मेरे पिछले आलेख मानसिक व्यायाम: नुक्सान ही नुक्सान!! में मैं ने लिखा था कि जिन जिन कार्यों को शरीर और मन के तालमेल द्वारा करना चाहिये उनको एक दूसरे से अलग कर दिया जाये तो काफी नुक्सान होता है. कारण यह है कि शरीर और मन अलग अलग कार्य करने के लिये बनाई गई इकाईयां नहीं है.
अब आते हैं असल विषय पर. यदि दौडे बिना ही दौडने की कल्पना करें तो शरीर धीरे धीरे वे सारे रासायनिक पदार्थ बनाने लगता है जो दौडने वाले व्यक्ति के शरीर में बनते हैं. इन में से कई जहरीले या नुक्सानदेह होते हैं लेकिन दौडते की प्रक्रिया के द्वारा वे रासायनिक पदार्थ निष्क्रिय कर दिये जाते हैं. निष्क्रिय करने की प्रक्रिया न हो तो शरीर को नुक्सान पहुंचना शुरू हो जाता है.
अब इसका असर उन पर देखें जो सिर्फ दिवास्वप्न देखते रहते हैं. दिवास्वप्न दो तरह के होते हैं. एक, मेहनत किये बिना जीवन की उन्नत सीढियों को छूने का स्वप्न. दूसरा दिवास्वप्न वासना से भरा होता है, और आज चाहे पिक्चर हो, टीवी हो, या विज्ञापन, हर ओर लोगों की कामवासना को भडकाता रहता है.
यदि दिवास्वप्न मेहनत के साथ साथ जीवन की उन्नत सीढियों को छूने के बारे में हो तो शरीर उस के अनुसार अपने आप को ढाल लेता है. लेकिन मेहनत के बिन उन्नति के शिखर छूने के दिवास्वप्न देखने वाले का शरीर धीरे धीरे अपने आप को कामचोरी, लापरवाही, सुस्ती के लिये तय्यार करने लगता है. आपने देखा होगा कि कई हैं जो हवाई महल बनाते रहते हैं लेकिन कुछ करते धरते नहीं है. कारण यह है कि उनके दिवास्वप्नों ने उनको बेकार बना दिया है.
इसी प्रकार जो लोग दिनरात कामवासना में डुबे रहते हैं वे असंतुलित हो जाते हैं. काम का जीवन में एक महत्वपूर्ण योगदान होता है. उसमे शरीर और मन दोनों की जरूरत पडती है. लेकिन अपने जीवनसाथी को छोड जो लोग दिनरात कामवासना में लिप्त रहते हैं (अश्लील पुस्तकें, पत्रिकायें, पिक्चर) उनके जीवन में इसके भयानक परिणाम होते हैं जिनको हम देखेंगे अगले आलेख में.
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समझ और जिज्ञासा बढती जा रही है।
नमस्कार स्वीकार करें
thanx for this valuable input !
इंतजार करते हैं अगले भाग का.
रामराम.
आप के समझाने का ढंग बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद
वाकई नुकसान ही नुकसान।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अगले लेख का इंतजार है..
very good chepter
अच्छी बात बताई है जी आपने!!