वैज्ञानिक चिट्ठे: भैंस के आगे बीन बजाये 001

image हिन्दी चिट्ठाजगत पर एक नजर डालें तो उसमें काव्य, सामाजिक लेखन, और व्यक्तिगत लेखन संबंधी चिट्ठे अधिक हैं, जब कि विज्ञान-आधारित और वैज्ञानिक चिट्ठों की संख्या नगण्य है.

चित्र: क्वांटम सिद्धांत पर आधारित स्केनिंग-टनलिंग माईक्रोस्कोप जिसकी प्रभावी अवर्धन क्षमता 20000 x से अधिक आंकी जा सकता है! इसका उपयोग अतिसूक्ष्म भौतिकी में पदार्थों के सतह की संरचना के अध्ययन के लिये किया जाता है.

आप कहेंगे कि इसका एक कारण यह हो सकता है कि विज्ञान औसत व्यक्ति के लिए कठिन चीज है.  सच है कि एक वैज्ञानिक विषय लोगों को समझाना एक सामाजिक विषय पर आलेख छापने की तुलना में कठिन है. लेकिन उसका मतलब यह नहीं है कि विज्ञान को सिर्फ कठिन भाषा में ही लिखा जा सकता है.

दर असल विज्ञान के किसी भी विषय को मोटे तौर पर आम आदमी की भाषा में समझाया जा सकता है. क्वार्क को गणित के बिना, लेप्रोस्कोपिक शल्यप्रक्रिया को चिकित्साविज्ञान के बिना, और रसायनों के असर को रसायनविज्ञान की बारीकियों के बिना समझाया जा सकता है. आम आदमी के लिये यह पर्याप्त है.

अत: समस्या विज्ञान की नहीं, बल्कि विज्ञान को समझाने के लिये समर्पण की है. यदि आम जनता को विज्ञान की जानकारी देने वाले 100 चिट्ठे हिन्दीजगत में आ जायें तो एक वैज्ञानिक क्राति आ सकती है. इस तरह के आलेख पढने को मिल जाये तो कई “आम” लोग विज्ञान के क्षेत्र में “खास” सिद्ध हो सकते हैं.  कारण यह है कि वैज्ञानिक जानकारी ने हमेशा समाज को आजाद किया है, सशक्त किया है, और समाज की दिशा ही बदल दी है. [क्रमश:]

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Author: Super_Admin

12 thoughts on “वैज्ञानिक चिट्ठे: भैंस के आगे बीन बजाये 001

  1. WORDS ARE TOO FRAIL TO EXPRESS MY GRATITUDE FOR TAKING THE SUBJECT OF SCIENCE AS A WHOLE. YES TO LEARN BASICS BEHIND LAPAROSCOPY IS VERY EASY TO UNDERSTAND, BUT PERFORMING IT ON HUMAN BEING NEEDS EXPERTIZE.,BLOGS ARE LACKING. I MET ONE OF MY SO CALLED FRIEND AND ASKED HIM ABOUT THIS THEME. HE TOLD ‘YAR WAQT KISKE PAS HA ‘ . IF THE FACULTY OF SCIENCE IS HAVING SUCH A MENTALITY ,I AM SORRY SIR ?? SIR, I WILL LIKE TO STATE THAT I HAVE TWO BLOGS IN MY CREDIT ONE IS DRMUKESHRAGHAV.BLOGSPOT.COM AND SECOND ONE DRMUKESHRAGHAVOBG.TRIPOD.COM/PHOTOS., BOTH BLOGS ARE PERTAINING TO MY FACULTY AND WERE PREPARRED TO EXPOSE FACULTY TO LEARN AND TO INSPIRE THEM TO MAKE SUCH BLOGS., BUT THE NET RESULT IS BIG ZERO . REGARDS

  2. शास्त्री जी,
    मैं आप की बात से पूर्णतः सहमत हूँ, मैने स्टेम-सेल्स पर एक लेख साधारण भाषा में लिखा आरंभिक टिप्पणी को छोड़ कर आगे कोई रूचि सामने नही आई उस में से भी एक आध टिप्पणी ही सार्थक लगीं | “स्टेम-सेल्स”

  3. विज्ञान की बातें सहज भाषा में समझाई जाँय तो मेरे हिसाब से हर व्यक्ति अचानक ही उसके प्रति आकृष्ट हो जाता है । इसका कारण विज्ञान का हमारे जीवन/दैनिक व्यवहार से संयुक्त होना है । सहमत हूँ – “समस्या विज्ञान की नहीं, बल्कि विज्ञान को समझाने के लिये समर्पण की है”

    मैं आपको और अरविन्द जी को कैसे भूलूँ इस दृष्टि से!

