पिछले 10 दिनों में कम से कम दस चिट्ठाकारों ने ईपत्र और दूरभाष द्वारा मुझसे सुझाव मांगा कि उनके चिट्ठों पर अनापशनाप एवं आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने वालों के बारे में क्या करना चाहिये. ऐसे लोगों के लिये कुछ सुझाव नीचे दिये गये हैं:
- जिन चिट्ठाकारों का काम सिर्फ अन्य चिट्ठाकारों की नुक्ताचीनी करना, उनको नीचा दिखाना अदि है, उनको सामाजिक वर्गीकरण की सुविधा के लिये “चिट्ठा-कुंठासुर” कहा जा सकता है. इसे एक मनोवैज्ञानिक रोग के रूप में पहचाना जा चुका है.
- एक आम चिट्ठाकार ऐसे लोगों का इलाज नहीं कर सकता अत: मर्ज का सबसे हल अच्छा वही है जो अन्य छूत की बीमारियों का है. वह इलाज है, ऐसे लोगों से दूर रहना.
- छूत की बीमारी से पीढित व्यक्ति से आप जितनी अधिक बातचीत/व्यवहार आदि करेंगे, आपको उतना ही नुक्सान है. उन से दूर रहें, उनकी बातों को कान न दें.
चिट्ठाकारी एक गजब का शौक है जो मानसिक तृप्ति देता है, समाज में प्रभाव डालने का एक औजार आप के हाथ देता है, किसी भी संपादक की चरणचंपी किये बिना आपको अपने मनमुताबिक और मनमर्जी संख्या में लेख छापने का मौका देता है. कुल मिला कर चिट्ठाकारी ऐसा शौक है जो एक स्विस आर्मी नाईफ के समान हरेक को उसकी जरूरत के अनुसार कुछ न कुछ देने में सक्षम है. लेकिन कुंठासुर की टिप्पणियों के कारण अनावश्यक रूप से परेशान होने पर उसकी कुंठा आप को भी लग जाती है और आप ख्वामखाह परेशान होते हैं. आपकी चिट्ठाकारी बाधित होती है.
जो चिट्ठाकार बाकायदा अपना नाम बता कर आप से मतांतर व्यक्त करते हैं वे इस श्रेणी में नहीं आते. उनका आदर करें, विचारों का आदानप्रदान करें, आपकी बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होगी. बाकी तो सडक का मैल है, पडा है, पडे रहने दीजिये. अनावश्यक रूप से उसके बारें में सोच कर अपना समय और अपनी मानसिक शांति न खोयें. नही उसे साथ लेकर चलने की कोशिश करें.
कल का आलेख होगा: चिट्ठा-कुंठासुर का विश्लेषण
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Three Smiths – Kolme seppää by Matti Mattila
आपके विचारों से तो असहमत हुआ ही नहीं जा सकता ! बल्कि अक्सर यही लगता है कि टिप्पणी ही क्या की जाय !
कुंठासुर नामकरण ही कितना सर्वप्रभावी है !
इस कथन से कि “कुंठासुर की टिप्पणियों के कारण अनावश्यक रूप से परेशान होने पर उसकी कुंठा आप को भी लग जाती है और आप ख्वामखाह परेशान होते हैं.”- पूर्णतया सहमत हूँ ।
चिट्ठाकारी ऐसा शौक है जो एक स्विस आर्मी नाईफ के समान हरेक को उसकी जरूरत के अनुसार कुछ न कुछ देने में सक्षम है.—-
आपके इस वाक्य नें प्रभावित किया तो टिप्पणी देने से अपने को रोक न पाए… क्यों न हम एक इंसान को भी स्विस आर्मी नाईफ समझते…उसके व्यक्तित्त्व का भी कोई न कोई हिस्सा प्रभावशाली हो सकता है…
बाकी तो सडक का मैल है, पडा है, पडे रहने दीजिये —- एक जीते जागते इंसान को इस प्रकार का विशेषण देकर उसे नकारना — यह कुछ रुचिकर नहीं लगा….
मीनाक्षी जी, भाषा के उस प्रयोग को प्रतीकात्मक रूप में लें तो मामला साफ हो जायगा कि मैं क्या कहना चाहता हूँ. (वाक्य रचना पर एक बार और नजर डाल लें)
“चिट्ठा-कुंठासुर” की डेफिनेसन बहुत बढ़िया लगी . बधाई “चिट्ठा-कुंठासुर” के बारे में बताने के लिए .
अति सुंदर सुझाव. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
नुक्ताचीनी/“चिट्ठा-कुंठासुर”/छूत की बीमारी से पीढित व्यक्ति/
चरणचंपी /बाकी तो सडक का मैल है, पडा है, पडे रहने दीजिये. /
आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने वालों के बारे में जो आपने उनको उपमाऐ दी, कलेजे को ठण्डक पहुचाने वाली लगी।
आभार
लाख टके का ज्ञान टोला माशा के भाव..
घनी हो भगवन
निन्दक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय!