इलाज जो मर्ज से खतरनाक निकला!!

image मेरे पिछले आलेख जब गधे राज करते हैं!! और ठस लोगों की नाक में दम करें!! में हम ने मूर्खों के राज की चर्चा की थी. आज समाज में हर जगह ऐसे लोग मिल जायेंगे जो बिना योग्यता के उस स्थान पर पहुंच गये हैं और जानमाल का कबाडा कर रहे  हैं. इनका विरोध करना कई बार जरूरी हो जाता है.

कुछ साल पहले की बात है हमारे पास के एक महत्वपूर्ण हाईवे की पुल कमजोर हो गई. नया पुल बनाने के लिये एक इंच जगह न थी. इस बीच इंजिनियरों ने निरीक्षण के बाद उसके बचे जीवन को महज एक साल घोषित कर दिया और उसे तुरंत ढहा कर नया पुल बनाने की सिफारिश की.

लेकिन हर जगह ऐसे लोग होते हैं जो जरूरत से अधिक अकलमंद होते हैं. ऐसे एक अफसर ने 200 फुट के करीब लंबे उस पुल पर हर 5 फुट पर स्पीडब्रेकर बनवा दिये. उनका कहना था कि जब गाडियां धीरे चलेंगी तो पुल कम से कम दस साल और चलेगा और उस अफसर पर पुल बनावाने के पेपरवर्क की जिम्मेदारी नहीं आयगी. लेकिन अब एक गाडी उचकते उचकते 40 के करीब स्पीडब्रेकर पार करती तो हर स्पीडब्रेकर पर एक से पांच टन के हथौडे का काम करने लगी और एक हफ्ते में पुल का 6 महीने का और जीवन समाप्त हो गया. तब तक उस प्रदेश के लोगों ने मिलकर इस आदमी के विरुद्ध धरनाप्रदर्शन आदि चालू कर दिया.

फलस्वरूप सारे स्पीडब्रेकर “छील” कर पुल से हटा दिये गये, अफसर को (बताया जाता है कि) छुट्टी पर भेज दिया गया और एक से एक तेज लोगों को कार्य पर लगाया गया. अंत में इन लोगों के सुझाव के अनुसार पुराने  पुल के नीचे उसे घेरते हुए एक नया पुल बनाया गया, और बडी ही तकनीक से सारा वजन नये पुल पर डालने के बाद पुराने पुल के काफी सारे हिस्से (जो वजन सहने में अक्षम थे) एक एक करके बदल दिये गये जिससे यातायात पर कोई खास असर नहीं पडा. किसी को पता भी न चला कि कैसे 6 महीने में वह पुराना पुल एकदम नया बना दिया गया.

जब अक्षम लोग राज करते हैं तो व्यक्तिगत, सामाजिक, या संस्थागत तरीके से विरोध करना जरूरी होता है. करें तो फल जरूर होगा. कम से कम एकाध बार मैदान में कूद कर देखें!!

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Author: Super_Admin

17 thoughts on “इलाज जो मर्ज से खतरनाक निकला!!

  1. अन्‍याय का विरोध तो होना ही चाहिए .. पर संगठित न होने के कारण हम इसपर ध्‍यान नहीं दे पाते .. अकेला चना भाड नहीं फोडता।

  2. एकदम सही कहा आपने – “जब अक्षम लोग राज करते हैं तो व्यक्तिगत, सामाजिक, या संस्थागत तरीके से विरोध करना जरूरी होता है” बस आवश्यकता होती है आन्तरिक प्रेरणा और संबल की ।
    आलेख के लिये धन्यवाद ।

  3. ऐसा ही होता है हर जगह गधे और घोड़े पाये जाते हैं यह अलग बात है कि सरकारी नौकरियों में गधों को भी वही स्थान हासिल होता है जो घोड़ों को.

  4. जब नौकरियां तमाम तरह के आरक्षणों और केवल हजारों फैक्ट याद रखने की काबलियत पर दी जाएँगीं तो यही होगा. किसे इस बात से मतलब है की गुप्त काल का फलां सिक्का कितने ग्राम का होता था! जो इसे याद रख पता है वह तो IAS बन जाता है, जो केवल काम की बातें और काम करने की कला जानता है वह उसका LDC बन जाता है.

