मसिजीवी का एक प्रश्न!

001F मेरे पिछले आलेख पाबला जी से हुआ अपराध बहुत बडा? पर काफी सार्थक टिप्पणियां आई हैं जिनके लिये मैं अपने चिट्ठामित्रों का आभारी हूँ. इन में से एक टिप्पणी पर जरूर कुछ कहना चाहूँगा जो मेरे मित्र मसिजीवी से मिली है.

(मसिजीवी) चर्चा के लिए अनंत विकल्‍प थे फिर चिट्ठाचर्चा ही क्‍यों ? उत्‍तर मुश्किल नहीं है उनकी ओर से लोगों ने बार बार स्‍पष्‍ट किया है कि वे इस मंच से नाराज हैं हमारी छोटी सी समझ इसे ही बैडफेथ कहती है।

(शास्त्री) मैं नहीं जानता कि यह सही है क्या. हो सकता है कि वे नाराज हों. यह भी हो सकता है कि इस नाराजगी के कारण उन्होंने चिट्ठाचर्चा.कॉम अपने नाम रजिस्टर करवा लिया हो. तर्क के लिये ये दोनों बातें सही माल ली जायें तो भी उसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने एक चिट्ठा-मित्र को कठघरे में खडा कर दें. उलाहना देना एक बात है, उससे आगे जाना अलग बात है. कारण यह है कि यदि कोई किसी बात का विरोध करना चाहता है तो अपराध  के अलावा हर तरह के तरीके का उपयोग उसके लिये जायज है. कल को कोई मुझ से नाराज हो जाये तो वह मेरे नाम से बचे 199 डोमेन खरीद सकता है. (एक www.ShastriPhilip.Com  मैं ने पंजीकृत कर रखा है).   जनतंत्र में यह उसका अधिकार है.  अत: अपने जनतांत्रिक अधिकार के उपयोग के लिये एक चिट्ठामित्र को उलाहना से अधिक न दें तो अच्छा लगेगा.

(मसिजीवी) जब हमने कहा था कि आप अकेले ये सब नहीं कर सकते जरूर कोई ओर बात है तो ये ज्‍यादा आहत करने वाली बात थी पर आपने लीगल नोटिस की धमकी नहीं भेजी थी अपनी बात रखी थी।

(शास्त्री) कानूनी नोटिस देने की कह कर पाबला जी भी जरूरत से कुछ अधिक आगे निकल गये हैं और मैं उसका अनुमोदन नहीं करता. पाबला जी को इतना आगे जाने की क्या जरूरत थी इसका मुझे अनुमान नहीं है और मेरा अनुरोध है कि कोई भी साथी जब तक उसके रोजी पर चोट न लगे तब तक कभी भी कानूनी कार्यवाही आदि की  दिशा में न सोचे. इस छोटे परिवार में हम एक साथ मिलबैठ कर बिन कोर्टकचहरी के अपनी समस्या सुलझा सकते हैं.

चिट्ठाजगत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो निष्पक्ष तरीके से चिट्ठा-मित्रों के बीच की लगभग हर समस्या को सुलझा सकते  हैं. अत: यदि आपसी घमासान के बदले समस्याओं को मध्यस्थता एवं परामर्श द्वारा हल कर किया जाये तो परिवार की भावना को ठेस नहीं पहुंचेगी और आपसी प्रेम और भाईचारा बना रहेगा.

अंत में एक बात हरेक कनिष्ठ एवं वरिष्ठ चिट्ठकारों को याद दिलाना चाहता हूँ:  इस घटना में पहल कहां से हुई, तीर किस दिशा में  बढा, फिर क्या हुआ आदि मेरा विषय नहीं है.  विषय यह है कि   हम में से हरेक व्यक्ति संयंम से काम ले तो यह खटपट की नौबत नहीं आयगी. लेकिन एक व्यक्ति संयंम खो दे तो फिर चेन-रिएक्शन शुरू हो जाता. बिना कारण सज्जन  और विद्वान लोग मर मिटते हैं.  यह सब देख कर चिट्ठाजगत के असली विलेन मजे ले रहे हैं क्योंकि वे यहां चिट्ठाकारी के लिये नहीं बल्कि लट्ठम-लट्ठ के लिये आये हैं.  यदि हम सब यह प्रण कर लें के कम से कम अगले छ: महीने हम अन्य चिट्ठाकारों के सहीगलत व्यवहार पर टिप्पणी करने के पहले कम से कम एकाध बार उन से सीधे पूछपाछ कर आगे बढें तो हम सब के लिये अच्छा होगा.

 

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Author: Super_Admin

18 thoughts on “मसिजीवी का एक प्रश्न!

