कुछ दिन पहले एक हमउमर मित्र के घर बैठा था. माहौल काफी अच्छा था. पुरानी बातें याद कर रहे थे. उनकी शादी और उनके बच्चों की शादी बहुत जल्दी हो गई थी, और अगली पीढी भी आठ दस साल के उमर की हो गई थी.
अचानक उनकी बिटिया अपने चार साल के बेटे को हाथ से खीच कर मेरे पास लाई. साथ में वह उसे डांटती जा रही थी, “पता नहीं कैसे मेरे घर एक चोर पैदा हो गया. मेरे भाईबहन तो कभी किसी की चीज को हाथ नहीं लगाते थे. तुम जिंदगी में डाकूलुटेरे ही बनोगे”
फिर मुझे लक्ष्य करके वह बोली, “अंकल आप तो जानेमाने परामर्शदाता हैं, जरा इसे बता दें कि चोर कितने बुरे होते हैं”. मेरा दिल धक रह गया. दर असल खेलखेल के बीच उस नन्हे मुन्ने ने बिना पूछे दादी मां के बनाये कुरकुरे बिस्कुटों में से एक उठा लिया था और दौडकर वापस आंगन में खेलने के लिये चला गया था. दूर से इसे देख उसकी माँ ने उसे पकड लिया था और नसीहत दे रही थी कि तुम चोर हो, जीवन में कुछ नहीं बन सकते.
मैं ने सबसे पहले तो बच्चे को बाहर भिजवा दिया. उसके बाद बिटिया को अपने पास बैठा लिया और अपने मित्र के सामने उससे पूछा कि अच्छा बिटिया एक बात बताओ, यदि मैं तुम से कहूं कि तुम “एकदम निकम्मी और जाहिल स्त्री हो, और जिंदगी में तुम कभी कुछ नहीं बन पाओगी” तो तुम को कैसा लगेगा. वह एकदम बिफर गई. “कैसी बात करते हैं अंकल आप! मैं ने क्या किया है जो आप मुझ पर ऐसा आरोप लगा रहे हैं.”
उसका मन पूरी तरह से हिल गया था. तब मैं ने उसको बताया कि यदि उसके स्वभाव के बारे में सिर्फ एक “प्रश्न” से उसका मन इतनी बुरी तरह से हिल गया तो वह सीधे सीधे जो “आरोप” बच्चे पर लगा रही थी तो उस के फूल जैसे मन की क्या हालात हुई होगी. मैं ने उसे और भी काफी बातें बताईं और अंत में वह एकदम बदले मन (और आभार) के साथ अपने बच्चे को गोदी में उठाने के लिये दौड गई.
मानव मन कुछ मामलों में एक कांच के समान है. आप इस पर पत्थर फेंकेंगे तो वह टूट जायगा. उसके बाद कितना भी “जोडें”, उसमें दिखने वाला प्रतिबिंब नहीं जुड पायगा!! बच्चे गलत कार्य करते हैं तो उसे बुला कर प्यार से समझा दें कि आगे ऐसा न करे. दुबारा करे तो कडाई से मना कर दें. तीसरी बार करे तो सजा दें, लेकिन इसके पहले दो अवसर जरूर दें. सजा देते समय उसके चरित्र पर लांछन न लगायें बल्कि उसके गलत कार्य को गलत कहें (बिना पूछे दूसरी की चीज ली, बिना अनुमति के बिस्कुट लिया).
चरित्र-हनन करके बच्चे को पालेंगे, तो वह बिना चरित्र बडा होगा. गलती-सुधार के साथ पालेंगे तो वह चरित्रवान बनेगा.
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अच्छी सीख। अनुकरणीय।
लेकिन शीर्षक में तो आपने उल्टी बात कही है। यह पाठक आकर्षित करने का जुगाड़ है या कुछ और? 🙂
बालक भी खुद के लिए खोजे नित सम्मान।
समझाना है प्यार से ठीक कहा श्रीमान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सही। अक्सर ही परिवार वाले बच्चों के मामले में असंवेदनशील हो जाते हैं और उनके सुकुमार मन पर चोट पहुंचाते हैं।
बात बड़े पते की !
@सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
आलेख के आखिरी वाक्य में जो कहा गया है उसका आधा है यह शीर्षक.
“जम कर बच्चे की बुराई कीजिये, वह चरित्रहीन अपने आप बन जायगा”
सस्नेह — शास्त्री
बहुत ही प्रभावशाली पोस्ट.
आप की कही बातें न केवल अभिभावकों को बल्कि स्कूल के अध्यापकों को भी समझनी चाहिये क्योंकि बच्चों के चरित्र निर्माण में उनका भी बराबर हाथ होता है.
बहुत ही सही बात है.
सही कहा आपने.. बच्चे के चरित्र निर्माण पर बहुत सी चीजें सीधे असर करती हैं.. माता-पिता को यह बात अच्छी तरह समझनी चाहिए..
बहुत ही ज्ञान दायक और गांठ बांधने वाली बात बताई है !!
उचित सीख..
बच्चों के विकास में और उनको भविष्य का एक मजबूत व्यक्तित्व बनाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान अभिभावावकों का ही होता है.
खरीदते हैं एक बुराई-पुराण की पुस्तक प्रति!
काश! दुनिया में सभी लोग इतने ही संवेदनशील होते!
सही सीख दी!!
अच्छी सीख।
शत-प्रतिशत सही बात कही है शास्त्री जी आपने. हैरत होती है कि किस कदर हमारी दुनिया बदल रही है. ऐसा सटीक और तटस्थ विश्लेषण कम ही लोग कर सकते हैं.
बच्चे तो कुम्हार कि मिट्टी है जिससे जो चाहे बना सकते हो ।
वर्ष 1999 की बात है। मैं एक साइकोलॉजिस्ट के सामने बैठा था और वे मेरे दिमाग की कुंठाओं को धीरे-धीरे कर निकाल रहे थे।
आज सोचता हूं तो कांप जाता हूं कि अगर पहले जैसी कुंठाएं अब भी दिमाग में होती तो क्या होता।
अब मेरे बच्चे के मामले में मैं ध्यान रखने की कोशिश करता हूं। कभी चूक जाता हूं तो उस गलती को सुधारने के लिए समय भी लगाता हूं।
मानव मन बहुत सरल है और इसे समझना बहुत कठिन।
आपकी इस पोस्ट के लिए दिल से आभार।
Its totally wrong , by just critising the children, I think the development of child will be stopped. I don’t agree
Really a burning issue, peoples are doing it but end result will be on negative side as far as pshychology of child is concerned. let them learn by themself
I dont agree. Don’t mind
its absolutely a wrong expression about children., do you think it will improove the society at large
Sorry Sir, I will write on the contrary that inspite of criticising children, they must be encouraged to do a thing, what other want. Why Old people want to critisize…they must consult pshychologist