लगभग 15 साल पहले ग्वालियर से कोच्चि पहुंचा तो साल भर में औसत 170 दिन बरसात के लिये अपने आप को तय्यार करना आसान नहीं था. (जी हां, यहां साल में 200 से अधिक सूखे दिन नहीं मिल पाते हैं). पानी बरसना चालू हो जाता है तो कई बार 12 घंटे लगातार बरसता है.
हमारे घर के आसपास इतना पानी हो जाता है कि कई बार मछलियां और छोटे से कछुए हमारे आंगन में आ जाते हैं. प्रकृतिप्रेम के कारण इन सब चीजों में मुझे बहुत आनंद आता है. लेकिन एक चीज है जिस के लिये मैं तय्यार नहीं था, और वह है यहां की बिजली.
पश्चिमी मानसून के आरंभ में (जून), और पूर्वी मानसून (अक्टूबर के आसपास) के आरंभ में बिजली कडकती है तो ऐसा लगता है जैसे बम गिराये जा रहे हैं. बिजली गिरने से हर साल केरल में कई मौतें होती हैं. टेलिफोन एक्सचेंजों की तो खैर नहीं है और हर तरह की सुरक्षा के बावजूद हर साल सैकडों सर्किटकार्ड जल जाते हैं.
बरसात के समय और बिजली कडकने के दौरान टेलिफोन का उपयोग एकदम वर्जित होता है. इसके बावजूद कई लोग लापरवाही से दूरभाष का उपयोग करते हैं और बिजली गिरने के कारण बुरी तरह जल जाते है, और कई बार जिंदा नहीं बचते हैं. आज से 10 साल पहले हमारे सामने बिजली हमारे नारियल के पेड पर कडकी और मेरी आखों के सामने उसका ऊपरी हिस्सा जल गया. प्रकृति वाकई में शक्तिशाली है.
बिजली कुछ इलाकों में अधिक गिरती है और उन इलाकों में अधिक सावधानी रखी जाती है. ऐसे इलाकों में मकानों-ढांचों के ऊपर तडित-चालक अकसर दिख जाते हैं. सौभाग्य से दो साल पहले मेरे घर के पास बीएसएनएल का टावर आ गया है जिसकी उंचाई इतनी अधिक है कि अधिकतर बिजली सीधे उसके तडितचालक पर गिरती है. इसे देखना एक रोमांचक अनुभव होता है. हर बार लगता है, जान बची तो लाखों पाये!!
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मनुष्य को प्रकृति के अनुरूप ही ढलना होता है। यही उस के जैविक विकास की शक्ति भी है। प्रकृति को पहचान कर उस की शक्तियों से बचाव की व्यवस्था तो रखनी ही होगी।
बहुत उपयोगी और रोमांचक.
रामराम.
अच्छा लगा केरल के बारे में पढ़कर।
केरल से संबंधित मेरे ब्लोग केरल पुराण पर भी जरूर पधारें। इसमें मैं केरल के एक प्रसिद्ध ग्रंथ ऐतीह्यमाला (कोट्टारत्तिल शंकुण्णी) का हिंदी अनुवाद दे रहा हूं।
चलो टावर देवता आपकी रक्षा कर रहे है.. खुसनसीब है आप..
अरे भैय्या क्या मजा आता है. यहाँ तो सब सूखा सूखा है.
प्रकृति ही हमें विनम्र रहना सिखाती है। बिजली की कौंध के रूप में या 49 डिग्री तापमान में या जमीन धंसकने के रूप में उसकी शक्ति का प्रदर्शन होता है और हम झुककर विनम्र हो जाते हैं।
ye to jaantaa tha ki bijlee kitnee khatarnaak hoti hai magar ye nahin pata tha ki phone se aisee ghaatak saabit ho sakti hai…
अच्छी जानकारी……
साभार
हमसफ़र यादों का…….