कौन हैं ये तथाकथित मठाधीश?

image चिट्ठाजगत के मठाधीश!! में मैं ने याद दिलाया था कि कुछ नये चिट्ठाकार कई बार जल्दबाजी में आरोप लगाते देखे गये हैं कि हिन्दी चिट्ठाजगत को कई मठाधीश नियंत्रित करते हैं.  यह एक गलत आरोप है, लेकिन कुछ गलतफहमियां हैं जिनके कारण इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाये जाते हैं. इन में से कुछ का विवेचन यहां प्रस्तुत है:

1. टिप्पणी अकाल: चिठाजगत में आते ही उनको दिख जाता है कि कुछ चिट्ठाकार बहुत जनप्रिय हैं, लोग उनको बहुत पढते हैं, और उनको जम कर टिप्पणियां मिलती हैं. नये चिट्ठाकारों को एकदम लगता है कि उनको भी शायद इसी तरह टिप्पणियां मिलेंगी, लेकिन जब ऐसा नहीं होता है तो उनको एकदम लगता है कि शायद सारी टिप्पणियां चुने लोग बटोरे जा रहे हैं.

ये लोग भूल जाते हैं कि कोई भी संस्था सिर्फ तभी जनप्रिय होती है जब वह लोगों के मन को मोहित कर ले. इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ताऊजी का चिट्ठा. ताऊ जी चिट्ठाकारी में मुझ से बाद में आये, लेकिन सारथी की तुलना में कम से कम पांच गुना (कभी कभी दस गुना) टिप्पणियां बटोर लेते हैं. इस का कारण यह है कि उन्होंने पाठकों की नब्ज पहचान ली एवं ऐसा माल पेश करते हैं जो सुंदर, आकर्षक, आनंददायक, ज्ञानदायक, एवं हर्षदायक है. इतना ही नहीं, हर हफ्ते वे कम से कम 25 से 30 घंटे चिट्ठाकारी के लिये देते हैं.  आप भी ऐसा ही कीजिये, जनता आपके चिट्ठे पर भी टूट पडेगी.

2. प्रशंसा अकाल: कई चिट्ठाकारों को सामान्य से अधिक स्नेह, प्रशंसा,  और लोगों का ध्यान मिलता है. नये चिट्ठाकारों को लगता है कि उनको भी यह सब मिलना चाहिये, लेकिन जब ऐसा नहीं होता है तो वे एकदम से आरोप पर उतर आते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि पूंजीनिवेश किये बिना कभी किसी को कुछ नहीं मिलता. आप जितना अधिक फल चाहते हैं, उतनी ही अधिक पेड की सेवा, खादपानी करनी पडेगी.

उदाहरण के लिये समीर लाल की उडनतश्तरी ले लीजिये. समीर जी एक आलेख पर इतनी टिप्पणियां बटोर लेते हैं कि मुझे सात आलेखों पर उतनी टिप्पणियां नहीं मिल पाती. उनको इतनी टिप्पणियां इसलिये मिलती हैं कि उन्होंने चिट्ठाजगत में हरेक को प्रोत्साहित करना अपना अभियान बना रखा है. स्वाभाविक है कि जो अपना सारा समय दूसरों की सेवा में, उनको प्रेरणा देने में, उनको आगे बढाने में, बिता रहा है, लोग उसके पीछे दीवाने हो जायेंगे. यदि आप भी ऐसा ही फल चाहते हैं तो कर्म भी उसके लायक कीजिये.

सारांश: यदि कोई चाहे तो भी वह चिट्ठाजगत में किसी व्यक्ति के फैलाव को नहीं रोक सकता है. एकाध कुंठासुरों ने ऐसा करने की कोशिश की तो वे खुद हाशिये पर चले गये, पर किसी का कुछ बिगाड नहीं पाये. आप यदि फल खाना चाहते हों तो आरोप प्रत्यारोप के बदल पेड लगाना और सींचना शुरू कीजिये.

 

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Author: Super_Admin

23 thoughts on “कौन हैं ये तथाकथित मठाधीश?

