मेरी पसंद के चिट्ठे 010
चिट्ठाजगत में शायद ही कोई व्यक्ति हो जिस ने अविनाश वाचस्पति का नाम न सुना हो. मुझे अभी भी वह दिन याद है जब अविनाश के पहले चिट्ठे का प्रादुर्भाव हुआ था. उन दिनों सक्रिय चिट्ठों की संख्या सिर्फ कुछ सौ थी और लगभग हर चिट्ठे पर नजर पड जाती थी, लेकिन अविनाश का चिट्ठा कुछ खास लगा.
अविनाश की लेखनी से सामना हुआ तो मुझे एकदम से लगा कि इस व्यक्ति में काफी स्फूर्ति और ऊर्जा है. आज लगता है कि मेरी सोच सही थी.
आज अविनाश का एक चिट्ठा अनेक में बदल चुका है. सौभाग्य से ऊपर दिखाये गये चिट्ठे से आप उनके हर चिट्ठे पर जा सकते हैं. एक याद रखो, बाकी को अविनाश याद दिला देंगे. बहु-चिट्ठे के मालिकों के लिये अच्छा होगा कि वे अपने चिट्ठों को इस तरह आपस में एक “जंक्शन” के समान जोड दें जिससे पाठक-गाडी आसानी से किसी भी चिट्ठास्टेशन पर पहुंच सके.
अविनाश की उर्जा के साथ साथ जिन विषयों पर वे लिखते हैं उसकी व्यापकता तारीफे काबिल है. तो देर न करें. चित्र पर चटका लगाईये, उनके नामधारी चिट्ठे पर पहुंचिये, पहले उसे बुकमार्क कीजिये, और फिर उनकी कलम का स्वाद महसूस करें.
Indian Coins | Guide For Income | Physics For You | Article Bank | India Tourism | All About India | Sarathi | Sarathi English |Sarathi Coins
अविनाश जी तो सर्वव्यापी हो चलें चलें हैं -जित देखूं तित तूं वाली स्थिति है !
कौन हैं ये अविनाश वाचस्पति…आपके कहने से पता करके आते हैं फिर..
अविनाशजी वाकई स्फूर्ति व् ऊर्जा से भरपूर हैं…अभी एक पोस्ट पढ़ नहीं पाए उससे पहले दूसरी तैयार मिलती है …बहुत बहुत शुभकामनायें ..!!
सही लिखा है आपने, वास्तव में ही अविनाश स्फूर्ति के धनी हैं
अविनाश जी की उपस्थिति आत्यंतिक है इस चिट्ठाजगत में । सबसे इंटरकनेक्टेड रहने वाले जीव हैं यह । सबको अपनी प्रशंसा का आश्रय देते हैं । आभार इनकी चर्चा के लिये ।
अविनाशजी तो घट घट के बासी हैं.
रामराम.
आप उन्हीं अविनाश जी की बात कर रहे हैँ ना जो पूरे दिन ही कीबोर्ड पर ऊँगलियाँ टकटकाते रहते हैँ 🙂
अविनाश जी में वाकई गजब की ऊर्जा है।
जै हो बाबा अविनाश वाचस्पति की आप तो सर्वव्यापी है ।
अविनाश जी को यदा-कदा तो पढ़ते रहे हैं। लेकिन अब बुकमार्क कर लिया है। नियमित भेंट होती रहेगी। शुक्रिया।
सहमत हूं आपसे !!
आपसे पूरी तरह सहमत हूं.
सच है अविनाश जी हैं ही ऐसे ….उनकी पोस्ट , उनकी टिप्पणियां सब काबिले तारीफ हैं
शास्त्री जी ने अपने रथ में मुझे स्थान दिया इसके लिए दिल से और अपनी कीबोर्डीय ऊंगलियों से आभारी हूं। वैसे जितनी प्रशंसा मेरी की गई है, वो शास्त्री जी की जर्रानवाजी है। आप सब अपने स्नेह, आशीर्वाद, डांट, प्यार और फटकार से मुझे सदैव नवाजते रहिएगा। मुझे डांट खाने से बहुत हौसला मिलता है।
एक ऊर्जावान द्वारा दूसरे ऊर्जावान की तारीफ भा गई।
कीबोर्डीय ऊंगलियाँ तो हैं ही काबिले तारीफ़
भई, नाम से ही पता चलता है कि वे अविनाशी हैं:)
बहुत दिनो बाद आपके ब्लाग पर आना हुआ, बहुत अच्छा लगा। चिट्ठे और चिट्ठकरो का करवां चल रहा है आगे भी चलता रहे। अविनाश जी का चिट्ठा वास्तव में खास है।
Bade dinon baad aapke blog pe aayee hun..! Tippanee denekee qabiliyat to nahee rakhtee, lekin Avinash ji ko aapke madhyam se badhayee zaroor de rahee hun..!