सोमवार को मैं सारे दिन अपने साढू भाई के बेटे की शादी में व्यस्त रहा. खानपान के बाद पंडाल में बैठ कर सुस्ता रहा था कि अचानक एक मित्र चील के समान भीड को चीरते हुए आये और सामने की कुर्सी पर फैल गये. इसके बाद जो उनका रेडुआ चालू हुआ तो मुझे महसूस हुअ कि शब्दों द्वारा भी मुझ जैसे लोगों का गला घोंटा जा सकता है.
खैर उनके कहने का दो मतलब था. पहला कि बेवकूफ लोग चिट्ठाकारी करते हैं और उनसे भी अधिक बेवकूफ लोग घर पर सब्जी उगाते है और पडोस में पेड लगाते हैं. उनका इशारा मेरी चिट्ठाकारी की ओर और पेड लगाने के मामलें में मैं ने जो आलेख छापा था उसकी ओर था. जब उनका उगलदान खाली हुआ तो वे उसी तेजी से अंतर्द्यान हो गये जिस तेजी से उन्होंने मुझ पर झपट्टा मारा था.
समाज में हमेशा कुछ ऐसे लोग मिलेंगे जिनको संरक्षण का हर कार्य मूर्खता लगती है, और अराजकत्व हमेशा स्वर्गीय सुख की अनुभूति प्रदान करता है. किचन-गार्डन दर असल स्वास्थ्य, पैसा, और मन के संरक्षण के लिये बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन उन जैसे “सज्जनों” को यह बात स्वीकार करना उनके पुरुषत्व एवं बौद्धिक हैसियत को हिला देता है. अत: झपट्टा मारना, वमन करना, बिना सामने वाले का उत्तर सुने उडनछू हो लेना आदि उनके पारंपरिक हथियार हैं. ऐसा न करें तो उनका दिन और दिल बडा कडुवा रहता है.
किचन गार्डन न केवल एक अच्छा शौक है, बल्कि ऐसा उपयोगी शौक है कि हम में से बहुतों को इसे अपनाना चाहिये. शहरी जीवन में लोग मिट्टी से एकदम दूर होते जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद कम से कम कुछ लोग किचन-गार्डन बडे आराम से लगा सकते हैं. इसके लिये सिर्फ प्लास्टिक, लोहे या मिट्टी के कुछ गमले या पेंट के 10 से 20 लिटर के डब्बे, मिट्टी, और समर्पण या शौक की जरूरत है. अच्छे किस्म का खाद बडे आराम से सब्जीके छिलकों, चाय की पत्ती, और बचे खाने से बनाया जा सकता है. अच्छी मिट्टी अपके आंगन में उप्लब्ध न हो तो आराम से खरीदी जा सकती है.
टमाटर, बैंगन, भिंडी, हरीमिर्च तो बडे आसानी से लगाये जा सकते हैं लेकिन मेरे कई मित्रों ने तो और भी बहुत कुछ लगा रखा है. यहां तक कि जिन के पास जरा भी जगह नहीं है और जो फ्लेटों में रहते हैं वे अपनी बालनियों में और छत पर यह काम करते हैं. एक मित्र तो घर की छत पर बाकायदा केला और कई अन्य फल उगाते हैं. इससे उनके घर आने वाली सब्जी का एक हिस्सा बिना प्रदूषण के मिल जाता है, थोडेबहुत पैसे बच जाते हैं, लेकिन सबसे बडा फायदा मानसिक-शारीरिक होता है. गर्मियों में छत ठंडी रहती है वह अलग!
अनुसंधानों से पता चला है कि जो स्त्रीपुरुष सकारात्मक शौक करते हैं उनको वह शौक मानसिक रूप से तंदुरुस्त रखता है. यह मानसिक तंदुरुस्ती उनके शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती है. कुल मिला कर कहा जाये तो किचन-गार्डन एक बहुआयामी और बहु उपयोगी शौक है.
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Photograph by stevendepolo
एक लाभ आप गिनाना विस्मृत कर गए।
-रोज आधा-एक घंटा इन गार्डनों में काम करने से कसरत हो जाती है अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग हो जाता है, पेशियाँ स्वस्थ बनी रहती हैं और मोटापा दूर भागता है।
शुक्रिया दिनेश जी!! मैं जो कहने से रह गया वह आप ने कह दिया. मेरे लक्ष्य की पूर्ति हो गई!!
बिल्कुल सही कहा आपने। जो अपनी उर्जा सकारात्मक कामों में नहीं लगाते वे ख़ुन्दक वमन में ही लगाते हैं। वैसे यदि केवल गमले ह हों तब भी क्या छिलकों आदि से खाद बनाई जा सकती है या जमीन चाहिए ही ?
घुघूती बासूती
गमलों में खाद बनाई जा सकती है. कल के आलेख में जानकारी दे दूंगा !!
चलिये आपके मित्र के हिसाब से हमने सिर्फ़ एक ही बेवकुफ़ी की और वो की सिर्फ़ चिठ्ठाकारी की. अब दुसरी भी करें क्या?:)
रामराम.
सही लिखा है आपने, सहमत हूँ आपसे…….. मैंने भी कुछ दिन पहले ही बागबानी शुरू की है। अपनी बगिया में उगी मिर्च, टमाटरों और तोरई को देख कर मुझे तो बड़ा आनंद आता है।
आपके मित्र के हिसाब से हम भी दोनों बेवकूफियाँ खूब करते हैं, लेकिन पिछ्ली गर्मियों से डेज़ी के आ जाने से सब तहस नहस हो गया है। अब तो बस -खाली खाली गमले हैं, खाली खाली क्यारियाँ हैं, खरपतवार का बोलबाला है। स्थिति कुछ सुधरी है, कुछ कोचिया लगाये थे। क्यारियों वाले बचे हैं गमलों वाले उखाड़ दिये गये हैं डेज़ी द्वारा:-)
बस कुछ बड़े से क्रोटॉन और लॉन, नारियल, सीताफल, बेल, अमरूद, नीम, जामुन, पपीता तथा बोगनविलिया के साथ सही सलामत दिखते हैं। लेकिन है यह शौक भी बड़ा मज़ेदार। ब्लॉगिंग से भी ज़्यादा संतोषदायक।
अधीर प्रवृत्ति के और शो ऑफ लाइफ जीने वाले लोग मुश्किल ही इस प्रकार के शौक अपनाते होंगे. पर जितने लाभ आपने बताये हैं.. संभव है की पहले से कुछ अधिक लोग इस और प्रवृत्त हों. मेरी नजर में स्वास्थ्य लाभ ही सर्वोपरि है..
मूर्खों के लिए तो ब्लॉगिंग भी नहीं होती।
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SBAI TSALIIM
हा-हा-हा. बहुत बढिया. असल में कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि जो हम नहीं करते हैं, वह सब मूर्खों के करने वाले ही काम हैं.
अरे ब्लागगीरी से भी ज्यादा कोई लंठई का काम ? मैं न मानू !
अब मान भी जाईये डा अरविंद !!
I FULLY AGREE, BUT IT IS BENEFICIAL FOR ENVIRONMENT, OUR SELF BOTH FINANACIALLY AND PHYSICALLY
what is my gorvant service.