  1. एकदम उचित सलाह दी.

    बहुतेरे विचार के बिन्दु हैं जो अपनाने चाहिये एक सूत्र की तरह, जैसे:

    १. जितना लिखना चाहते हो, उससे कम से कम दस गुना पढ़ो अन्य लोगों को.

    1A-पढ़ा है तो बताओ तो उसे कि पढ़ा है. देखा नहीं कितनी मेहनत से उसने लिखा है और एक तुम हो कि पढ़कर धीरे से निकले जा रहे हो.

    २. लोगों को प्रोत्साहित करो. आप आज अपने पैरों पर चल पा रहे हैं, यह उस प्रोत्साहन का फल है जो आपके माता पिता ने कभी आपको दिया था, बिना किसी फल की चाहत में.

    ३. इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि लेखक ने अपने भरसक अपनी पूरी मेहनत की है आपको आलेख प्रस्तुत करने में, वह आपकी प्रतिक्रिया का हकदार है.

    ४. टिप्पणी न मिलना आपके लेखन की विफलता नहीं है.

    ५. टिप्पणी मिल जाना आपके लेखन की सफलता नहीं है. (मैं समझता हूँ इसे):)

    ६. अच्छा लिखो, अच्छा पढो, सामाजिक मर्यादाओं का पालन करो.

    ७. जो भी लिखो, एक बार सोच कर देखो कि क्या तुम परिवार के साथ बैठकर बिना झिझक वो सब पढ़ सकते हो. यदि हाँ, तो ही लिखना सही है इस सार्वजनिक पटल पर.

    –और भी अनेक अनेक विचारणीय बातें हैं जो समय के साथ साथ पता चलती जाती है, इसलिए सीखने को हमेशा तत्पर रहो. गल्ती सबसे होती है मगर उससे सीख लेकर उसे न दोहराना ही सफलता की कुँजी है.

    -गल्तियों की संख्या असीमित है फिर हर बार नई गल्ती से सीखो, बार बार वही क्यूँ दोहराना. 🙂

    —–इतना भी ज्ञान मत बांटों कि सामने वाला छिटक कर भाग जाये-इसका पालन करते हुए अब बस!! 🙂

    –वैसे चाहोगे तो ऐसी १०० बातों की सूची बनाकर एक पोस्ट बना दूँगा… 🙂 मटेरियल तो चलता हुआ दिखता है. हा हा!

  2. ज्ञान बांटने में शास्त्री जी का आभार कहना तो रह ही गया मेरा जिक्र लाने के लिए.

  3. दुरुस्त फरमाया शास्त्री जी और समीर जी ने. इसके अलावा मुझे यह भी लगता है की टिपण्णी बटोरने और प्रशंसा/स्नेहभाजन बनाने के लिए ब्लौगर में क्या मूलभूत लेखकीय प्रतिभा का होना आवश्यक नहीं है? तकनीकी लेखन को छोड़ दें तो सामान्य लेखन भी रचनाकार से कुछ प्रतिभावान होने की दरकार तो करता ही है. यदि ब्लौगर अच्छा लिखने और अच्छा पढ़नेवाला नहीं है तो वह अपनी पोस्टों में ऊर्जा और मौलिकता कैसे लायेगा? वह लोगों में अपने प्रति रूचि कैसे जगायेगा? ब्लॉगिंग में कुछ समय बिताने के बाद जब वह दूसरों को धडाधड पठन और टिप्पणियां पाते देखेगा तो वह कुंठित होकर उनपर मठाधीश होने का आरोप मढ़ने लगेगा.
    समीर जी की १०० टिप्स की पोस्ट का अब बेसब्री से इंतज़ार रहेगा:)

  4. एक नए ब्लॉगर के मन में जो बातें आती हैं, उन्हें आप ने लिख दिया. अच्छा लगा.

    व्यक्ति स्वांत: सुखाय भी तो लिख सकता है. अंगूर खट्टे हैं जैसी कोई बात नहीं. कितना सुकून मिलता है, अपनी बात को प्रकाशित हुआ देख कर ! लगता है कोई नया जीव रच दिया हो !

