सब ओर उत्तरभारतीय हैं!!

image यह इस देश की विडम्बना है कि आजादी के 60 साल होते होते तमाम प्रकार के लोग हिन्दुस्तान को भाषा, जातीयता, या अन्य आधार पर एक बार और बांटने की कोशिश कर रहे हैं.  हम यह भूल जाते हैं कि एक जयचंद के कारण कितने ही प्रथ्वीराज चौहानों की हार हो चुकी है. देश पहले मुगलों के हाथ और फिर अंग्रेजों के हाथ चला गया था.

इस आपसी फूट के कारण कितने ही उत्तरभारतीय लोगों को मुम्बई छोड कर पलायन करना पडा, कितनों को पिटना पडा, कितनों को अन्य तरह की हानि हुई. यदि इस तरह के विभाजन को न रोका गया तो जल्दी ही विभिन्न प्रदेश के भारतीय लोग एक दूसरे को दुश्मनों के समान देखने लगेंगे और आपसी बदला चुकाने के लिये तमाम सारे मुहम्मद गौरियों को बुला लायेंगे. नुक्सान सिर्फ उनको होगा जो अखंड भारत का सपना देखते हैं.

कुछ कारणों इस पूरे महीने मुझे लगता रहा कि इस मामले में केरल एक अच्छा आदर्श बन रहा है. आज केरल के किसी भी बडे नगर में चले जाईये, आपको उत्तर से आये लोगों की भरमार दिखेगी. मेरे घर के बगल में कम से कम दस उत्तरभारतीय लोग एक साथ किराये पर रहते हैं. पिछले हफ्ते मेरे घर के पांच नारियल के पेडों से नारियल तोडे जा रहे थे तो वे सब पास आकर खडे हो गये. पता चला कि एकदम ताजा नारियल की गरी खाना चाहते हैं. तुरंत ही मैं ने नारियल तोडने वाले कहा कि उनको जितने चाहिये नारियल दे दे.

दो महीने पहले बाजार गया तो ठेला दिखा जिस पर बाकायदा हिन्दी में “यादव-चाट” लिखा था. बातचीत की तो पता चला कि ग्वालियर का बंदा है, और ग्वालियर के मेरे घर से कुछ ही दूर उसका घर है. वह एक साल पहले केरल आया था, धंधा बढिया चल रहा है, और अब तीन दोस्तों को उसने अपने आसपास चाट के ठेले डलवा दिये हैं. इस मुलाकात के बाद हर हफ्ते पानी-पूरी का 50 का  एक पेकेट उससे खरीद लाता हूं.

नुक्कड नुक्कड पर पान वाले दिखते हैं, सब मप्र और उप्र के हैं.  एक महीने पहले कुछ इलेक्ट्रानिक मशीने लेने गया तो पता चला कि दुकानदार के लिये सारी फिटिंग एक कानपुर वाला आकर करेगा. घर आया तो उसका चेला भी साथ था जो इटावा का था.

कल घर की छत पर खडे हुए तो बगल में फ्लेट बनता नजर आया. लगभग सब के सब बिहारी थे. कल दोपहर को विश्वविद्यालय गया तो वहां हिन्दी में बोर्ड लगा दिखा “उत्तरभारतीय रोटीसब्जी”. जा कर उससे दुआसलाम की तो वह दिल्ली का बंदा निकला जो मिल कर बहुत खुश हुआ.

कल शाम को साडी की दुकान से निकले तो बिटिया मचल गई कि दुकान के सामने खडे लडके से उसको मोरपंख का बना एक पंखा दिला दूँ. कीमत पूछी तो उसने 60 रुपये बताये. मैं ने जब हिन्दी में उससे कहा कि मोलभाव नहीं करूगा, सही कीमत लगा ले, तो वह एकदम 45 पर आ गया. मैं ने 50 का नोट दिया. इस बीच पता चला कि वह आगरा का है. उसके पूछने पर जब मैं ने ग्वालियर की बात बताई तो बिन कुछ कहे उस ने 5 के बदले 15 रुपये वापस कर दिये.

अपने पेशेवर जरूरत के लिये सारी स्टेशनरी मैं कोच्ची में  एक राजस्थानी व्यापारी से लेता हूँ जो बीसतीस साल से केरल में जमें है और जो अब एक करोडपति बन चुके हैं. उनसे मिलने जाता हूँ तो तमाम और मित्र मिल जाते है. कोई पंजाबी है, कोई सिंधी है तो कोई गुजराती है.

