बर्बादी के लिये एक और रास्ता ??

image आज किसी ने मुझे बताया कि कम से कम कुछ राज्यों में, और शायद पूरे देश में, जल्दी ही दसवी बोर्ड की परीक्षा हटा कर उसे निजी परीक्षा में बदल दिया जायगा. इसके साथ सिर्फ 12वीं की परीक्षा बोर्ड के नियंत्रण में रह जायगी.

आज शालेय शिक्षा को निजी क्षेत्र ने एक मेगा-धंधा और लूट का क्षेत्र बना लिया है. गरीब आदमी बच्चों को निजी विद्यालयों में नहीं भेज पाता है और उनको सरकारी विद्यालयों में भेजने को मजबूर है. लेकिन वहां किस तरह की पढाई होती है यह हम सब जानते हैं.

इसके बावजूद बोर्ड की परीक्षा के डर के मारे अधिकतर सरकारी अध्यापक कम से कम दसवीं के पाठ्यक्रम को कुछ सावधानी से पढाते थे और विद्यार्थीयों का थोडाबहुत कल्याण हो जाता था. लेकिन यदि दसवी को बोर्ड से हटा कर निजी परीक्षा कर दिया जायगा तो सरकारी विद्यालयों में दसवीं में जो कुछ पढाया जाता है वह भी खतम हो जायगा.

सरकारी स्कूलों का ह्रास निजी स्कूलों को लूट का अवसर देता है. इतना ही नहीं समाज के एक बहुत बडे तबके को अशिक्षित रहना पडेगा क्योंकि वे निजी विद्यालयों में बच्चों को भेज नहीं सकते और बोर्ड की परीक्षा के हट जाने से सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों की बची खुची जिम्मेदारी भी खतम हो जायगी.

मैं ने पांचवीं, आठवीं,  दसवीं और ग्यारहवीं की बोर्ड की परीक्षा दी थी. वह एक सुखद अवसर था, जीवन भर के लिए स्थायी दस्तावेज भी हो गये. लेकिन हम खुद अपने हाथों अपने देश की शिक्षाव्यवस्था का विनाश करने पर तुले हुए हैं.

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Author: Super_Admin

8 thoughts on “बर्बादी के लिये एक और रास्ता ??

  1. शास्त्रीजी,

    परीक्षा को ही हटा देना किसी तरह से तर्कसंगत नहीं है। क्या हम बिना कड़ी परीक्षा के सही लोगों को रोजगार दे पायेंगे। यदि नहीं तो परीक्षा से छुटकारा कैसे मिल सकता है।

    वस्तुत: परीक्षा-प्रणाली में परिवर्तन होना चाहिये; उसमें नये-नये प्रयोग किये जाने चाहिये । इन सब प्रयोगों का लक्ष्य होना चाहिये कि वास्तविक मेधा की पहचान हो; रट्टा मारने की प्रवृत्ति पर लगाम लगे; बच्चे रचनाशील (क्रिएटिव) और उद्यमी बने; बच्चे सूचना की जानकारी रखना, उसे सम्यक रूप से सजाना, और उसका सार्थक उपयोग करके मानवमात्र का विकास करना सीखें।

  2. अनुनाद से सहमत, पहले दसवीं में आते-आते बच्चा दो बोर्ड परीक्षा देकर अच्छी तरह पक चुका होता था और आराम से पास होता था… अब दसवीं तक कचरा आता जाता है, शिक्षकों पर भी पास करने का दबाव होता है… पास करते जाते हैं। दसवीं तक आते-आते “ढ” से ढक्कन बच्चे भी वहाँ तक पहुँच जाते हैं…। अब पास करने के लिये एक नई ट्रिक खोजी गई है वह है पूरे प्रश्नपत्र में 30% प्रश्न वस्तुनिष्ठ आयेंगे (ये तो सबको पता ही है कि ऐसे वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में नकलपट्टी करना/करवाना कितना आसान होता है) ऐसे में आगे भविष्य में वे कैसे प्रतियोगिता का सामना करेंगे… लेकिन सरकारों के आँकड़ों में संख्या अवश्य बढ़ जायेगी कि “फ़लाँ प्रदेश के इतने प्रतिशत बच्चे 10 वीं से आगे तक पढ़े…”, भले ही वे कितने भी गधे हों…

  3. थोड़े दिनों बाद डिग्री के लिये बस पैसा जमा करना पड़ेगा और डिग्री मिल जायेगी. सुरेश जी ने सब कुछ कह ही दिया है.

  4. पूर्ण सहमति दर्ज करें। दसवीं बोर्द बना रहना बहुत जरूरी है।

  5. नए शिक्षा विधेयक में यह भी प्रावधान है कि बच्चे को दसवीं तक निरंतर उत्तीर्ण करना है. यह कैसे संभव होगा, पता नहीं.

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