(मेरे जीवन की एक अविस्मरणीय घटना 003) बात 1980 के आसपास की है. मैं ग्वालियर के मिस हिल विद्यालय में भौतिकी विभाग का मुखिया था. (मैं खुद इसी विध्यालय का पढा हुआ हूँ एवं मेरे बच्चे भी यहीं पढते थे). इस कोएजुकेशन विद्यालय का माहौल बहुत ही अच्छा था और विद्यार्थीयों का मुझ से और मेरा अपने विद्यार्थीयों से बहुत अधिक लगाव था. पिता पुत्र/पुत्री जैसा संबंध था. हम लोग कई बार एक साथ खातेपीते थे.
भौतिकी की प्रायोगिक परीक्षा चल रही थी. यह कोई आसान बात नहीं थी — न अध्यापकों के लिये, न विद्यार्थीयों के लिये. इसे मन में रख कर मैं हर विद्यार्थी का बेहद ख्याल रख रहा था, और बाह्य परीक्षक को इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई.
भौतिकी और रसायन प्रायोगिक में बुरा वक्त आने पर अच्छे से से अच्छे विद्यार्थी का भी प्रयोग असफल हो जाता है. उस समय अनुभवी अध्यापक उस प्रयोग को करे तो वह भी असफल रहता है. मैं ने सब से कह रखा था कि ऐसा होने पर आपस में पूछने के बदले मुझे बुला लें. दो दिन में हम ने लगभ 120 विद्यार्थीयों की परी़क्षा निपटाई जिन में से दस प्रतिशत को परेशानी हुई, लेकिन सब को मैं ने समय पर हल कर दिया.
लेकिन मेरी बहुत ही होशियार एक विद्यार्थिनी का प्रयोग उस दिन हर तरह से असफल रहा. मैं व्यस्त था इस कारण एक बहुत ही होशियार एक लडके से उसकी मदद के लिये कहा. दस मिनिट में उस ने हाथ उठा दिया. तब मैं ने अपने साथी भौतिकी के अध्यापकों से उसकी मदद करने को कहा. दस मिनिट में उन्होंने भी हाथ उठा दिया. भौतिकी प्रयोगशाला में ऐसा होना आम बात है. अध्यापक पसीने पसीने हो रहे थे. लडकी की हालत तो उससे भी खराब थी.
अंत में मैं खुद गया और उस उपकरण को पूरी तरह से जांच कर उसे ठीक किया. तब तक तीनचार घंटे की परी़क्षा में सिर्फ आधा घंटा बचा था और कोई भी व्यक्ति प्रयोग, गणना, लिखना आदि इस समय में खतम नहीं कर सकता था. अत: साथी अध्यापक को एवं एक विद्यार्थी को उसकी मदद के लिये लगाया.
उसी कमरे में मैं और बाह्य परीक्षक बैठ कर प्रेक्टिकल फाईलों का मूल्यांकन और गणना अदि कर रहे थे. उन दिनों इलेक्ट्रिक केलकुलेटर दुर्लभ था, लेकिन वह लडकी केलकुलेटर लेकर आई थी. उसे जरा मांग कर हम दोनों पुन: जांच के कार्य में लग गये. समय पर वह लडकी अपनी कापी जमा कर मेरे पास आई और बोली “सर, हम सब आप को पिता तुल्य मानते हैं. आज सच्चाई देख ली” और चली गई.
तीन दिन बाद पुन: अध्यापन शुरू हुआ और विद्यार्थी कक्षाओं में आये तो मैं ने उसका केलकुलेटर लेबब्वाय के हाथ भिजवा दिया. लेकिन वह साफ मुकर गई और बोली कि वह तो केलकुलेटर लेकर आई ही नहीं थीं. मैं ने उसे अपने पास बुला कर पूछा तो सीधे मेरे चेहरे पर देख कर बोली, “सर आपको गलतफहमी हुई है. मेरे पास कोई केलकुलेटर नहीं था. वह आपका ही होगा”.
कैसी गुरुदक्षिणा थी यह!! वह भी उस जमाने में जब सिर्फ लाट साहब लोग ही केलकुलेटर खरीद सकते थे! वह केलकुलेटर लगभग दस साल चला और मुझे हर बार जिंदगी के एक विरल अनुभव को याद दिलाता रहा.
