चित्र: लेस्बोस द्वीप पर सेफो नामक कवयित्री
जिस तरह से पुरुषों के बीच एक न्यूनपक्ष हजारों सालों से समलैंगिकता में दिलचस्पी लेता रहा है उसी तरह स्त्रियों में भी एक न्यूनपक्ष समलैंगिक व्यवहार दिखाता रहा है. बीसवीं शताब्दी में पश्चिमी देशों की समलैंगिक स्त्रियों ने अपने लिये लेस्बिनयन नाम का प्रयोग शुरु किया और तब से यह नाम ही उनके लिये अंग्रेजी में प्रयुक्त होता है.
कहते हैं कि छठी शताब्दी ईस्वीपूर्व सेफो नामक एक कवयित्रि अपनी कामिनियों के साथ लेस्बोस नामक द्वीप पर बस गई थी. ‘लेस्बियन’ नाम इस किवदंती के आधार पर बनाया गया है.
चित्र: अमरीका में स्त्री-समलैंगिकों के सामूहिक प्रदर्शन के समय लिया गया एक छायाचित्र
जिस तरह से पसंद न होते हुए भी समाज उन शराबखानों और वेश्यालयों को बर्दाश्त करता रहा है जो समाज से दूर रह कर अपना धंधा करते हैं, उसी तरह हजारों सालों से समाज स्त्री-समलैंगिकता को भी बर्दाश्त करता आया है. लेकिन जिस तरह समाज एवं धर्म पुरुषसमलैंगिकता को गलत या अधर्म मानते आये हैं उसी प्रकार स्त्री-समलैंगिकता को भी बुरा मानते आये हैं. दुनियां के लगभग हर धर्म एवं समाज में इस बात को वर्जित किया गया है.
इस वर्जना के कारण स्त्री-समलैंगिकता के सार्वजनिक प्रदर्शन की हमेशा मनाही रही है एवं पकडे जाने पर ऐसे लोगों को सामाजिक एवं कानूनी ताडना दी जाती रही है. लेकिन बीसवीं शताब्दी में स्त्री एवं पुरुष समलैंगिक लोग पहली बार संगठित हुए, अपने हक की मांग की, एवं कानूनी लडाईयां लडीं. फलस्वरूप बीसवीं शताब्दी में इनको कानूनी संरक्षण मिलने लगा है, जिसका एकदम ताजा उदाहरण है भारतीय न्यायपालिका द्वारा अभी हाल ही में लिया गया निर्णय. [क्रमश:]
Indian Coins | Guide For Income | Physics For You | Article Bank | India Tourism | All About India | Sarathi | Sarathi English |Sarathi Coins Picture2: by lewisha1990, Picture 1: Wikipedia
लेस्बियन शब्द के पीछे छुपी कथा मालूम ही नहीं थी हमें ।
आलेख प्रासंगिक है । आगे की कड़ियों का इंतजार ।
क्या दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसला आने से पहले धारा ३७७ के अन्तरगत लस्बिनियज़म भी गैर कानूनी था। शायद द्ववेदी जी बेहतर बता पायें।
बढ़िया जानकारी।
बधाई!
बढ़िया जानकारी।
बधाई!
शास्त्री जी।
टिप्पणी करवाने के लिए इतनी कसरत क्यों करवाते हो।
अच्छा लेख है.
यह लेखमाला नियमित पढ़ रहा हूं।
एक जिज्ञासा मन में है, आशा है, आगे के किसी लेख में आप उसे दूर करेंगे।
समलैंगिक अभिरुचि कुछ लोगों में कैसे विकसित होती है? क्या वह जन्म-जात है? या अर्जित है? क्या यह अभिरुचि एक बार लग जाने पर ताउम्र बनी रहती है, अथवा उसका इलाज करके समलैंगिकों को इस अभिरुचि से मुक्त किया जा सकता है? क्या यह आनुवांशिक है?
@ उन्मुक्त जी,
धारा 377 प्रकृति विरुद्ध कार्नेल इंटरकोर्स के लिए है। इस धारा के स्पष्टीकरण में प्रवेशन को पर्याप्त बताया गया है जिस के लिए किसी भी अपराधी का लिंगधारी होना आवश्यक है। इस कारण से धारा 377 के अपराध के लिए कोई पुरुष ही अभियुक्त हो सकता है। इस कारण से लेस्बियनिज़्म इस धारा के अंतर्गत कभी भी अपराध नहीं था।
समलैंगिकता के बारे में अच्छी जानकारी दे रहे हैं आप हर बार एक नया रोचक पहलू सामने आता है धन्यवाद .