केरल में अकसर पुलीस से मुलाकात होती रहती है: कभी हाईवे पर (जहां सघन जांच होती है) या पुलीस स्टेशन पर.
आज पिताजी को खाना देकर अस्पताल से वापस आ रहा था कि पांच पुलीस वालों ने हाथ दिखाया. मैं समझ गया कि बेचारे बिन वाहन परेशान हो रहे हैं . वे लोग सुबह से सडक किनारे भीड-नियंत्रण कर रहे थे और अब खाना खाने का समय हो गया था और बडे ही शिष्टाचार के साथ मुझ से अनुरोध कर रहे थे कि उनको लिफ्ट देने की कृपा करूँ. अत: तुरंत मारुति वेन को रोक कर उनका स्वागत किया.
दो किलोमीटर के फासले में उन से काफी अच्छी बातचीत हुई. (केरल पुलीस काफी साक्षर है, और उनके बीच स्नातक या स्नातकोत्तर की डिग्री काफी आम बात है). पुलीस स्टेशन पहुँचते पहुँचते उन सब ने अनुरोध किया कि मैं पुलीस स्टेशन पर कुछ समय बिता कर उनके वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने के बाद ही आगे बढूँ. उनका कहना था कि मुझ जैसे लेखक से मिल कर उन सब को बडी खुशी होगी.
गाडी से उतर कर विशालकाय पुलीस स्टेशन पहुंचा तो वहां सब ने एक हीरो के समान मेरा स्वागत किया. मुझे लगा कि न्याय और कानून के रक्षक लोग जरूरत से अधिक मेरा आदर कर रहे हैं.
ड्यूटी पर उपस्थित उच्चतम अफसर के कमरे में पहुंचा कर मेरा स्वागत किया गया. लगभग एक घंटे तक इंस्पेक्टर ने मुझ से बातचीत की, कई विषयों की चर्चा की. इस बीच मैं ने देखा कि हथकडी में बंद एक आदमी को एक पुलीस वाला खोल कर संडास आदि ले गया. उसके बाद उसे खाने का पेकेट ले जाकर दिया. कोई गाली नहीं, कोई अपमान नहीं. सिर्फ उतनी कडाई जितना जरूरी. पुलीस हो तो ऐसी हो!!
केरल में किसी पुलीस स्टेशन के भीतर जाकर अधिकारियों के साथ समय बिताने का यह मेरा तीसरा अवसर था. पुलीस का जो चित्र लोगों के मन में है उस से एकदम भिन्न थे ये तीनों अनुभव. स्पष्ट है कि जब किसी प्रदेश में साक्षरता बढती है तो उसका असर हरेक व्यक्ति पर होता है. केरल पुलीस इसका एक अच्छा उदाहरण है.
आगे उन लोगों के साथ कुछ समय बिता कर कुछ चित्र खीच कर कुछ और लिखने का इरादा बन रहा है. आज तो उसके लिये निमंत्रण भी मिल गया है.
पुलिस में भी इंसान हैं
पुलिस भी इंसान है
हम ही उसे बना देते हैं
कुछ और
जब थमाते हैं अपनी करतूतों
को छिपाने के लिए
गांधीजी का ठौर।
मैं तो समझता हूं यदि यही सही तस्वीर है तो भगवान सभी प्रदेशों में ऐसी ही पुलिस दे.
वे भी भाग्यशाली रहे कि उन्हे साथ के लिये आप जैसा ज़हीन व्यक्ति मिला.
काश! ऐसी पुलिस सारे देश में हो।
एकदम सही कह रहे हैं। हमारे केरल प्रवास में कुमारोकोम से कोवलम जाते हुए हमारी टैक्सी से एक पैदलयात्री का एक्सीडेंट हुआ…तुरंत पुलिस नमदार हुई हमारे ड्राईवर घायल को अस्पताल भ्ोजा गया लेकिन हम परदेसियों को न केवल बाइज्जत अटिंगल पुलिस में इत्मीनान से बैठाया गया वरन तुरंत वैकल्पिक टैक्सी की व्यवस्था कर आगे भेज दिया गया… न परेशन करने की कोशिश न रिश्वत ऐंठने की। बच्चों को भी हंसाने की कोशिश करता रहा सारा पुलिस स्टे
शन।
हम तो सोच रहे थे कि कामनवेल्थ खेलों के लिए केरल पुलिस के जवान मंगनी मंगा लेने चाहिए दिल्ली को 🙂
मसिजीवी की बात में दम है दिल्ली में केरल की पुलिस को इम्पोर्ट कर लेना चाहिये।
अच्छा लगा केरल पुलिस के बारे में जानकर.