  1. हम तो यही जानते हैं कि ताली दोनों हाथों से ही बजती है। कोई भी ब्लोगर पोस्ट प्रकाशित अपने पोस्ट को प्रकाशित करने से पहले यदि यह विचार कर ले कि उसका परिणाम क्या होगा तो ऐसी स्थिति आने की कभी नौबत ही ना आये।

  2. आदरणीय सर , मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी जो …बात को सीधे इस तरह से रखना पड गया , …जबकि वो कतई ढका छुपा कदम नहीं था , फ़िर भी , शिकायत थी तो क्या यही एक मात्र आखिरी विकल्प था प्रतिक्रिया का । और हां सर , अभी तो महज़ शुरूआत है , समय आ रहा है जम आम ब्लोग्गर भी अपने मान सम्मान को बचाने बनाए रखने के लिए इस तरह के वैधानिक कदम उठाने पर मजबूर हो जाएगा ।

  3. श्रद्देय,
    किसी के भी चरित्र पर आक्षेप लगाने से पहले..प्रत्येक व्यक्ति उसकी विषमता को सोच ले तो ऐसी स्तिथि नहीं आएगी…और अपनी गरिमा को बचाने के लिए यह सर्वथा उचित कदम है…
    यह एक चेतावनी भी है..कि आइन्दा इस तरह का कोई भी कदम बर्दाश्त नहीं किया जाएगा….इसलिए लोग कुछ भी कहने से पहले सोचें…

  4. मसिजीवी के गहरे प्रश्नों को केवल सतही तरीके से छुआ भर है आपने. खेद है कि मेरी निराशा में कोई कमी नहीं आई है. अब भी पिछली पोस्ट पर अपने कमेन्ट पर कायम हूं.

  5. @Ghost Buster

    सतही ही सही, लेकिन कम से कम चर्चा के लिये रास्ता खोल दिया है.

    आप ही बताईये कि आगे कैसे बढ जाये!!

    सस्नेह — शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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  6. घोस्टबस्टर जी की पहली पंक्ति से सहमत.
    पिछली पोस्ट में आपने जो भी लिखा वो तकनिकी रूप से सही कहा जा सकता है. लेकिन अगर आप ब्लोगिंग की इस दुनिया को एक परिवार कहते हैं तो मसिजीवी गलत नहीं दिखाई पड़ते. चिट्ठाचर्चा इतना छोटा मंच भी नहीं कहा जा सकता कि पाबला जी अनजाने ही उस नाम का डोमेन रजिस्टर्ड करवा लें. मंशा या नीयत के बारे कहना अति होगी लेकिन जो भी किया गया वो आखिरकार सोच समझकर और जानबूझकर किया गया है.

  7. क्षमा चाहता हूँ आपका अभिनन्दन करना भूल गया था.
    …वापसी पर स्वागत है आपका.

  8. आप आये और आज ही आपको पढ़ा.. वेलकम सर..
    कुछ दिन पहले मैंने अपने ब्लॉग पर लिखा था की “जिन्हें नींद नहीं आती वह अपराधी हैं..” अब डरा हुआ हूँ.. 🙂

  9. आपने मेरी बात को इतना मान दिया आभारी हूँ

    …उसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने एक चिट्ठा-मित्र को कठघरे में खडा कर दें. उलाहना देना एक बात है, उससे आगे जाना अलग बात है

    आपतक सही या पूरी सूचनाएं पहुँची हैं या नहीं कह नहीं सकता क्‍योंकि हम कहीं आगे नहीं ले जा रहे सिर्फ यहॉं लोगों के सामने लाए हैं लोग पक्ष या विपक्ष में राय बनाएं क्‍या दिक्‍कत है कुछ को लगेगा कि ये डोमेन स्‍क्‍वैटिंग है कुछ मानेंगे कि नहीं है… यही लोकतंत्र है।
    … और ‘कटघरा’.. क्‍या गजब करते हैं शास्‍त्रीजी..कटघरा तो अदालत में होता है न (अब आप भी डराने लगे :))

  10. @@ masijeevi

    कटघरे में मसिजीवी ने नहीं खडा किया, वे तो प्रेमी सज्जन हैं. राजनीति से उनका कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन उनके आलेख का उपयोग ऐसे लोगों ने किया जिन्होंने अपनी टिप्पणियों द्वारा एक कटघरा तय्यार कर दिया था.

    सस्नेह — शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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  11. आप की लेखन का प्रसंशक होने के नाते ,ब्लोग की दुनिया में पुन: सक्रिय होने पर बधाई.
    ( अंतत: लाभ तो हम प्रेमी पाठकों का ही है)

    हिन्दी ब्लोग जगत में विवाद दुखी तो करते ही हैं .इन में यदि कमी आ सके ( किसी भी उपाय से) तो बेहतर ही होगा.
    आप के सद्प्रयास हेतु शुभकामनायें.

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