कुछ साल पहले की बात है एक विदेशी पर्यटक से पूछा गया कि हिन्दुस्तान के बारे में आप की क्या राय है. उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि हिन्दुस्तान एक बडा संडास है. इस कथन का कारण पूछा तो उनका कहना था कि उनकी सारी भारत-यात्रा रलगाडी से हुई थी और रेलगाडी में सुबह खिडकी खोल कर बैठना एक मुश्किल कार्य था. हर ओर मैदानों में बडेबच्चे, स्त्रीपुरुष हगते हुए नजर आते थे.
उस विदेशी ने सुबह के रेल-अनुभव के बारे में जो कहा उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है. मैं ने पहली रेलयात्रा 1957 में की थी, और उस समय तो स्थिति और भी खराब थी. सारे दिन भर नितंब-दर्शन एक आम बात थी. मम्मीपापा तब तक रेलगाडी की खिडकी खोलने की अनुमति नहीं देते थे जब तक सुबह का नाश्ता खतम नहीं हो जाता था.
1957 में सारे देश में गरीबी का आलम था, लेकिन सन 2009 आते आते स्थिति में काफी बदलाव आया है. लेकिन इसके बावजूद स्थिति पूरी तरह नहीं बदली है. लेकिन आज के आलेख में इससे भी अधिक गंभीर एक बात की चर्चा करना चाहता हूँ, और वह है हमारे एतिहासिक स्थानों, दर्शनीय स्थानों एवं टूरिज्म केंद्रों में शौच की व्यवस्था.
इस आलेख में जो चित्र आप देख रहे हैं वह एक किले का है जो कई वर्गमील में फैला हुआ है. इसके हर दर्शनीय स्थान को देखने के लिये कम से कम एक पूरा दिन चाहिये. लेकिन जनता के लिये एक भी संडास या मूत्रालय कहीं भी नहीं है. सवाल यह है कि कौन व्यक्ति दिन भर चलनेफिरने और खानेपीने के बावजूद अपने शरीर पर काबू रख सकता है.
मैं सैकडों एतिहासिक स्थानों एवं टूरिज्म केंद्रों पर जा चुका हूँ, लेकिन दो तीन को छोड कर एक जगह भी न तो एक संडास दिखा न मूत्रालय दिखा. इन जगहों पर सरकार साल भर में करोडों रुपये की उगाही करती है लेकिन एक सुलभ शौचालय की व्यवस्था भी नहीं करती है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ग्वालियर का किला जो कई वर्गमील फैला हुआ है, लेकिन शौचलय नहीं है.
यह इसलिये हो रहा है कि जनता बेवकूफ है. वह पैसे देती है, लेकिन अपना हक नहीं मांगती है. कम से कम संपादक के नाम पत्र लिख कर अपने हक की मांग लोगों की नजर में लाना शुरू कर दें!!
क्या करें ये हिंदुस्तान है इधर तो सब चलता है, हम लोग कोई पेपर का इस्तेमाल करने वालो मैं से तो हैं नहीं. लेकिन फिर भी हमें हमारे लिए यह ब्यवस्था तो होनी चाहिए. please read my blog: taarkeshwargiri.blogspot.com
आपकी बातें जायज हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भारत में पर्यटकीय दृष्टिकोण ही नहीं है। इसी कारण सारे अद्वितीय स्थलों की यही दशा है। न तो सरकार का इस ओर ध्यान है और न ही समाज का। भारत में अधिकांश धार्मिक पर्यटन है जहाँ का पैसा केवल पण्डों के पास जाता है और वे व्यक्ति की मूलभूत सुविधाओं की तरफ ध्यान ही नहीं देते यही हाल सरकारी पर्यटन का भी है। यदि इस ओर ध्यान दिया जाए तो अकेले पर्यटन से ही भारत को जो राजस्व प्राप्त होगा उसकी सहायता से भारत दुनिया मे अव्वल हो जाएगा। बहुत ही श्रेष्ठ बिन्दु की ओर ध्यान आकृष्ट किया इसके लिए बधाई।
सही लिखा है आपने. विषय उठाने के लिए धन्यवाद.
