बच्ची जिंदा बच जायगी क्या??

image (मेरे जीवन की एक अविस्मरणीय घटना 004) घटना लगभग पच्चीस साल पहले की है जब मेरा बेटा लगभग 4 साल का और बेटी लगभग 3 साल की थी. कमरों की कमी के कारण मैं ने अपने घर के पीछे एक कमरा ले रखा था जहां मेरी लाईब्रेरी थी. वहां बैठा पढ रहा था कि मेरी पत्नी दौडती हुई आई और मुझे एक छोटी सी चीज दिखा कर पूछा कि वह क्या है.

एक नजर में मैं ने पहचान लिया और बोला कि वह तो किसी खिलौने के अंदर के बिजली के बल्ब का बचाखुचा धातु का  हिस्सा है. यह सुन कर पत्नी का दिल दहल गया और बोली कि अपनी बच्ची इसे चबा कर खा रही थी और इसका मतलब है कि  कांच का हिस्सा पूरा चबा कर निगल चुकी है. अब दिल दहलने की बारी मेरी थी.

लाईब्रेरी को वैसा ही छोड दौड कर घर पहुंचा तो बच्ची अपने द्वारा अंजाम दिये गये कांड से एकदम बेखबर बैठी खेल रही थी. मूंह में खून के निशान थे. मैं दौड कर रसोई में गया तो एकदम ताजे चित्तीदार केले रखे हुए थे. बस आव न देखा ताव, उसे लाकर बच्ची को खिलाना शुरू कर दिया. यदि आधा केला खाने की सामर्थ थी तो बहला फुसला कर और डांट डपट कर उसे पूरे के पूरे दो केले खिलाये.

उसके बाद उसे लेकर अपने फेमिली डाक्टर के क्लिनिक दौडे गये. कहानी सुनकर वे ऊपर से लेकर नीचे तक हिल गये. उन्होंने बताया कि कांच को पेट धोकर बाहर नहीं निकाल सकते क्योंकि इस प्रक्रिया में वह हर जगह खरोंच देगा और खून के बहने से बच्ची की जान जा सकती है. फिर वे बोले कि आप तुरंत इसे केला खिलाना शुरू कर दीजिये और रात तक केला छोड कुछ और न दें. हम ने जो खिलाया था उससे वे बहुत खुश भी हुए.

हम बच्ची को जबर्दस्ती केला खिलाते रहे. सामान्य से अधिक माल पेट में जाने लगा तो दो तीन बार मलत्याग किया, लेकिन खून न के बराबर निकला. इस तरह अगले 24 घंटे खिलाई और निगरानी के बाद डाक्टर ने घोषित कर दिया कि बच्ची खतरे से बाहर हो चुकी है और केले ने कांच को अपने में समा कर और आंतों को चिकनाई प्रदान कर बच्ची को खतरे से बचा लिया.

मेरी जगह आप होते तो क्या करते?

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Picture by ♥ HunterJumper ♥

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Author: Super_Admin

11 thoughts on “बच्ची जिंदा बच जायगी क्या??

  1. शास्त्री जी, ये तो आप की सूझबूझ का ही नतीजा था,जो कि बच्ची को कुछ नहीं हुआ.सामान्यत: इस प्रकार की किसी गंभीर स्थिति का सामना करने पर किसी भी व्यक्ति के हाथ पांव ही फूल जाते हैं।

  2. हम होते तो क्या करते बड़ा ही kathin प्रश्न कर दिया आपने..घटना हतप्रभ करने वाली है..इस पोस्ट ने ये बता दिया की बच्चा गलती से कांच खा जाए तो क्या करना चाहिए..वैसे क्या कर रही है बिटिया रानी इन दिनों..बल्ब खा लिया था तो जाहिर है की रोशनी तो कर ही रही होगी..

  3. शास्त्री जी, यह तो हम भी जानते की केला खिलाना ही बेहतर होगा लेकिन हम घबराहट के मारे बच्चे को जल्द ही बड़े हस्पताल ले जाते जहाँ के डॉक्टर जो कहते वही किया जाता.
    बचपन में मेरे दादा अक्सर हमारी छोटी मोटी तबियत ख़राब होने पर हमें डॉक्टर के पास नहीं ले जाने देते थे. उस वक़्त मेरे माता-पिता को लगता था कि वे गलत कह रहे हैं लेकिन अब मैं जान गया हूँ कि दादाजी ही सही थे.
    वैसे, आपका वाक्या वाकई गंभीर था.
    माता-पिता होना सचमुच बहुत बड़ा काम है.

  4. केला खिलाने वाली बात तो मुझे मालूम ही नहीं थी, कितना सरल और सहज उपाय | वैसे मामला गंभीर था | क्या करतीं हैं आपकी बिटिया रानी आजकल ?

  5. हमारे भी नाक में बत्ती (स्लेट पेंसिल) घुस गई थी। अम्मां ने कुछ सुंघाया कि छींक के साथ बाहर आ गई। ये प्रेजेंस ऑफ माइंड है।

  6. शास्त्री जी हम भी बाद मै घबराते पहले बच्ची को केला ओर केले के संग रूई खिलाते,प्यार से गुस्से से, लालच दे कर,

  7. शायद वही करते जो आपने किया। ऐसी परीक्षा तो शायद हर माँ-बाप को देनी ही पड़ती है कभी न कभी।

  8. इस तरह के प्रत्युत्पन्न विवेक का उपयोग तो करना ही चाहिये इस तरह की परिस्थितियों में, पर मन स्थिर ही कहाँ रह पाता है । हम तो घबराहट में बच्ची को हस्पताल ही ले जाते पहले ।

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