समलैंगिकता को अपराध घोषित करने वाले कानूनों को जब से न्यायपालिका ने अवैध घोषित किया है तब से इस विषय पर काफी चर्चा हो चुकी है. लेकिन विषय अभी भी काफी बचा है, अत: अनुसंधान पर आधारित एक लेखमाला की पहली कडी है यह आलेख.
चित्र 1: अमरीकी समलिंगियों का सामूहिक प्रदर्शन, 2009
विपरीत लिंगियों के बीच यौनाकर्षण एक सामान्य बात है एवं इसके बारे में हर कोई जानता है. लेकिन सम लिंग के लोगों के बीच (पुरुष से पुरुष एवं स्त्री से स्त्री) का आकर्षण बहुत विरल होता है. इस तरह के आकर्षण को समलैंगिक आकर्षण एवं जो लोग इसके वशीभूत होकर समलिंगी लोगों के साथ यौनसंबंध बनाते हैं उनको समलैंगिक कहा जाता है.
अंग्रेजी में पुरुष समलैंगिकों को होमोसेक्सुअल कहा जाता था लेकिन आजकल वे अपने आपको गे (Gay) या “अत्यंत खुश” नामक से संबोधित करते हैं. यह समलैंगिकता को जनप्रिय बनाने का एक प्रयत्न भी है. स्त्री समलैंगिकों को लेस्बियन कहा जाता है जिसके पीछे एक इतिहास है जो हम आगे के एक आलेख में देखेंगे.
चित्र 2: दो मिस्री समलिंगियों का प्रेम-व्यवहार, अनुमानत: 3000 साल पुराना चित्र
विवाह एवं उससे संबंधित सामान्य पुरुष-स्त्री मैथुन को हर संस्कृति, धर्म, एवं काल में मान्यता दी गई है. इसे सामान्य माना जाता है एवं इससे इतर प्रकार के यौन संबंधों को असामान्य/बुरा माना गया है. लेकिन इसके बावजूद इस तरह की यौन प्रक्रियायें होती रही हैं. हां इनकी संख्या हमेशा नगण्य रही है एवं इस तरह की यौन प्रक्रियायें हमेशा अपवाद रही हैं.
बीसवीं शताब्दी में जो तमाम प्रकार के सामाजिक परिवर्तन हुए हैं उनके कारण इनकी संख्या काफी बढी है एवं इन लोगों ने संघर्ष करके काफी आजादी/सुरक्षा पा ली है. इस लेखन परंपरा में इन बातों को विस्तार से देखेंगे.
Article Bank | Net Income | About India । Indian Coins | Physics Made Simple | India Pic 1 by domasan Pic 2 Khnumhotep and Niankhkhnum. Illustration from photograph © 1999 Greg Reeder
इसके पहले की मैं आपकी सशक्त लेखनी सी बायस्ड न हो जाऊं इस संवेदनशील मुद्दे पर अपना विचार रखना चाहता हूँ –
मेरी अपनी समझ है की इस विचित्र मानवीय व्यवहार की जड़े बाल्यकाल से ही उगने लगने लगती हैं -और कई कारक उसे उत्प्रेरित करते हैं ! बेटी का पिता की ओर से दुत्कार /.उपेक्षा उसे लेस्ब बना सकता है तो माँ का बेटे के प्रति तिरस्कार या लड़कपन /किशोरावस्था की दहलीज पर कोई ऐसी घटना जिससे विपरीत सेक्स के प्रति मनोग्रन्थि बने -पुरुष को गे बना सकती हैं -और सही है इनमें इनका कोई दोष नहीं है -यह पूरी तरह परिस्थितिजन्य है ! समलैंगिकता का कोई जीन /जीन लड़ी तो अब तक खोजी नहीं गयी अतः इसके अनुवांशिक पक्ष पर कुछ कहना मुश्किल है -हाँ कुछ पशु प्रजातियों में दबंगता प्रदर्शित करने हेतु नर पेक आर्डर के कम दबंग पर माउन्ट कर जाता है और उसे सतत यह अहसास दिलाता रहता है की औकात में रहो -पर मानवीय संदर्भ में हम इसे उधृत कर सकते हैं या नहीं .मुश्किल है ! और मुझे यह भी ठीक से स्पष्ट नहीं है की गे या लेस्ब में अनिवार्यतः यौनउत्कंठाएँ होती ही हों जो पुरुषों में सोड़ोमी जैसे क्वीयर व्यवहार तक जा पहुँचती हों -क्या सभी सोडोमिस्ट गे होते हैं या सभी गे सोडोमिस्ट ऐसा भी कोई अध्ययन मेरे सामने नहीं गुजरा है !
इस विषय को सही परिप्रेक्ष्य में रखे जाने की उम्मीद हम इसी स्थान पर कर सकते हैं। आप निश्चित ही एक उपयोगी श्रृंखला प्रारम्भ कर रहे हैं। साधुवाद।
पढ़ रहा हूँ।
Ur grip on the subject , analytical approach and free flowing chaste Hindi essentially makes it Number One among the blogs raising social issues .
abhi tak aapke saath hein. Lekin aage ki kadi ke baare mein anumaan lag raha hai. Dekhte hein, hamara anumaan kahan tak theek hai, 🙂
डा मिश्रा, नीरज,
इस लेखन परंपरा के पीछ कई सालों का अध्ययन छुपा हुआ है. इतना ही नहीं, मेरे पुत्र डा आनंद भी इस परंपरा में मेरी मदद कर रहे हैं. डा आनंद के पास इस तरह के लोग चिकित्सा के लिये आते रहते हैं एवं उस संदर्भ में हमारी काफी लम्बी चर्चा हो चुकी है.
अत: उम्मीद है कि यह परंपरा काफी जनोपयोगी होगी. हां, अतिसंवेदनशील लोगों को शायद लैंगिकता की चर्चा से थोडी सी परेशानी होगी.
सस्नेह — शास्त्री
आपके लेख की अगली कड़ी का इन्तजार है.
औरो की तरह ही मैं भी बहुत उत्सुक हूँ ये जानने के लिए की अगर कथित समाज के ठेकेदार इसे एक सामजिक बीमारी मानते हैं तो इस बीमारी के भोगियों को सहानुभूति देने के पक्ष में क्यों नहीं आगे आते और अगर समलैंगिक स्वयं को एक भिन्न सोच वाला किन्तु सामान्य समाज का ही अभिन्न भाग मानते हैं तो वे समाज की व्यवस्थाओं का खंडन करके भी कैसे सामजिक अधिकारों की मांग कर सकते हैं.
“एवं इन लोगों ने संघर्ष करके काफी आजादी/सुरक्षा पा ली है.”
its not through struggle but manupulation and lobbying by fatly-funded NGO.