अभी दस मिनिट पहले मेरे एक विद्यार्थी ने मुझे बिहार से दूरभाष लगाया, सिर्फ यह जानने के लिये कि वह काव्यरचना करता रहे या नहीं.
वह एक मानसिक रोगी था. मेरे कहने पर उसे देश के सबसे अच्छे मनोवैज्ञानिकों को दिखाया गया. उनकी दवादारू से उसे काफी फायदा हुआ. आज वह अध्यापक है, सामान्य जीवन जी रहा है, दवा नियमित रूप से ले रहा है. यारदोस्त एवं सामाजिक संबंध कम है, अत: अपना खाली समय लेखन में बिताता है. कल का एक मनोरोगी, जो आज बिना किसी पर भार बने अपना काम देख रहा है.
कई सालों से वह हफ्तेमहीने एक कविता मुझे भेज देता है, और मैं उसे सुधार कर, चार प्रोत्साहन के शब्द जोड कर, उसे वापस भेज देता हूँ. महीने में मेरे दस मिनिट का यत्न एक व्यक्ति को जीवनदान दे सकता है तो वह दस मिनिट जीवन की एक महानतम उप्लब्धि है. जीवनदान जीवन छीनने से महान कार्य है.
लेकिन अब उसके परिवार वाले उसके पीछे पडे हैं कि वह इस “बेकार” आदत को छोड दे. यह क्यों बेकार आदत है, इससे बेहतर आदत क्या हो सकती है, या इसे छोडने पर जो खाली समय (और खाली दिमांग) होगा उसका क्या होगा, इस मामले में उनके पास कोई सुझाव नहीं है. बस इस “बेकार” की आदत को त्यागना है. खैर इस विद्यार्थी को मैं ने सुझा दिया है कि जो कविता का मतलब न जानें उनकी न सुना करे.
जो लोग अपने लिये कोई अर्थपूर्ण कार्य करके अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखते हैं उनको कई बार हम अपनी मूर्खता भरे एवं ठस नजरिये के कारण मार डालते हैं. मानसिक हत्या!
Article Bank | Net Income | About India । Indian Coins | Physics Made Simple | India
Pic by doortoriver
बिलकुल सही बात कही है. ऐसा ही होता है. मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति को घर वाले ही पूरा पागल बना देते हैं. जब की जरूरत उसे समझने की होती है. रिश्तेदार भी कहने लगते हैं वह तो पागल है. मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के बाद भी उस व्यक्ति विशेष को इसी समाज में जीना है लेकिन उसका जीना दू भर हो जाता है
सही कहा आपने। मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति को घर से सहयोग एवम सम्बल मिलना नितान्त आवश्यक है। रोग मुक्त होने का सबसे अच्छा जरिया परिवार वाले बन सकते है। पर अफसोस यहॉ विपरित स्थितिया है।
आभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
“जो लोग अपने लिये कोई अर्थपूर्ण कार्य करके अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखते हैं उनको कई बार हम अपनी मूर्खता भरे एवं ठस नजरिये के कारण मार डालते हैं. मानसिक हत्या!”
आपने बहुत सही कहा है. लेखन से अगर आपके इस विद्यार्थी को सहायता मिलती है तो इसमें हर्ज़ ही क्या है? उसके परिवार वालों को समझाने की ज़रुरत है.
सही संवेदित व्यवहार मानसिक स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है । आपका प्रोत्साहन और उसके प्रति सहज आत्मीय़ भाव उसे संतुष्ट करता होगा । आभार ।
समाज में मानसिक रुग्णता को स्वस्थ्य भाव से लेने की प्रथा ही नहीं है। बेचारे परिवारवाले- वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं!
सत्य कहा आपने.
रामराम.
mansik roop se pagal banana me yash samaj or parivar ke sadsya jo bina socka samja sirf apni baat manwane me visvas rakhate ha] bhe ek bara kaaaran ha] yadi ensan per phaltoo ka dabbab na ho] waha utna hi kam kare jitna kar sakta ha] uski yoghyta ko pariwar ke log sahi tarha se samaj kar usko khilne pallavit hone me sahayog de to jyada behater hoga shyaad
अब पता नहीं मानसिक रोगी कौन है??
आप ने सही कहा। मुझे अपने वकालत के तीस वर्षों में सौ से अधिक मुकदमे सिर्फ इसलिए लड़ने पड़े कि वही एक आशा थी जिस से कोई जीवित था, स्वस्थ था। यदि वह भी टूट जाती तो या तो वे व्यक्ति आत्महत्या कर लेते अथवा पागल हो जाते। अभी भी वैसे कई मुकदमे हाथ में हैं।
मै खुद जबसे लिखने लगी हूँ ,अपने और लोगों के बारे मे सोचने का मेरा नजरिया बदल गया है… लगता है .कमाने ,खाने के अलावा भी बहुत कुछ है करने को………….सभी को…..
यह इस समाज का कडुआ सच है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आज के भौतिकतावादी युग में हर चीज़ को केवल सापेक्ष उपयोगिता के तराजू में तौला जाने लगा है…कवित ही क्यों (?) संगीत भी क्यों सुना जाए
मानसिक हत्या ..बिलकुल सही है ..जाने अनजाने कितने ही इसके शिकार हो जाते हैं ..आप एक अच्छे इंसान है जिसने मानसिक रोगी की मदद की ..
धन्यवाद ..!!