केरल के बडे शहरों में हर जगह आप को हिन्दीभाषी और गैरहिन्दीभाषी उत्तरभारतीय जमे नजर आयेंगे. जनता का सहयोग बहुत है, म्युन्सिपालिटी वाले या पुलीस वाले न के बराबर परेशान करते हैं. कुल मिला कर एक ऐसा प्रदेश जहां अन्य प्रदेशों से आया मेहनती व्यक्ति 10 से 20 साल में आराम से अपने आप को कुछ बना सकता है. उम्मीद है कि कोई जयचंद इस समाज को खंडित नहीं करेगा.

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Photograph by mckaysavage

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Author: Super_Admin

9 thoughts on “सब ओर उत्तरभारतीय हैं!!

  1. लोगों के आपस में घुलने-मिलने से ही भारत वाकई में “एक” देश बनेगा। सकारात्मक आलेख! धन्यवाद!

  2. पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा. यह बहुत ही अच्छा संकेत है. इसका एक बड़ा कारण यह भी है की आजकल केरलवाले संपन्न होते जा रहे हैं. मेहनत का काम करना नहीं चाहते इसलिए श्रम साध्य उपक्रमों में बाहर से लोग आते हैं तो किसी को परेशानी भी नहीं है.

  3. ऐसा नहीं कि सब जगह उत्तर भारतीय हैं। आप चूंकि उत्तर भारतीय हैं इस कारण से वे नजर आते हैं। यहाँ कोटा में मैं दक्षिण भारतियों को देखता हूँ। अनेक तो ऐसे रच पच गए हैं कि अब वे दक्षिण भारतीय लगते ही नहीं हैं। किसी अस्पताल में चले जाएँ केरल के लोग मिलेंगे। निर्माम कार्यों में, तकनीकी कार्यों में केरल के लोग मिलेंगे। तमिल और तेलगू भी मिलेंगे। देश में अब एक दूसरे प्रदेशों में काम करने जाने की झिझक कम हो चली है। एक नए भारत का निर्माण हो रहा है। आप किसी देश में चले जाइए वहाँ भारतीय मिलेंगे। इस तरह एक नई दुनिया का निर्माण हो रहा है। नयी तकनीक दुनिया को मथ रही है।

  4. मेरे हिसाब से तो अब सारे भारत मे सब प्रांतों के लोग न्युनाधिक बस गये हैं. हमारे यहां इतने लोग केरल से हैं कि केरल की आई हुई सभी सब्जियां मिल जाती हैं. वैसे आप सही कह रहे हैं कि मा्रव्व्डी, सिन्धी, गुजराती,यूपी और बिहार वाले ज्यादा मेहनत कश लोग हैं जो सब जगह हैं और अपनी मेहनत के बल पर आगे आये हैं.

    रामराम.

  5. सही कहॉ जी पुरा देश अपना, लोग अपने, आप अपने तो फिर क्या टेशन। आप और ज्ञानदत्त जी आऐ दिन अपने अपने शहरो मे आम लोगो के दैनिक जीवनचर्या पर कुछ ना कुछ लिखते रहतो हो, जानकारीयो के लिऐ यह आप लोगो का यह क्रम अच्छा लगा। आभार
    हे प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगर

  6. पर इसमे एक सोचने वाली बात यह भी है कि गॉव खाली हो रहे है शहरो मे भिड बढने से व्यवस्थाऐ चरमरा जाती है

  7. जब पूरा भारत एक है तो इसमें फिर उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम की रट लगाने का क्या मतलब है? सच तो यह है कि आम आदमी ऐसा सोचता भी नहीं है. मुम्बई का कोई आम आदमी उत्तर भारतीयों के ख़िलाफ चली मुहिम में न तो शामिल हुआ है और न ऐसी किसी मुहिम से उसे कोई सहानुभूति है. यही दूसरी जगहों का भी सच है. राजनेता अपने फ़ायदे के लिए पहले भी देश को बांटने की साजिश करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं. इस मामले में हिंसा भी उनके गुर्गों का काम होता है. इसके ख़िलाफ अब सबको मन बनाकर खड़े होना होगा.

  8. ईष्ट देव की बात से पूर्ताया सहमत.. क्यों की मैं स्वयं इस सब को बहुत करीब से देख चूका हूँ.
    मेरा कभी जाना तो नहीं हो सका पर अच्छा लगा केरल के बारे में जानकार.. और उससे भी ज्यादा अच्छा लगा ये जानकार की उत्तर भारतीय लोगों ने दिहाडी मजदूरी, साफ़ सफाई के काम, चाट ठेले और रेहडी के व्यापार में पूरे देश में डंका बजा रखा है..

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