चिट्ठे किस तरह से जनप्रिय हों इस मामले में मैं काफी लिख चुका हूँ. यह अनुभव और अनुसंधान दोनों पर आधारित है. इन बातों के प्रयोग से सारथी को कितना फायदा हुआ है यह भी आप लोग देख रहे हैं. अनुमान है कि 2009 के अंत तक सारथी पर एक महीने में 600,000 से अधिक हिट्स आने लगेंगे.
चिट्ठाजगत में मुझ से अधिक अनुभवी हैं रवि रतलामी. उन्होंने भी कई बार याद दिलाया है कि Content is the King in the Blogworld!! मतलब यह कि चिट्ठाजगत में आप तभी स्थाई जनप्रियता और नियमित पाठक पा सकेंगे जब आप के पास पाठकों को परोसने के लिये विविधता से भरपूर, उम्दा और स्वादिष्ट माल होगा.
किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह नियमित रूप से कचरा पढता रहे. लेकिन कई चिट्ठाकार अभी भी इस बात को नहीं पहचानते हैं और अपने चिट्ठे को हिट करवाने के लिये परनिंदा का सहारा लेते हैं. एकाध दिन के लिये काफी हलचल, होहल्ला, की स्थिति होती है, लेकिन अगले दिन वह चिट्ठाकार हाशिये के और अधिक निकट खिसक जाता है. पिछले तीन सालों में कई सारे प्रतिभाशाली चिट्ठाकार इस चक्कर में पड गये और कूडा परोसते रहे. लेकिन आज तक उन में से एक भी चिट्ठाजगत में अपनी पहचान नहीं बना सका है.
हर कोई जानता है कि कादम्बिनी, नवनीत, सरिता आदि पत्रिकाओं को छोड कर सस्ती और सडक-छाप पत्रिकाओं को कौन पढता है. अधिकतर स्तरीय लोग सडकछाप चीजों से परहेज करते हैं. चिट्ठाजगत में भी यही हिसाब है. अत: यदि आप के मन में कभी भी यह बात आये कि नुक्तचीनी के द्वारा पाठक एकत्रित किये जाएं, तो उस विचार को तुरंत ही त्याग दें. हिन्दी के सबसे अधिक प्रचलित पांच से दसबीस चिट्ठों को जरा जांच कर देखें. अच्छा माल परोसने के द्वारा ही वे चोटी पर पहुंच सके हैं.
यदि जनप्रिय बनना चाहते हों तो आप भी इसी रास्ते पर चलें!!
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शास्त्री जी आपका का कहना इस अर्थ में सही है कि हिन्दी चिट्ठाजगत अभी भी परिपक्कव् नहीं हुआ है -अभी यहाँ बहुत सी ऊल जलूल बातें चल रही हैं -अधकचरी समझ है ,बकौल ज्ञानदत्त जी के कबीलाई मानसिकता है और सहिष्णुता का तो बिलकुल अभाव है ! सभ्य .समाज के सुनहले नियमों से वंचित ब्लागजगत से आशाएं तो अभी भी हैं !हाँ जिस और आपका इशारा है वे निश्चित तौर पर कालातीत हो जायेंगें क्योंकि अब उनके पास कुछ कहने को रह ही नहीं गया है -फटी ढोलें कब तक पिटेंगी? उन्ही ब्लागों की उत्तरजीविता बरकरार रहेगी जिनमे ईमानदारी से समाज को कुछ देने का सेवा भाव होगा -कमिटमेंट होगा ! घृणा और वैमनस्य फैलाने वालों के दिन लद्ते जायेगें ! किमाधिकम ?
लोकप्रिय चिठ्ठा बने परनिन्दा पे जोर।
क्षणिक सफलता के लिए नुस्खा है बेजोड़।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपका विश्लेषण बिल्कुल सही है यदि चिट्ठे में पढने लायक अच्छा हुआ तो ट्रेफिक अपने आप आएगा |
एक बात और आपके चिट्ठे पर इतने ज्यादा हीट होते है लेकिन अभी तक आपके चिट्ठे की अलेक्सा रेंक 720132 तक ही सिमित क्यों है ?