  5. गुरूदेव! आप ने तो कल वाली पोस्ट के गुब्बारे की पूरी हवा आज ही निकाल दी। कुछ दिन तो उसे आसमान में विचरण करने देते। मैं तो कल सुबह से मठ तलाश कर रहा हूँ। अभी तक नहीं मिल रहा। कोई मिल जाए तो उस पर मैं भी अपना आधिपत्य जमाने का प्रयत्न तो करूँ।

  6. मेरे हिसाब से न्यूटन का तीसरा नियम जीवन में भी प्रायः हर जगह लागू होता है। जितना प्रयास उतना परिणाम। समीर जी से इत्तिफाक रखते हुए एक बात जोड़ना चाहता हूँ को कि इस कड़ी में नये रचनाकारों को वरिष्ठ लोगों द्वारा यथायोग्य सलाह और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

  7. अभी तो ताऊजी कि बारी है देखे वो क्या बॉटते है। ताऊके ज्ञान सन्देश प्रसारण के बाद, ही हे प्रभु! तुरन्त सारथी पर अपना मत रखेगे।

  8. अच्छा विश्लेषण। आप आभार के पात्र इसलिए भी हैं कि इस पोस्ट को पढ़कर समीर जी को अपनी ज्ञान की गठरी थोड़ी खोलनी पड़ी है। उसमें सौ रत्न वे छिपाए हुए हैं, केवल 7 बांटकर बच निकलना चाह रहे हैं। ऐसी कृपणता उन्हें बिलकुल शोभा नहीं देती। इसलिए वे बाकी रत्नों को भी तुरंत ही ब्लोग-राज्य की प्रजा में बांट दें। हम उनकी हजार कंठ से जय-जयकार कर उठेंगे!

  9. आज शाश्त्री जी ने बहुत ही बढिया प्रसंग ऊठाया और उस पर उतनी ही सुंदर बात कमेंट के रुप मे समीरलाल जी ने कही है.

    अगर कोई माने तो यही बाते समीरलाल्जी ने मुझे शुरुआती दिनों मे कही थी. इसीलिये मैं अपना चित्ट्ठाकारी का गुरु उनको मानता हूं. और आज वही बाते वो सार्वजनिक रुप से कह रहे हैं. इसका मतलब साफ़ है कि गुरु या कहें कि वरिष्ठ लिगों की नियत मे कोई खोट नही है.

    अगर कोई कमी है तो शिष्य मे ही है. बादल तो पानी बरसा ही रहा है..अब हम अपने घडे का मुंह ही उल्टा करके बैठ जायें तो हमारा घडा तो खाली ही रहने वाला है.

    हां यहां कोई जरुरी नही है कि सब आपको हाथों हाथ ही लेंगे. नियमित लिखे..उतना ही नियमित जितना नियमित आप आफ़िस जाते हैं. इस धंधे मे कमाई नही है…इसमे कमाई यही है जो आज मेरे और समीर जी के नाम का जो हवाला शा्श्त्री जी ने दिया है…वो ही कमाई है..रुपया पैसा सब बेकार है उसके सामने. अब ये आप पर निर्भर करता है कि आपको कैसी कमाई चाहिये?

    अब ज्यादा क्या कहें? गुरु समीर जी ने सब कुछ साफ़ साफ़ तो समझा दिया है.

    किसी भी हालत मे कुंठाग्रस्त ना हों…बस अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे आनंद महसूस करें..आप देखेंगे कि आपके आसपास काफ़ी सारे मित्र इकट्ठे हो गये हैं…. यहां सभी बहुत सह्रदय और नेक लोग हैं…

    कभी कभी तल्खी की कोई बात हो भी जाये तो उस पर मिट्टी डालिये आखिर एकाध गंदी मछली तो सब जगह होती ही है. आप जिसे बडी मछली समझते हैं वो भी हो सकती है. फ़िक्र मत पालिये..आखिर ऐसे व्यवहार करने वाली यही बडी मछली ही बाहर जायेगी इस तालाब से.

