वर्षाजल — दोहन हो सकता है या नहीं!!

image मेरे पाठकों में से जो 40 से अधिक उमर के हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि पानी का स्तर हर जगह कम हो रहा है: कूओं में, नहरों में, तालाबों में. मेरे समान जो 55 के ऊपर के हैं वे तो एकदम ही भिन्न एक भारत में रहते थे जहां नदियों में साल भर शुद्ध पानी बहता था, और जहां नहर, कुंए, तालाब हमेशा लबलब भरे रहते थे.

1990 तक हमारी कालोनी में 20 फुट पर बोरवेल जम कर पानी देता था. 2009 में उसी शहर में 100 फुट तक के सारे बोरवेल सूख चुके हैं और सरकारी 6-इंची पाईप के बोरवेल 400 से 800 फुट तक गहरे हैं. सन 2020 की तो सोच भी नहीं सकते हैं. ग्वालियर में हमारे घर के पास का पाताली कुँआ जो 24 घंटे की पंपिंग के बाद पानी के स्तर में एक इंच की कमी नहीं दिखाता था वह 2008 में मैं वहां गया तो सूखा पडा था.

सवाल यह है कि कल क्या होगा. उससे भी बडा सवाल यह है कि क्या हम लोग अपने नातीपोतों को हरियालीपानी से भरे शहरों के बदले मरुभूमि दे जायेंगे जहां एक घडा पानी के लिये भाई भाई का गला काटेगा? यदि आज की चाल में बदलाव नहीं आया तो ऐसा ही होगा. लेकिन आज यदि हम लोग थोडी से असुविधा उठाने के लिये तय्यार हों तो यह स्थिति बदल सकती है.

इसके लिये हमें यह समझना होगा कि मुख्य समस्या पानी की उपलब्धि का नहीं है क्योंकि पानी के मुख्य स्रोत बरसात के औसत में कोई खास कमी नहीं आई है. मुख्य समस्या है पानी के “दोहन” की. अतितीव्र शहरीकरण के पहले जितने पानी का दोहन नहरों, कुओं और तालाबों से होता था, उतना ही वापस मिल जाता था. लेकिन डंबरसिमेंट से अटे शहरों में जमीन वर्षा के पानी को सोख नहीं पाती. अब जमीन खोद कर शहर को बर्बाद भी नहीं किया जा सकता. लेकिन कम से कम कुछ पानी को जमीन के नीचे पहुंचाया जा सकता है. चेन्नाई में तो अब हर नये निर्माण के साथ साथ वर्षाजल-दोहन जरूरी हो गया और उस प्रावधान के बिना निर्माण के लिये अनुमति नहीं मिलती.

वर्षाजल दोहन का मतलब सिर्फ इतना है कि बरसात के समय आपकी छत से जितना पानी बह कर नालियों में चला जाता है उसे घर के आसपास की जमीन में सोख लिया जाये. इसके लिए आंगन में 3×3 का एक छोटा सा सोक-पिट बनाना होता है और छत से आने वाले सारे पानी को इसमें भेज दिया जाता है जहां यह जमीन में सोख लिया जाता है. इसी तरह कुंओं और तालाबों के पास छोटे छोटे गड्ढे बना लिये जाते हैं चारों ओर से बह कर आने वाले बरसात के पानी को सोख कर जमीन के नीच पहुंचा देते हैं. इन तरकीबों की सहायता से कई समाजसेवी लोगों ने हजारों कुओं और तालाबों को पिछले दस सालों में  पुनर्जलित कर दिया है.

आज जरूरत है कुछ और लोगों की जो इस आंदोलन को आगे बढाये!!

 

Article Bank | Net Income | About IndiaIndian Coins | Physics Made Simple | India
Photograph by tanais

Share:

Author: Super_Admin

13 thoughts on “वर्षाजल — दोहन हो सकता है या नहीं!!

  1. पहली लाईन पढ़्कर छोड़ दिया कि हम क्या जान पायेंगे..यह तो ४० से उपर वाले बुजुर्गों के लिए है…वैसे जानकारी अच्छी है.

  2. हां आप सही कह रहे हैं. पहले तालाबों का पानी पी लेते थे जो शुद्ध भी रहता था और बारहों महिने भरा भी रहता था. आज पानी की समस्या विकराल होती जा रही है. जितनी जल्दी हम चेत जायेंगे उतना अच्छा रहेगा.

    रामराम.

  3. शास्त्री जी शायद आप विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन उज्जैन निवासियों ने गत 4-5 माह से वाश बेसिन का उपयोग नहीं किया है, यहाँ 5 दिन छोड़कर नल आते हैं और जमीन का भूजल स्तर 400 फ़ुट से भी नीचे जा चुका है, जनता को जागरूक करने की बात बहुत आसान सी लगती है लेकिन इतना जल संकट भुगतने के बावजूद उज्जैन में कई परिवार ऐसे हैं को 300-400 रुपये में प्रायवेट टैंकर मंगवाकर अभी भी कार धो रहे हैं…, नेता-पार्षद-गुण्डे अपने घरों के आगे सरकारी टैंकर रुकवा लेते हैं, कुछ पहलवानों ने सार्वजनिक नलकूपों-हैण्डपम्पों पर ताला लगाकर कब्जा कर लिया है… ऐसी ही स्थिति असंतोष और “अराजकता” को जन्म देती है, लेकिन धनाढ्य वर्ग अब भी चेतने का नाम नहीं ले रहा… बड़े शहरों में उसी बेरहमी से पानी की बर्बादी जारी है… बची-खुची कसर AC पूरी कर रहा है, जहाँ खुद का मकान ठण्डा रखने की कीमत पूरी धरती चुका रही है… दुर्भाग्यपूर्ण तो है, लेकिन भारतीय लोगों को “जागरूक” करना बेहद मुश्किल होता है (चाहे वे पढ़े-लिखे ही क्यों न हों)।

  4. समीर जी,

    आप जैसे शाश्वत युवा लोगों के लिये कोई पोस्ट जल्दी ही लिखेंगे!!

