जब से मनुष्य ने पृथ्वी पर जीना शुरू किया है तब से वह समस्याओं से घिरा हुआ है. उसे आवरण की समस्या, निवास की समस्या, ठंडगर्मी की बडी बडी समस्याओं से लेकर पैरों में चुभे कांटे निकालने की छोटी समस्याओं तक से उलझना पडता है. हर तरह की भौतिक सुविधा से संपन्न, नौकरचाकरों से अटे, परिवार के किसी बच्चे से पूछ कर देखिये कि उसे कोई समस्या है क्या. वह तुरंत कहेगा कि रोजरोज के होमवर्क से उसके नाक में दम हो चला है. समस्या से मुक्त कोई भी नहीं है.
लेकिन मानव योनि में जन्म लेने कि यही विशेषता है कि वह सही दिशा और सही नजरिये से सोचे तो बहुत सी समस्याओं का हल निकल आता है. ताज्जुब की बात यह है कि रोजमर्रा की कई समस्याओं का हल इतना आसान होता है कि विश्वास नहीं होता. चाकू, कैंची, स्क्रूड्राईवर, प्लास आदि इसके कुछ उदाहरण हैं.
महाविद्यालयीन जीवन की बात है मेरे एक सीनियर को भारी भारी किताबें हाथ में पकड कर पढने में बडी तकलीफ होती थी. वे जब मेडिकल कालेज चले गये तो वहां की किताबें देख कर तो उनकी घिग्गी बंध गई. लेकिन उन्होंने हार न मानी. एक दिन अचानक एक विचार कौंधा, एक शर्टहेंगर को मोड कर किताब रखने का एक स्टेंड बनाया और मोटी से मोटी मेडिकल किताब को खोल कर टेबल पर रखने का हल निकाल लिया.
आर्थिक कठिनाई का जमाना था अत: जल्दी ही उन्होंने उसका एक परिष्कृत रूप बनाया और बेचने लगे. आम का आम गुठली का दाम. यह सन 1971 की बात है. आज 38 साल बीत जाने के बाद भी वह स्टेंड मेरे पास है और मैं उसका उपयोग यदा कदा करता हूँ. इतना ही नहीं अब तो बाजार में उसके कई तरह के परिष्कृत नमूने आ गये हैं.
जीवन के किसी भी पहलू को देख लीजिये. कठिन दिखने वाली समस्याओं का हल अकसर सरल होता है. हां जरूरत एक सोचने वाले व्यक्ति की है जो सृजनात्मक तरीके से हल की सोचे. मेरे खुद के जीवन में पचासों ऐसे मौके आये हैं जब एक नये कोण से देखने पर कठिन दिखने वाली समस्याओं के हल निकल आये. आप ने ऐसा कुछ किया है क्या.
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Knife Rack by Ben Mason । recipe stand by Aunt Owwee
भाव सृजन का हो अगर राह बने आसान।
जीवन के संघर्ष में मिलते कई प्रमाण।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
दोनों असल हैं, समस्या न होती तो हल कौन तलाशता?
सामयिक क्योंकि आज ही विश्व बौद्धिक संपदा दिवस है !
मुश्किल यह है की हम स्वयं समस्या से इतने जुड़ जाते हैं कि समाधान नहीं सूझता. समस्या से अपने आपको मुक्त रखते हुए मनन करें तो समाधान भी दिखेगा.
अब आने वाला वक्त ऐसे ही लोगों के हाथों में होगा जिनके पास कुछ नया है और अपने विचारों को मूर्त रूप दने का जज्बा.
तभी तो कहते हैं कि -“आवश्यकता अविष्कार की जननी है।”
बिल्कुल सही बात है. बिना सोचे कुछ नही होता. एक ही बात को बार बार सोचने से अदभुत विचार सामने आते हैं.
रामराम.
एक बार मैंने अपनी एक वेबसाइट बनानी चाही, लेकिन पैसे न होने के कारण साइट नहीं बना पाया। तो मैंने एक पुराने बेकार कंप्यूटर की मरम्मत करके उसे ही Web Server बना डाला। आज मैं अपनी और अपने कई दोस्तों की वेबसाइट अपने घर से ही चलाता हूँ! देखिये: http://stooge.myftp.org/
@अनिल कुमार
प्रिय अनिल, मै ने उस वर्णन को पढ और दंग रह गया कि किस तरह से आवश्यक्ता अविष्कार की जननी बन गई. लगे रहो, अभी बहुत आगे जाओगे.
सस्नेह — शास्त्री
बहुत बढ़िया लगी यह पोस्ट।
काश एक तकनीक पुस्तक से सिर की हार्ड-डिस्क में सीधे ट्रांसफर की निकल आये!
Pappi pet ka sawal ha sarthi ji, burning problem is this. nice article. go on writting
regards
I prise the article, but question is how to solve.
SAMADHAN KON DUNDNA CHAH RAHA HA, SOCIETY IS MEANT TO GENERATE PROBLEM , SOLUUTION IS YOUR HEADACHE.
NO ONE WANTS TO SOLVE THE PROBLEM, SOCIETY IS WAITING FOR HOW PROBLEM CAN BE CREATED. DONT MIND , BUT IT IS A TRUE FACT..
WE ARE HERE GO GENERATE PROBLEM, NOT TO SOLVE THEM . SOCIETY AT A GLANCE IN EVERY WALK OF LIFE CREATES PROBLEMS
A NICE MIND THRILLING POST