  4. शास्त्री जी मैं आप के कथन से सहमत हूँ मेरे द्वारा ” स्टेम-सेल्स” के पर एक लेख-माला आरम्भ की गई ,पूरा लेख [प्रथम कड़ी] केवल सामान्य ज्ञानऔर इस पर जुड़े अभीतक शोध प्रगति और उसके हमें लाभ पर ही चर्चा मात्र थी | अतिआवश्यक तकनीकी विवरण था आशय सामान्य जन को इससे अवगत रखना मात्र था | कृपया अवलोकन कर कमियाँ बताएँ |और क्या आप के ब्लॉग पर टिप्पणियाँ करने से कोई नियम जुड़ा ? क्योंकि इससे पूर्व मैंने जो टिप्पणी की थी वह पहले तो दिखती रही थी फिर बिजली चली जाने के कारण बंद कर दिया अभी देखते हैं तो पा रहा हूँ की टिप्पणी गायब है या हटा दी गयी है ? देखें ”विविधा-मंथन” Previev is requested .

  5. लोगों की मानसिक रुझान पर भी बहुत निर्भर करता है. यह तो पढने से ही पता चलेगा न की सरल भाषा में बताया जा रहा है. स्थिति यह है की शीर्षक को देख कर ही बिचक जाते हैं. कुछ विषय की प्रासंगिकता भी मानसिकता को प्रभावित करती है. हमारे एक मित्र हैं. कम से कम तीन सालों से ईमेल वगैरह करते हैं. ब्राउजर के एड्रेस बार में पता टाइप करना नहीं आता. गूगल का हम से लिंक मांगते हैं. हर विषय जो उन्हें रुचिकर हो उनकी जानकारी के लिए भी हमसे लिंक की मांग करते हैं. कहते हैं मेल में डाल देना, मै खोल लूँगा. अब ऐसे टेक्नोलॉजी challenged लोगों के साथ क्या किया जावे.

  6. विचार अच्छा है. पहल भी सही है, लेकिन मुझे लगता है की क्रांति या उस जैसा कुछ आने में शायद कुछ और समय लगे.
    चिट्ठे के पठन पाठन की भी अपनी कुछ सीमाएं हैं क्योंकि इनका उभयोद्देश्य अभी भी विचारों की नैसर्गिक और अबाध अभिव्यक्ति और मनोरंजन के लिए उसे पढ़ना है.
    आपने स्वयं ही एक बार विश्लेषण प्रस्तुत किया था की जिन चिट्ठो के शीर्षक “केवल वयस्कों के लिए” जैसे कुछ थे, उन पर ६ महीने बाद भी हिट्स आते रहते हैं. ऐसे पाठकों को कम से कम मैं तो विज्ञान समझाना नहीं चाहूँगा. हाँ हो सकता है की कुछ समय बाद कुछ अच्छा माहौल तैयार हो सके..

  7. कोई भी विज्ञान सरल शब्दों में समझाया जाए तो उसे आम आदमी तक पहुंचाया जा सकता है। शब्दों का सफर ब्लाग इसका उदाहरण है कि भाषा-विज्ञान जैसे शुष्क-दुरूह विषय में भी लोग दिलचस्पी ले सकते हैं, अगर उसे रोचक बनाया जाए। विज्ञान में हर किसी की सहज वृत्ति होती है, दरअसल हर शास्त्र के पंडिताऊ लोग ही नहीं चाहते कि उनके विषय में ज्यादा लोग दिलचस्पी लें, वर्ना उन्हें कौन पूछेगा?

  8. मैँ एक पटवारी हूँ और हमेँ खेत नापने के लिये आज भी राजा अकबर के जमाने की जरीब का प्रयोग करना पड़ता है इस टेक्नालोजी के जमाने मेँ दो स्थानोँ के बीच कि दूरी पता करने के लिये सोनार या लेजर या ध्वनि तरंगोँ की सहायता से डिजिटल अंकोँ मेँ गैजेट की स्क्रीन पर पढ़ा जा सके ऐसे गैजेट (उपकरण) की मेरी खोज जारी है मुझे पता चला है कि laser range finder नामक उपकरण यह काम कर सकता है तो प्लीज मुझे यह बतायेँ कि मैँ लेजर रेँज फाईँडर नामक गैजेट भारत मेँ कहाँ से खरीद सकता हूँ मुझे ऐसा लेजर रेँज फाईँडर चाहिये जो 500मीटर तक की दूरी को सही सही नाप सके bushnell कम्पनी के लेजर फाईँडर मैँ कहाँ से खरीद सकता हूँ यदि किसी को इस बारे मेँ कुछ जानकारी हो तो मुझे मेल करके अवश्य बतायेँ (प्रभाकर विश्वकर्मा ps50236@gmail.comमोबाइल08896968727

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