    कैसे हैं?

    सस्नेह — शास्त्री

  5. ताऊ जी,

    केरल में मेरे घर की सीमा से लगा तालाब था जिस से बारहों महीने पाने एक नहर में बहती रहती थी. उसके मालिक जल्लाद ने उस तालाब को ही भरवा दिया.

    सस्नेह — शास्त्री

  6. आपने सही प्रश्न उठाया है..
    हिमाचल में पानी का एक और स्रोत हुआ करता था जिसे “सूडा” (ड के नीचे बिंदी नहीं लगा पा रहा हूँ कृपया इसे ” ड़ ” पढें.). यह पहाड़ों की तलहटी में एक छोटा सा गड्ढा होता था, जिसमे पानी रिस-रिस कर इकठ्ठा होता रहता था. यह पानी पीने लायक होता था. लेकिन, आज कुएं भी सूखे मिल रहे हैं.
    समय रहते चेतना होगा.

  7. अगर किसी को लगता है की सिर्फ जल स्तर नीचे जाने से लोग चेत जायेंगे तो गलत लगता है. मेरे गाजियाबाद प्रवास में मैंने देखा की सारे शहर में पेय जल पूर्णतया ख़त्म हो चुका है. बचा खुचा पानी रेडिओएक्टिव है जो की नहाने आदि के लिए भी खतरनाक है.. पर फिर भी जीवन चल रहा है.. नगर दिल्ली के साथ कन्धा मिलाकर विकास के नए पैमाने लिख रहा है.. भले ही बोतल बंद पानी के सहारे से ही सही.
    पानी बचाना सरकार की नहीं, बल्कि हम में से हर एक की जिम्मेदारी है. शास्त्री जी, आपने ४० से अधिक उम्र के लोगों की बात की है.. लेकिन उस उम्र वर्ग के लोगों ने अगर अपनी अगली पीढी को पर्यावरण के प्रति ऐसी समझ दी होती तो आज की पीढी ने पानी जैसे अपरिहार्य प्राकृतिक संसाधन पर शायद इतना अत्याचार ना किया होता.

  8. @पुनीत

    तुम ने एकदम सही बात कही है पुनीत. लगभग हर पीढी ने अपनी अगली पीढी का ख्याल रखे बिना संसाधनों का दोहन किया है. लेकिन जैसा साईब्लाग के लेखक ने कहा है, “असम्‍भव तो कुछ भी नहीं होता, पर हम करना चाहें तब न।”

    सस्नेह — शास्त्री

  9. चेन्नई का उदाहरण आपने बिलकुल सही दिया है.. आज से लगभग 7-8 साल पहले चेन्नई के बारे में सुनता था कि चेन्नई में पानी कि समस्या बहुत ज्यादा है, मगर जब मैं यहां शिफ्ट किया तब से देख रहा हूं कि यहां हर घर में 24 घंटे मीठा पानी आता है, जिसे पीया भी जा सकता है.. पहले मैं एक अपार्टमेंट में रहता था और उसमें कुछ भी पता नहीं चलता था कि कैसे वे रेन वॉटर हार्वेस्टिंग करते हैं, मगर जब से स्वत्रंत आवास में रहने के लिये आया हूं तब देखा कि कैसे वर्षा के जल का संग्रह किया जा रहा है.. यहां मैंने आज तक एक भी धरना या प्रदर्शन पानी के लिये होते नहीं देखा है..

    मुझे यह भी याद है कि कैसे मेरे गांव में आज से 15-20 साल पहले गर्मी के दिनों में हर नलकूप में पानी आता था.. फिर धीरे-धीरे उन नलकूपों कि संख्या घटने लगी जिनमें गर्मी के दिनों में भी पानी आता हो.. अब तो हालात बहुत ही खराब हो चुके हैं.. गर्मी आते ही जैसे सारा गांव एक-दो नलकूपों पर आश्रित हो जाता है.. आगे जाने क्या होगा? यह वही प्रदेश है जो हर साल बाढ़ कि विभिषिका भी झेलता है..

  10. कौन कहता है की हम कुछ करना नहीं चाहते..
    गाजियाबाद का ही उदाहरण पुनश्च दूंगा जहाँ प्रोपर्टी के रेट शायद भारत में सर्वाधिक होंगे.. लोग अपार्टमेंट्स में घर लेते वक्त पानी की उपलब्धता पर बड़ा ध्यान देते हैं.. जहाँ पानी के कथित शुद्धीकरण उपकरण लगे हुए हैं वहां प्रतिमाह हजार रुपये से अधिक देने के लिए तैयार रहते हैं परन्तु जिन अपार्टमेंट्स को सरकार के मानकों के अनुरूप रेन हार्वेस्टिंग मॉडल के तहत बनाया गया है, उनको कोई खरीदने में रूचि नहीं दिखाता क्योंकि उसका खर्चा क्रेता को १५-२५ रुपये प्रति स्क्वायर फिट अधिक कीमत देकर चुकाना पड़ता है.

  11. केरल में क्या सभी जगह रेन वाटर हार्वेस्टिंग की जा सकती है? यहाँ बहुत कम जगह देखा है. नए भवन बनते जा रहे हैं और नियम भी बनाये गए हैं. जागरूकता का आभाव है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *