्णी पर जो प्रति टिपण्णी आई वह अनअपेक्षित है.
लैंगिक विकलांगो द्वारा जबरन लैंगिक विकलांग बनाना अपवाद हो सकता है। लेकिन मैं ने ऐसे उदाहरण भी देखे हैं कि परिवार के लोगों द्वारा लैंगिक विकलांग को हिजड़ों को सौंप देने के उपरांत हिजड़ों ने बच्चे को पढ़ाया और वह सरकारी अस्पताल में नर्स का काम कर रहा है, पुरुष वेश में ही। यहाँ तक कि एक महिला नर्स के साथ रहता भी है। क्यों नहीं हम इसी तरह इन्हें समाज में स्वीकार कर सकते?
शास्त्री जी हम ए अच्छा नही लगा कि मिश्रा जी की टिपण्णी के जबाब मै भूमिका रूपेश जी ने जिस भाषा का प्रयोग किया, हम यहां अपनी अपनी राय देने के लिये आजाद है, किसी कि बेज्जती करने के लिये नही,
ओर मै भी य्ही कहुंगा कि आज कल नकली हिजडे भी बनाये जाते है, या आज के कई नोजबान बन जाते है, भुख मरी से तंग आ कर , अपनी जिम्मेदारीयओ को निभाने के लिये, कारण कोई भी हो, लेकिन आज कल अकसर देखते है लाल बती वाले चोराहो पर यही लोग ज्यादा दिखते है, ओर यह बात सही भी है, लेकिन फ़िर भी यह लोग हम से अलग नही नही दया भाव नही,इन्हे अपना पन, ओर सम्मान चाहिये, इस समाज मै जो हम सब को मिलता है, इन्हे अलग पहचान नही चाहिये.
हम जब भी टिपण्णी दे तो ध्यान रखे कि किसी का दिल ना दुखे, किसी को नाम ले कर या फ़िर किसी को निशाना बना कर सीधे ऎसी भाषा का प्रयोग ना करे जो हमारी खुद की भी बेज्जती करता हो, क्योकि हम यहां अपनी बातो से ही पहचाने जाते है.
धन्यवाद
शास्त्री जी आपने जो जानकारी दी हैं काफी रोचक है। और कई बातें आज मेरे सामने ऐसी आई हैं कि कभी हमें पता भी ना था बहुत बहुत धन्यवाद जानकारी के लिए
रूपेश जी लैंगिक विकलांगों से जुड़े मुहिम में जुटे हैं इसलिए उनका संवेदित हो जाना सहज ही है -मैंने तो एक जानकारी /जिज्ञासा के तहत वैसा लिखा था -इससे रूपेश जी को दुःख पहुंचा इसका मुझे खेद है ! भाटिया जी आपकी भावनाओं को समझ सकता हूँ ! हाँ इन लिंक्स पर जाकर मेरी बात की सच्चाई को भी परख लें !
http://timesofindia.indiatimes.com/Cities/Bangalore/Teen_undergoes_forced_sex_change_surgery_by_eunuchs/articleshow/3735765.cms
http://www.eunuch.org/vbulletin/printthread.php?t=2392
भूमिका रूपेश की प्रतिक्रिया आपत्तिजनक है। मिश्राजी ने सभी हिजड़ों के बारे में ऐसी राय नहीं दी है। लेकिन जिस प्रकार नॉर्मल स्त्री-पुरुष के बीच आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी पाये जाते हैं उसी प्रकार लैंगिक विकलांगों के बीच भी अपराध करने वाले हो सकते हैं। आप सभी जानते होंगे कि एक खास किस्म की वेश्यावृत्ति में भी कुछ हिजड़े संलिप्त होते हैं। लेकिन सबकी ओर से भूमिका जी को प्रवक्ता बनने और उग्र प्रतिक्रिया देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस समाज में सबका जिम्मा लेने की मूर्खता नहीं करनी चाहिए। इससे शास्त्री जी की सद्भावना पूर्ण लेखमाला का उद्देश्य आहत होगा।
अनावश्यक विवाद ठीक नहीं। यह लेखमाला लैंगिक विकलांगों के बारे में आम धारणा को सकारात्मक बनाने में मददगार हो रही है। लेकिन भूमिका रूपेश जी को थोड़ा संयम से काम लेना चाहिए।
मैं नहीं चाहता की किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत मतभेद शास्त्री जी के वैचारिक आन्दोलन की सार्थकता को कम करे.
दान या भीख दिये जाने का समर्थन नहीं किया जा सकता। आवश्यकता इस बात की है कि उनके लिये सम्मानजनक रोज़गार और जबरन वसूली पर प्रत्बन्ध दोनों ही सुनिश्चित किये जायें।