दर्जी था हमारा, बडा चालू!
नाम था चादरवाला, पर
कैंचीवाल एन्ड सन्स के नाम से
चलाता था दुकान!
पर जाना जाता था सिर्फ
”पैबंदवाला” के नाम से.
डेड गज के पैंट के लिये
हमेशा मांगता था वह,
ढाई गज.
बहाना था उसका कि
पेट है बडा आपका सामान्य से,
एवं साधारण नहीं है
पृ्ष्ठभाग आपका.
फिर भी छोटा पडता था
वस्त्र सिलने के बाद हमेशा.
बहाना था कि हो गया होगा छोटा
घर धोने पर,
सिकुडने के कारण.
ठीक किया उसकी
आदत को इस बार,
सौ का नोट देकर
पांचसौ के बदले एक लिफाफे में.
जब आया पीछे उसका फॉन-काल,
तो बताया कि था तो 500 का लेकिन
कम हो गया होगा आपके
कपडों की संगत से!!
वाह जैसे को तैसा !
जैसे दरजी को दिया एक नूतन संदेश।
ऐसे नेता को मिले बच जायेगा देश।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मजेदार । यह चातुरी हमें भी सीखा दें तो कितना अच्छा हो !
waah ..mazedar ….
यह तो १५ वर्ष केरल प्रवास ने ही सिखाया होगा
बहुत रोचक लगा.
रामराम.
शठे शाठ्यम…
शास्त्री जी,यह हास्य कविता है या सच्चाई:))
कहीं दोनों तो नही?
बहुत खूब..
अच्छे भले ब्लॉगर थे, आप भी पोयट हो लिये!