भारत में इस दिशा में आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है जब की इसकी काफी पहले से ही है . और सबसे बड़ी बात तो जनता के सहयोग और जनजाग्रति की है . मूलभूत सुविधाएँ देने के साथ ही जिस तरह पल्स पोलियो और एड्स आदि के लिए अभियान चलाए जाते हैं उसी तरह इसके इसके लिए भी अभियान चलाए जाने चाहिए .
हां आपने सही लिखा है. इस ओपन एयर संडास मे कई रोगाणू हवा मे फ़ैलते हैं और इसके लिये वर्ड बैंक ने ग्रामिण क्षेत्रों मे टोयलेट बनाने के लिये काफ़ी पैसा दिया था..पता नही उनको कौन खा गया? राम जाने.
रामराम.
बिल्कुल सही मुद्दा उठाया आपने…..बाह्य लोगों की नजर में हम लोगों ने इस देश की कैसी तस्वीर बना डाली है! इस विषय में सरकार के साथ साथ समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए!
यह अवस्था सिर्फ पर्यटक स्थलों में ही नही सारे देश में है
शास्त्री जी,
आपका कहना सही है. एतिहासिक स्थानों एवं टूरिज्म केंद्रों पर अधिकतर शौचालयों के ना होने पर हमने भी यहाँ-वहाँ काम निपट लिया. लेकिन इस संदर्भ में कभी भी कोई शिकायत नहीं की. लेकिन अब यदि मुझे ऐसी स्थिती का सामना करना पडा तो मैं संबंधित विभाग से इसकी शिकायत जरूर करूँगा.
प्रयास
मैं भी यही कहता हूं कि जब पिछले साठ सालों में लोगों को पानी, हवा और शौच के लिये स्थान तक नहीं दे सके तो निकम्मे हैं राजनीतिक व्यक्ति.
बहुत ठीक कहा आपने!
अच्छी बातो का जनता हमेसा स्वगत करती है जी
आभार/मगलभावनाओ के सहीत
HEY PRABHU YAH TERAPANTH
MUMBAI-TIGER
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ |
यह बात केवल एतिहासिक स्थानों एवं टूरिज्म केंद्रों की नहीं है | रेल के अन्दर, स्टेशन पर, बड़े बस स्टाप पर अगर सुविधाएं उपलब्ध भी हैं तो इस अवस्था में हैं कि उनको इस्तमाल न ही किया जाये तो अच्छा है | इसी प्रकार कूड़ेदान की समस्या है |
ऊपर से ऐसे स्थलों पर खान-पान के स्टाल्स से और दबाव बढ़ता है 🙂
आपकी सारी बातें सही हैं । रोष भी सही है। आपका दर्द भी सही है जो हर एक वतनपरस्त हिन्दुस्तानी को सालता है। पर उन्वान (शीर्षक) ज़रा सोच विचार कर लिखा कीजिएगा। मैं एक वक़ील हूँ और इसीलिए आपके हित में कहता हूँ के ख़ुद को अभिव्यक्त करते वक्त संभले रहें ज़रा। आप पर राष्ट्रदोह का मुकदमा चल सकता है। आप अपने मुल्क को संडास कह रहे हैं, ये इल्म भी है आपको ? ख़ैर मर्ज़ी आपकी।
जय हिंद।
अजित जी की बात से सहमत..
मैंने भी उत्तर और पश्चिम भारत के सैकडों पर्यटन स्थल देखे हैं लेकिन ऐसी मूलभूत सुविधाएँ केवल वहीँ पर मिलीं जहाँ पर या तो विदेशी बहुत अधिक आते हैं या फिर जहाँ पिकनिक व्यवसाय बहुत फ़ैल चूका है. धार्मिक स्थलों पर तो केवल उगाही का ही माहौल रहता है और लोग बाग़ भी आवश्यकता होने के बाद भी भगवान् के घर पर संडास के लिए आवाज नहीं उठाते. परेशानी केवल उनको होती है जो देशाटन के शौकीन हैं और देश भर में बिखरी हमारी पुरातात्विक सम्पदा के दर्शनार्थ भटकते हैं.
ये एक दुखद सत्य लिखा है आपने शास्त्री जी
हिन्दुस्तान की प्रगति के लिये
कई दिशाओँ मेँ
काम करना बाकी है –
पर्यटकोँ के लिये नहीँ
पर खुद भारतीय जनता की हालत सुधरे उस के लिये
– लावण्या