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यह तो लडकी के दिल की बात है। उसमें कुछ न कुछ तो रहा होगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
गुरूदक्षिणा ही होगी वो शास्त्री जी।काश आप जैसा गुरू हमे भी मिलता।
शास्त्री जी बहुत सुखद अनुभव बांटा आपने हमारे साथ…काश आज भी ऐसे विद्यार्थी और आप जैसे गुरजन होते..होंगे तो सही …मगर कम जरूर हो गए हैं…सब परिस्थितिओं का दोष है…
अब सर! क्या बताऐ, मोहतर्मा ने ऐसा क्यो किया इस विषय कि जॉस होनी चाहिऐ। गुरु दक्षिणा तो नही पर हॉ डर सम्भव है। हो सके तो स्टुडेन्ट को ढुढे व पुछले, क्यो कि गुरु दक्षिणा अज्ञात नही हो सकती, चुकी आपने अपने सस्मरण मे कही भी इस शब्द का प्रयोग नही किया है अतेव चिन्ता कि कोनोही बात नही।
HEY PRABHU YEH TERA PATH
ghatna badi dilchasp thi.
मन हर्षित हो गया……बड़ा ही अच्छा किया आपने जो इस संस्मरण को प्रकाशित किया..आज जब गुरु शिष्य का सम्बन्ध इतना विवादस्पद और भावनाहीन होता जा रहा है ऐसे में ऐसे प्रसंग मन को बड़ा ही सुकून देते हैं..
काश sabhi गुरु और शिष्य ऐसे ही होते….
अभी तो यह भी पक्का नहीं कि कैलकुलैटर उस लड़की का ही था। सबूत?
@दिनेशराय द्विवेदी
सबूत ढूढना पडेगा !!
अब इतने समय बाद सबूत कहाँ से मिलेगा?….अब जो बात सच मे हुई है उसे मान लेना चाहिए।अदालती कार्यवाही हुई तो मामला बिगड़ता चला जाएगा।….फैसला लटक जाएगा:))
हम तो बिना सबूत मानते हैं कि ऐसे गुरू और शिष्य होते हैं।
बहुत दिल्चस्प लिखा है.
रामराम.
अब कहाँ ऐसे गुरू और कहाँ ऐसे शिष्य?
सम्मान अपने आप दिखता है, दिया जाता है….
लाट सा’ब की बेटी होगी, इसलिए मुकर गयी 🙂
घटनाक्रम दिलचस्प है।
लगता है आपने पहले कभी यह बात बताई थी.
आप विरले थे और उस छात्रा के अनुभव पूर्व में कड़वे रहे होंगे। जब आपने कैल्कुलेटर मांगा तो उसने समझा कि सहायता करने की फीस चुकाई जा चुकी है।
मेरा मत है कि कैसे भी हो आपको कैल्कुलेटर लौटा देना चाहिए था। भले ही संबंध ही खराब क्यों न हो जाएं। बाकी तात्कालिक स्थिति क्या थी वह आप ही बेहतर जानते हैं।
शास्त्री जी वो लडकी आप को हमारे से ज्यादा जानती थी, फ़िर वो आप को गुरु दक्षिणा देनी चाहती थी,शायद आप अपने इन बच्चो से कुछ लेते नही होगे, इस लिये उसे झुठ बोलना पडा, ओर आप को उस ने यह तोहफ़े मे दे दिया, ओर इसे समभाल कर रखे, यह बहुत किमती है जिस की कीमत पेसो मै नही प्यार ओर मान से भी ज्यादा है, यह मेरा दिल कहता है, बाकी पता नही, हां ऎसा झुठ सच से भी पबित्र होता है.
धन्यवाद
वो गुरुदक्षिणा ही थी गुरुजी उसके लिए आपने जो किया वो क्या कम था। अपने पिता तुल्य गुरु को शायद वो ये ही दक्षिणा दे सकती थी।
Intersting incidence!! Being a teacher I just concluded that in that era use of calculators was not allowed.She used you for her own sake, otherwise there is nothing to deny that calculator was not her’s.If we presume it was GURUDAKSHINA, sorry sir, if it would have been she must not have refused.
regards
कल्कुलेटर क्या है इन मामलों में -कितना तुच्छ !
gurudakshina bhi usi ko milta hai jo guru hota hai. nishchay hi aapki guruta ne use gurudakshina ke liye prerit kiya ho.