कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में मुसीबत नहीं बुलाना चाहता है. न ही कोई अकलमंद व्यक्ति मुसीबत को न्योता देता है. लेकिन चाहनेसोचने से कुछ नहीं होता, मुसीबत फिर भी हरेक के घर आ ही जाती है.
आप सुबह से रात मेहनत कर, अपनी सामर्थ से ऊचे विद्यालय की फीस देकर, अपनी जरूरतों को भूल कर, पुराने कपडे पहन कर अपने बच्चे को बडी मेहनत से पढाते हैं. महंगे से महंगा ट्यूशन दिलवाते हैं. जिंदगी में उसे वे सारी चीजें प्रदान करते हैं जिनकी कल्पना तक आप नहीं कर पाते थे. लेकिन एक दिन प्रिन्सिपाल आपको बुला कर खबर देता है कि आपका लाल पिछले तीन महीने से विद्यालय नहीं पहुँच रहा है और अब वह पुलीस स्टेशन पर है, या आपकी गुडिया शहर के एक आलीशान पब में नशे में धुत लुच्चाई करती हुई पुलीस के द्वारा पकडी गई है तो वाकई में आपके पैरों तले जमीन खिसक जाती है. इसके साथ साथ कई लोगों के जीवन में सब कुछ खतम हो जाता है.
जब सब कुछ सही चल रहा होता है तब हम सब बडे हिम्मती हो जाते हैं, लेकिन जब छत अचानक टूट पडती है तब हम सब एकदम कायर बन जाते हैं. असल में हिम्मत बांध कर स्थिति का सामना करने की जरूरत तब है जब बिना किसी पूर्वसूचना के सारी मुसीबतें एक साथ टूट पडती हैं. इसके बाद उस मुसीबत का क्या होगा यह आपके नजरिये पर निर्भर करता है.
यदि नजरिया सकारात्मक, आशावादी, हो तो आप बिगडती स्थिति को संभाल सकते हैं. नजरिया नकारात्मक, निराशावादी, हो तो जो बिगडा है उसका परिणाम उससे भी अधिक बुरा हो सकता है. यह न भूलें कि दुनियां कल खतम नहीं हो जायगी. बिगडे को पुन: बनाने के लिये, पहले से अच्छा बनाने के लिये, अभी आप को सैकडों अवसर मिल सकते हैं — यदि नजरिया सही हो तो!!
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@‘आपकी गुडिया शहर के एक आलीशान पब में नशे में धुत लुच्चाई करती हुई पुलीस के द्वारा पकडी गई’। ऎसी टिप्पड़ी से ‘पब’ कल्चरिस्ट बुरा मान कहीं कुछ पिंक-पिंक न भेजनें लगे। भेजें तो भेजते रहें। सच तो कहना ही पड़ेगा।
ऐसा माद्दा बनाए रखें कि धरती पैरों के नीचे से न खिसके। अच्छे से अच्छे के लिए प्रयास रहना और बुरे से बुरे का सामना करने को तैयार रहना चाहिए।
ठीक विचार !
सही विचार हैं.
सत्य वचन।
लौ थरथरा रही है बस तेल की कमी से।
उसपर हवा के झोंके है दीप को बचाना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
shashtri jee, ye to jeevan kaa yathaarth hai magar jo in paristhitiyon mein jaisaa bhee vyavhaar karta hai ya jaisa bana rahtaa hai wo bahut se kaarno par nirbhar kartaa hai haan jeevan ke prati sakaaraatmak drishtikon ho to achaa hai……
सकारात्मक सोच की अहमियत को रेखांकित करने वाला लेख.आभार
मां बाप अपना पूरा जीवन पाई पाई खर्चा कर देते हैं तब जाकर उन्हें एक वाक्य कहने का अधिकार मिल पाता है की “हाँ, हमने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं”. ऐसे संस्कार न एक दिन में बनाये जा सकते हैं और ना एक दिन में मिटाए जा सकते हैं. ऐसे में अगर औलाद धोखा ही दे दे तो फिर क्या कहा जाए..
रोज के काम में इतने साप्राइज मिलते हैं कि क्या बतायें। कई बार सरप्राइज देख आंखें फटने की बजाय ऊब से मुंदने लगती हैं।
क्या नौकरी है!
नजरिया, क्या हम एकदम से बना सकते हैं। क्या नजरिया बनाने में परिस्थितियों का कोई रोल नहीं होता। अगर होता है तो विपरीत परिस्थितियों और अधूरे या घटिया प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके लोग कैसे बेहतर नजरिया बनाएंगे। क्या केवल यह कहने से काम चल जाएगा कि भईया नजरिया सुधार ले सब ठीक हो जाएगा। पिछली गलतियों का क्या होगा।
और पैराडाइम शिफ्ट भी तो है 🙂
आज का लेख माता-पिता को सकारात्मक नज़रिया रखने का सन्देश देता है… कभी भी कुछ भी हो सकता है…विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत का होना बेहद ज़रूरी है..
शास्त्री जी ,
विविधा-मंथन पर आगमन एवं सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद |
शास्त्री जी ‘पैरों तले की धरती के खिसकने ‘ की स्थिति एक दिन में नहीं आती ,पहले संस्कारों की धरती पोली होती है तब खिसकने की स्थिति आती है | अभिभावकों और संतानों के बीच जेनेरेशन गैप एवं संवादों का आभाव ही इसका वास्तविक कारण होता है | पालितों को केवल सुख-सुविधाएं उपलब्ध करा कर उनके प्रति कर्तव्यों की इतिश्री मान लेना , उम्र से अधिक अधिकार एवं सीमा से अधिक स्वतंत्रता देना आदि ही उन्हें उच्श्रंखल बनाता है | अतः इसके लिय वे नहीं शायद हम ही असली दोषी हैं
जीवन -यात्रा के हर मोड़ पर रुक कर सोचना आवश्यक है ” जिन्दगी के सफ़र में / हर मोड़ पर रुकिए और सोचें / सफ़र पे क्या-क्या ले निकले थे / राहों में कितना खोया और सहेजाया / निभाया रिश्तों को किसने-किसने /मैं भी इनको कितना जी पाया //