    माननिय शाश्त्री जी का आभार यहां इज्जत बख्सने के लिये कि आज हमारे गुरुदेव के साथ बैठाकर प्रसंशा कर डाली. अब क्या पता हम इस लायक हैं भी या नही.

    रामराम.

  10. @ ताऊजी ने कहा- “नियमित लिखे..उतना ही नियमित जितना नियमित आप आफ़िस जाते हैं. इस धंधे मे कमाई नही है…इसमे कमाई यही है जो आज मेरे और समीर जी के नाम का जो हवाला शा्श्त्री जी ने दिया है…वो ही कमाई है..रुपया पैसा सब बेकार है उसके सामने. अब ये आप पर निर्भर करता है कि आपको कैसी कमाई चाहिये?

    उपर लिखे शब्दो को ध्यान से पढे> ताऊजी ने ब्लोगजीवन के लिऐ बडी ही मजबुत टिकाऊ वाली बात कर गऐ है। ताऊजी ने, ब्लोग दुनिया मे हमारी क्या भुमिका होनि चाहिए का वास्तविक निवारण बताया। यह बात सही है घर एवम समय फुक कर हमे ब्लोग लिखना है जिसमे कमाई कुछ नही है। अगर यहॉ कोई कमाई है तो वह है- प्यार, मोहब्बत, दोस्ती, बन्धन, एवम लोगो का आर्शिवाद। इसलिए हे प्रभु, श्री समीरलालजी (महाताऊ भारत) एवम पी सी रामपुरीयॉजी
    (ताऊ, भारत} को ससम्मान अच्छी विचार धाराओ सकारात्मक सन्देशो के लिऐ बधाई।

  11. @ ताऊजी ने कहा- “नियमित लिखे..उतना ही नियमित जितना नियमित आप आफ़िस जाते हैं. इस धंधे मे कमाई नही है…इसमे कमाई यही है जो आज मेरे और समीर जी के नाम का जो हवाला शा्श्त्री जी ने दिया है…वो ही कमाई है..रुपया पैसा सब बेकार है उसके सामने. अब ये आप पर निर्भर करता है कि आपको कैसी कमाई चाहिये?

    उपर लिखे शब्दो को ध्यान से पढे> ताऊजी ने ब्लोगजीवन के लिऐ बडी ही मजबुत टिकाऊ वाली बात कर गऐ है। ताऊजी ने, ब्लोग दुनिया मे हमारी क्या भुमिका होनि चाहिए का वास्तविक निवारण बताया। यह बात सही है घर एवम समय फुक कर हमे ब्लोग लिखना है जिसमे कमाई कुछ नही है। अगर यहॉ कोई कमाई है तो वह है- प्यार, मोहब्बत, दोस्ती, बन्धन, एवम लोगो का आर्शिवाद। इसलिए हे प्रभु, श्री समीरलालजी (महाताऊ भारत) एवम पी सी रामपुरीयॉजी
    (ताऊ, भारत} को ससम्मान अच्छी विचार धाराओ सकारात्मक सन्देशो के लिऐ बधाई।

  12. @ सारथी जी
    सत्य वचन कहा आपने
    @समीर जी
    आपकी कही सभी बाते मानना चाहता हूँ मगर कभी कभी ऐसी पोस्ट भी गलती से पढ़ लेता हूँ जहाँ टिप्पडी न ही करने में समझदारी हो तो खिसक लेता हूँ

    वीनस केसरी

  13. bahut sahi likha hai aap ne —
    पूंजीनिवेश किये बिना कभी किसी को कुछ नहीं मिलता. आप जितना अधिक फल चाहते हैं, उतनी ही अधिक पेड की सेवा, खादपानी करनी पडेगी.
    -yah to aajmayee hui bat hai…
    -agar blogging mein inactive ho gaye to aksar log bhool bhi jaldi hi jaatey hain.
    -Is lekh mein bahut hi achcha vishleshan kiya gaya hai.

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