सचमुच अचरज हो रहा है मुझे। केरल की खूबियों में एक खूबी और दर्ज हो गई मेरे मन में। बढ़िया पोस्ट शास्त्रीजी।
बढ़िया लगा केरल पुलिस के बारे में जानकर ! काश हमारे हरयाणा की पुलिस भी थोडा बहुत सलीका सीखे |
आशा की किरण ! बहुत संतोष का विषय है कि पुलिस का व्यवहार इतना अच्छा है।
न जाने हमारे यहाँ पुलिस कब ऐसी होगी . पर वह भी क्या करे दो तीन लाख रिश्वत देकर नौकरी फिर उसे बरकरार रखने के लिए नियमित भेट , मन कैसे शांत रहे
वाकई आश्चर्यजनक… किन्तु सत्य और विश्वास पैदा करने वाला अनुभव…
यह किस देश का प्रान्त है केरल?
सिर्फ़ पढ़ाई की ही बात नहीं है, बात कल्चर व ट्रेनिंग की है. पुलिस वही करती है जो वहां होता आया है. बस इसी ‘होते आने’ को बदलने की ज़रूरत है.
पुलिस ही क्यों, मुंबई की BEST की बसों में चलने के बाद अगर ज़लालत झेलनी हो तो दिल्ली की बस में सफ़र करना चाहिए. इसी तरह हरियाणा के सरकारी स्कूलों के मास्टरों की जमात देखी जानी चाहिये…उदाहरण अंतहीन हैं.
यह किसी मजाक से कम नहीं. गाली दिये बिना बात करे तो लगता ही नहीं कि असली पुलिस है.
एक बार थाने जाना पड़ा, मस्त चमचामाता आधुनिक थाना था. बड़े अधिकारी जरूर थोड़े सभ्य लगे बाकी तो……जय हिन्द. इस मामले में केरल बधाई के पात्र है.
अभी तक तो मेरा भी अनुभव पुलिस के बारे में अच्छा ही रहा है। कई बार पुलिस वालों (दिल्ली हरियाणा सहित कई राज्यों में) से वास्ता पडा है और एक-दो छोटे-छोटे कानून भी तोडते हुए पकडा गया हूं और पूछताछ भी हुई है लेकिन मेरे साथ किसी पुलिसवाले ने गलत जुबानी या दुर्व्यहवार नही किया है।
बहुत सारे लोग आश्चर्य कर रहे हैं!!!!
क्या सभी पुलिस वाले गलत होते हैं!!!!
क्या इन सब को बुरे अनुभव हैं, पुलिस के साथ में?????????
प्रणाम स्वीकार करें
काश यह छवि हर प्रान्त में हो जाये !शायद २० साल और …
आपने सही कहा, शिक्षा का प्रभाव तो पड़ता ही है. काश सारे देश की पुलिस ऐसी ही होती. शायद हो भी जाती लेकिन खद्दरधारी ऐसा होने दे तब न!
हमारा कभी पाला नहीं पड़ा. वैसे भी सभ्य लोग पुलिस से बचते ही हैं. आपने सही कहा है, शिक्षा का कुछ असर तो पड़ेगा ही. यहाँ के लोग तो निरे गंवार हैं.
सुखद आश्चर्य हुआ पोस्ट और टिप्पणियों को पढ़कर..
भारतीय पुलिस का यह रूप देखकर बहुत खुशी हुई.
saarthi ji
namskar
dei se an ke liye maafi ,mujhe ye padhar bahut hi sukhad aaschary hua hai .hamare desh me itni acchi police hai, dil maanne se inkar kar raa hai,par , aapne to dekha hai , muje bahut khushi hui ..
aapke pita ke swasthya ki mangalkamnna karta hoon .
bitiya ki shaadi ki bhi badhai sweekar kare.
meri badhai sweekar karen..
regards
vijay
Why aren’t there bullet-proof pants?
I like it. If every policemen is like that then there will be no crime …..
becoz i realize 70% crimes in india belongs to Police,,,,,,