(मेरे जीवन की एक अविस्मरणीय घटना 002) लगभग दस साल पहले की बात है, मैं अपने घर से 150 किलोमीटर दूर एक जगह एक कान्फेरेन्स में भाषण देने जा रहा था. बेटरी में कुछ गडबड हो गई. एक हलकी सी चढाई पर अचानक गाडी रुक गई.
मुझे लगा कि गाडी अब सिर्फ धक्के द्वारा ही चालू हो सकती थी. (आज का दिन होता तो गाडी को अपने आप पीछे जाने देता और फिर रिवर्स गियर में डाल गाडी को स्टार्ट कर लेता, लेकिन तब यह तकनीक नहीं जानता था). आसपास मीलों तक कोई चिडिया भी नहीं दिखाई दे रही थी, आदमी की तो बात छोडिये.
सोचा कि मारुती वेन को चाहे तो एक आदमी धक्का देकर आगे बढा सकता है और मैं ने धक्का देना शुरू किया. पहले तो गाडी टस से मस न हुई. गाडी चढाई पर जो खडी थी. लेकिन दोतीन मिनिट की कोशिश के बाद गाडी अचानक हिलने लगी और रेंगते रेंगते आगे बढी. लेकिन लाख कोशिश के बावजूद वेग में कोई बढोत्तरी नहीं हुई.
नया ड्राईवर, मैं पसीने में नहा गया. कुछ नहीं सूझ रहा था. कान्फेरेंस में पहुंचने का समय पंख लगा कर उड रहा था. आंखों तले अंधेरा छाने लगा था. लेकिन गजब! अचानक गाडी ने तेजी पकड ली और आराम अच्छे वेग से आगे बढने लगी जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे धक्का दे रहा हो. मैं ने क्षण भर के लिये हाथ हटा कर देखा तो भी गाडी चलती रही. इसे ईश्वर की कृपा जान कर मैं एकदम कूद कर अंदर चला गया और गियर में डाल गाडी चालू कर ली. इसके बाद चालू हालत में उसे रोक कर मैं यह देखने के लिये उतरा कि चली तो गाडी चली कैसे.
देखा तो लगभग 70 साल का एक वृद्ध एवं उनकी पत्नी खडे थे. वे गाडी की दूसरी ओर स्थित एक घर से निकल कर आये थे अत: मैं उनको न देख पाया था. उन्होंने आकर धक्का देकर मेरी मदद की थी. 70 साल का एक वृ्द्ध दंपत्ति!! जब मैं ने आभार प्रगट किया तो वे सज्जन बोले कि हरेक “मानव” की जिम्मेदारी है कि वह जरूरतमंद की मदद करे!!
70 साल का एक वृ्द्ध दंपत्ति!! मैं हैरान रह गया. मैं हमेशा सडक किनारे बंद पडी गाडियों को धक्का देने के लिये अपने वाहन से उतर पडता था. लेकिन उस दिन मैं ने गांठ बांध ली है कि इस कार्य को और अधिक सक्रियता से करना मेरी जिम्मेदारी है. नहीं तो मैं सच्चा “मानव” नहीं हूँ.
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सुंदर और प्रेरक संस्मरण!
सहायता करने वालों की सहायता ही ईश्वर किया करते हैं, या किसी को सहायता के लिये उपस्थित कर देते हैं ।
अच्छा लगा संस्मरण।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुंदर और प्रेरक संस्मरण!
आपके इस प्रसंग से हमको भी प्रेरणा मिलती है. आभार.
रामराम.
सूखती हुई संवेदनाओं के जमाने में आश जगाती पोस्ट ।
हवन करते हाथ जला लेने का भय आज हाबी है। लेकिन मानव ही मानव की सहायता नहीं करेगा तो कौन करेगा ?
शहरों में शायद ऐसा कोई न करता। सुंदर संस्मरण।
प्रेरक संस्मरण!
बेहद प्रेरणादायक प्रसंग.. लेकिन सामयिक..
सभी परिस्थितियों में ऐसा संभव ना हो शायद. ग्रामीण अंचलों में पले बढे लोग बड़े भोले होते हैं.. पर शहरों के लोग नहीं.
आ, शास्त्रीजी
कुछ दिनो से मुम्बई मे नही था इसलिए “सारथी” से वन्चीत रहा।
कल आकर के पुरा “सारथी” को पढा ।
आपके सुंदर संस्मरण। अच्छा लगा। आप सभी को शुभकामनाऐ-
शास्त्री जी बहुत सुंदर बात बताई, यह मेरी जिन्दगी का एक नियम है, जो भी मदद मांगे उस की मदद जरुर करो.बहुत सुंदर बात लिखी आप ने, ओर वाक्या भी रोमांचकारी लगा, क्योकि आप ने इसे लिखने मै रोमांच जो भर दिया.
धन्यवाद
संसार में पुण्यात्माएं भी हैं. इस बात कि पुष्टि होती है आपके संस्मरण से. प्रेरक.
प्रेरक!
वे वृद्ध व्यक्ति तो दृश्य थे फिर अदृश्य क्यों कह रहे हैं? बेकार में भूत-प्रेत की कथा का आभास होता है.
७० वर्षीय आदर्श दँपत्ति के बारे मेँ पढने का आनँद आ रहा है –
ऐसे भी कुछ घटता ही है जीवन में -मेरे साथ भी !
mai is kahani se bahut prabhavit huwa…