बचपन में बडे उत्साह से हम लोग गाते थे “मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती”. हमारे अध्यापक लोग बताते थे कि किसी जमाने में हिन्दुस्तान को “सोने की चिडिया” कहा जाता था.
अंग्रेजों के राज (और सफल ब्रेनवाशिंग) के साथ साथ राष्ट्र के प्रति हमारा गर्व ऐसा गायब हुआ कि भारत के प्राचीन वैभव और संपन्नता के बारे में कोई कहता है तो नाक भौं सिकोडने वाले भारतीयों की संख्या अधिक होती है. यहां तक कि भारत संपन्न नहीं था यह कहने के लिये आज लोग बहुत मेहनत कर रहे हैं.
लेकिन भारतीय सिक्कों एवं भारत में मिले विदेशी सिक्कों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कम से कम ईसा-पूर्व 2000 से लेकर ईसवी 1900 तक भारत आर्थिक रूप से बेहद संपन्न था. इन 3800 सालों में हिन्दुस्तान में सोने और चांदी के जितने सिक्के ढाले गये थे उनकी संख्या अनगिनित है. सन 600 से लेकर 1947 तक विदेशियों के हाथ लुटते पिटते रहने के बावजूद अभी भी लाखों बडेछोटे सोने के सिक्के भारत में बचे हुए है.
केरल जैसे छोटे प्रदेश में सोने के कम से कम दसबीस बडे प्रकार के सिक्के और सैकडों प्रकार के छोटे सिक्के (0.4 ग्राम के) और चांदी के बडे छोटे मिलाकर सैकडों प्रकार के सिक्के यहां के राजाओं ने चलाये थे. इन में से एक सिक्का ऊपर दिखाया गया है. इसकी आज की अनुमानित कीमत 100,000 रुपये या उससे ऊपर है. जब इसके विक्रेता को मेरी सिक्काशास्त्र अभिरुचि के बारे में पता चला तो मुझे घर बुला कर ले गये और केरल के राजाओं के कम से कम दस प्रकार के सोने के सिक्के दिखाये. मेरे अनुरोध पर सब को स्केन करके उनके चित्र मेरे उपयोग के लिये प्रदान भी किया.
भिखारी को कोई नहीं लूटता. संपन्न को ही लूटा जाता है. भारत को तो लगभग सन 600 से 1947 तक लूटा गया था, उसके बावजूद यह संपदा (सोने के हजारों प्राचीन सिक्के मेरी जानकारी में है, लेकिन असली संख्या लाखों में है) बची है. अनुमान लगा लीजिये कि यह सोने की चिडिया नहीं सोने का हाथी था.
आप की बात सही है। लेकिन यह संपन्नता सेठों, साहुकारों, जमींदारों और राजाओं की थी, जो जनता की लूट से इन्हें हासिल होती थी। लेकिन जब बाहर से लुटेरे आये तो ये सभी लुटेरे कमजोर सिद्ध हुए।
बिल्कुल सही कहा आपने, भिखारी को कोई नहीं लूटता……
सचमुच भारत का अतीत बहुत ही समृद्ध था और आज भी जितना सोना चांदी हमारे देश में है वह बहुत बड़े भंडार के रूप में अंकित करने योग्य हैं ।
आपका धन्यवाद इन सुन्दर सिक्कों से परिचित कराने का
बहुत उम्दा आलेख ! बधाई !
भारत में यह धन केवल शाही खजानों मे था और ग़रीबों के पास नहीं । अब हम राजाओं के पास एकत्रित धन पर तो इठला नहीं सकते । मेरी लम्बी कविता “पुरातत्ववेत्ता ” से यह पंक्तियाँ देखिये ..
फिर भी अपने भाग्य पर इतराने के लिये
और मनुष्य योनि मे प्रसन्न रहने के लिये
काफी नही था सुख का यह खोखला रूपक
दीवारें कमज़ोर थी झोपड़ियों की और मन की
उम्र सी हर कभी ढह जाने का अन्देशा लिये
पसीजती रहती भय की बरसात मे
वही मज़बूत दीवारो के भीतर गया जाता मेघ मल्हार ”
–शरद कोकास
फिलिप साहब, एकदम सच्ची बात थी सोने की चिड़िया था ही नहीं भारत, बल्कि आज भी है ! बस लोगो ने अर्थ गलत समझ लिया ! सोने का मतलब था स्लीप(sleep) आज भी सब सो ही तो रहे है, वरना दाउद गिलानी उर्फ़ हेडली की क्या मजाल कि २६/११ करने के बाद भी शान से यहाँ मेहमान बनकर बैठा रहता ?
सच मे, हिन्दुस्तान सोने की चिड़िया रहा है और भविष्य भी उज्ज्वल है। आवश्यकता सिर्फ़ वर्तमान के प्रति सजग नागरिकों की है।
विश्वास बढ़ाती पोस्ट का धन्यवाद।
यह सच है कि भारत समृद्धतम देश था, धन और ज्ञान दोनों में ही!
यह संपन्नता सेठों, साहुकारों, जमींदारों और राजाओं की थी, जो जनता की लूट से इन्हें हासिल होती थी।
India was (and still is) a rich country, where poor people live.
भारत आज भी सम्पन्न है, पर इस सम्पन्नता का उपभोग कौन कर रहा है और किसे वंचित रखा गया है यह आप भी जानते हैं.
ऐब इन्कान्वेंती से सहमत !समृद्ध देश -गरीब लोग !
बहुत खूब,
आप की लेखनी को सलाम क्योंकि वह देश की बात कहती है