सत्यवच, अपना गरेबाँ छोड़कर दूसरों का कॉलर पकड़ने वालों का हश्र तो निश्चित ही समझिए। मूर्ख है जो दूसरों की कमियाँ देखकर अपने को महान समझता है। यही बात उसे मूर्खों की श्रेणी में ला खड़ा करती है।
बढ़िया बात का शुक्रिया
अच्छी सलाह है। श्रेष्ठ सामग्री की हर समय और हर जगह की कद्र होती है।
@Ratan Singh अलेक्सा रेंक काफी सारी बातों पर निर्भर करता है एवं गैर अंग्रेजी जालस्थलों के लिये विश्वसनीय आंकडे नहीं देता है.
आपने बहुत ही सटीक सलाह दी है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
हर बार कहा जाता है की चिट्ठाकारी वैयक्तिक कार्य नहीं है. लोग एक दूसरे के साथ आगे बढ़ते हैं. खुद लिखते हैं और दूसरो का लिखा पढ़ते हैं. ये एक बड़ा सा परिवार सा है.. लोग एक दूसरे को व्यक्तिगत स्तर पर भी जानने लगते हैं.. संवाद होता है. तो ऐसे में ये उम्मीद करना की हमेशा मीठी ही बातें होंगी, गलत है.
अच्छी सलाह है।धन्यवाद।
आप न बहुत सुंदर लिखा, अगर हम किसी की छोटी सी गल्ती को ले कर हंगामा मचा दे तो यह कब तक चलेगा ? क्योकि हंगामा मचाने बाले को आज तो हिंट ज्यादा मिल रहे है लेकिन कल वो आप को , परसो वो किसी ओर को पकडेगा, फ़िर धीरे धीरे बदनाम हो जाये गा, इस लिये सीधे साधे रास्ते पर चले तो शांति ही शांति है.
धन्यवाद आप ने बहुत ही अच्छी बात बहुत ही अच्छॆ तरीके से बता दी.
आपकी बात का पूरा समर्थन मैं अपने एक साल के अल्प अनुभव के आधार पर ही कर सकता हूँ। आपने बिल्कुल सटीक बात लिखी है।
मुझे लगता है कि कुछ लोग ब्लॉगिंग के इस माध्यम में मिलने वाली अतुलनीय स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने के चक्कर में पड़कर अपनी सलाहियत का कबाड़ा निकाल ले रहे हैं।
संयम का महत्व सर्वत्र है।
बड़ा गहरा अनुभव है जी शास्त्री जी आपको
आप ने बिलकुल सही कहा।
इन्सान के शव को जलाने के बाद भी अस्थियाँ शेष रह जाती हैं, और बिना अस्थि के शरीर में सिर्फ जुबान है उसे मन से नियंत्रित रखना चाहिए। वह तो निकल कर वापस घुस जाती है, सजा बेचारा सर भुगतता है।
बिना कंटेंटे के लिखा हुए की उम्र बहुत कम होती है और इस तरह का लगातार लिखने वाले की भी।
सत्य वचन!!
अच्छी सामग्री निश्चय ही दीर्घजीवी और शाश्वत मूल्य का बना देती है चिट्ठों को । बहुत कुछ तो अरविन्द जी की टिप्पणी ने ही कह दिया है । आलेख का धन्यवाद ।
डॉ अरविन्द मिश्रजी की बात सही है. केवल वही ब्लौग स्थाई रह पाएंगे जो अपने पाठकों को या तो उत्कृष्ट सामग्री परोस पाएंगे या उनका भरपूर मनोरंजन कर पाएंगे.
विश्लेषण बिल्कुल सही!!
अरविन्द जी की टिप्पणी ने कह ही दिया है!!
पूर्णतः सहमत !
एक बात मेरी समझ में नहीं आती, आपके अनुसार आपके ब्लॉग का ट्राफिक 50 हजार प्रति माह है, फिरभी आपके ब्लॉग का एलेक्सा ट्राफिक रैंक इतना कम क्यों है?
दूसरी बात यह कि आपके ब्लॉग पर विजिटर को दर्शाने वाला कोई भी विजेट क्यों नहीं है?
अगले माह के प्रथम सप्ताह में, आपको ब्लॉगजगत से सम्बंधित एक खुशखबरी देने का प्रयास करूँगा।
किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह नियमित रूप से कचरा पढता रहे. लेकिन कई चिट्ठाकार अभी भी इस बात को नहीं पहचानते हैं और अपने चिट्ठे को हिट करवाने के लिये परनिंदा का सहारा लेते हैं.
सच है, ऐसे कई परजीवी अब काफी परनिंदा करने के बाद भी कोई हलचल नहीं मचा पा रहे हैं.