  5. एक बात और, सिर्फ अपनी सीनियोरिटी के दम पर पावरफुल पद प्राप्त कर लेने वाले मूढ़मगज अपने को सबसे काबिल अफसर मामने का मुगालता पाल बैठते हैं. केवल गलतियाँ निकालने के लिए वे मातहत के बनाये ड्राफ्ट की नुक्ताचीनी करते हैं जबकि खुद ढंग से चार लाइनें लिखने की काबिलियत नहीं रखते.
    लेकिन एक बात माननी होगी, इनमें गजब का lobbying टैक्ट होता है. और अपने से ऊपरवाले को खुश रखने की कला इन्हें बखूबी आती है.

  6. शास्त्री जी आप ने सही कहा, आज कल बेवकुफ़ ओर कम पढे लिखे लोग उस स्थान पर बेठे है, जो स्थान उन के काबिल नही या कहे वो लोग उस स्थान के कबिल नही, पिछले दिनो भारत आना हुआ तो मै हेरान था ऎसे कई लोगो को देख कर जिन्हे आंगुठा लगाना भी नही आता लेकिन कई महत्व पुर्ण स्थानो पर विराजमान थे, पता करने पर पता चला कि इन की रिश्ते दारी है नेताओ से??
    अब उस देश मै जहां पढेलिखे लोग नोकरी को तरसे ओर अनपढ ओर बेवकुफ़ ऎसी जगह पर विराजमान हो उस देश का भविष्या कया होगा….?

  7. सही बात है… निशांत जी की बात भी 100 टका सही है… पर उन अधिकारी महोदय का लम्बी छुट्टी से आने के बाद क्या हुआ??? कोई बता सकता है… आने पर उन्हे किसी दूसरे विभाग का उध्दार करने का जिम्मा दे दिया गया होगा. कितना अच्छा नियम है ना कोई गलती करने पर समान वेतन,भत्ते, सुविधाओं का उपयोग करते हुये अगली और बड़ी गलती के लिये और अधिक ऊर्जावान होकर वापस आओ.
    इसी तरह के नियमों ने ऊंचे पदों पर आसीन व्यक्तियॉं को किसी भी प्रकार के दण्ड विधान के विरुध्द् इतना अभेद्य बना दिया है कि इन नियमों के प्रति अविश्वास और घृणा दोनो के भाव एकसाथ आ जाते है… अखिल भारतीय सेवाओं के किसी भी अधिकारी को सेवा से पृथक करना बेहद जटिल और बोझिल कार्य है, जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो को उनके पद से हटाना लगभग असम्भव है. लगभग… जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया बेहद् गोपनीय और इतनी ही सन्देहास्पद है. कोई नही जानता कि उच्च न्यायालय में सीधे नियुक्त होने वाले किसी वकील की योग्यता को आकने का मापदण्ड क्या हैं??? किन किन मानदण्डों पर खरा उतरने के बाद किसी व्यक्ति का नाम ऐसे महत्वपूर्ण पदो के लिये प्रस्तावित किया जाता हैं… वैसे अन्य महत्वपूर्ण जगहो जैसे लोकायुक्त,सूचना आयोग, प्रशासनिक अभिकरण आदि के पदो नियुक्तियां भी मुख्य मंत्री और राज्यपाल आदि अपने ‘स्वविवेक’ के आधार पर करते रहते है… पर यह बात समझ से परे है कि इन मुख्यमंत्रियों और राज्यपालो के ‘स्वविवेक’ को पूर्व अधिकारीगण ही क्यों सर्वथा
    योग्य व्यक्ति प्रतीत होते है ???

  8. प्रेरणादायी व्यवहारिक आलेख.
    लेकिन मेरा सुझाव है की इस लेख की मूळ भावना को समझना चाहिए न की इसे सरकारी तंत्र से बेवजह गुत्थम गुत्था करने के लिए प्रेरित करने वाला आलेख.

  9. जब अक्षम लोग राज करते हैं तो व्यक्तिगत, सामाजिक, या संस्थागत तरीके से विरोध करना जरूरी होता है. करें तो फल जरूर होगा. कम से कम एकाध बार मैदान में कूद कर देखें!!
    बिलकुल सही कहा है आपने.

  10. जिन सज्जन के मार्गनिर्देशन में यह काम सम्पन्न हुआ कमसे कम उनका नाम बताकर तो उनका सम्मान किया जा सकता है

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