मेरे कल के आलेख मसिजीवी का एक प्रश्न! पर डॉ अरविंद मिश्रा ने टिपियाया:
बड़े बड़ों की बातें!
तीन शब्द ही सही, लेकिन इस टिप्पणी को पढ कर बढा अच्छा लगा. अच्छा इसलिये कि डॉ अरविंद बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति हैं एवं सुलझे हुए चिट्ठाकार हैं. वे अधिकतर वैज्ञानिक विषयों पर लिखते हैं, और इस कारण कई बार कई चिट्ठाकार उनका विरोध कर चुके हैं.
इसका कारण है पेरोट थ्योरी जिसके बारे में ज्ञान जी अपने चिट्ठे पर लिख चुके हैं. इस सिद्धांत को वैज्ञानिक आलेखों के पाठकों पर लगाया जाये तो निष्कर्ष निकलता है कि इनके पाठकों में से कम से कम पांच प्रतिशत ऐसे लोगो होंगे जिनके लिये उनके आलेख की विषयवस्तु समझ के परे है. लेकिन पढने वाले को कुछ शब्द समझ में आ जाते हैं अत: उसको लगता है कि उसे सब कुछ समझ आ रहा है, जबकि उसके मन में अर्थ का अनर्थ हो रहा होता है.
इसका सबसे अच्छा उदाहरण है नितंब के शरीरशास्त्रीय/समाजशास्त्रीय विकासवाद के बारे में डॉ अरविद की शुद्ध वैज्ञानिक लेखनमाला. मैं विकासवाद का घोर विरोधी हूँ, लेकिन इसके बावजूद इस लेखनमाला में दिखे मौलिक तर्क एवं चिंतन का कायल हो गया था. लेकिन इस बीच कुछ पाठक जिनको उस आलेख के “शास्त्र” के बदले सिर्फ नितंब ही दिख पाया उन्होंने डॉक्टर के आलेख के विरुद्ध युद्ध छेड दिया. यह तो अच्छा हुआ कि उनके वैज्ञानिक मन ने उनको पकड रोके रखा, वरना एक अच्छा चिट्ठाकार असमय चिट्ठा-सन्यास ले लेता.
इस हफ्ते चिट्ठाजगत में वापस आया तो दिखा कि उनके विरुद्ध पुन: जबर्दस्ती का एक टंटा खडा कर दिया गया था जिसका उन्होंने डट कर विरोध किया. वैज्ञानिकों को बधाई. सरवाईवल ऑफ द फिटेस्ट के असर के कारण उन में से कुछ लोग हम सब से काफी हिम्मती एवं मजबूत हैं.
लिखते रहें डॉ अरविंद! आपके पाठक बहुत हैं. मैं तो आप के उन सारे आलेखों को पढने जा रहा हूँ जो पिछले 4 महीनों में मुझ से छूट गये थे!
Indian Tourism | Coins Encyclopedia | Physics Simplified | Net Income | India News । Gwalior
हूँ, तब तो अरविंद जी का एक पाठक और बढ ही गया।
डॉ अरविन्द के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ उसकी पहचान एवं समर्थन करने के लिये शास्त्रीजी भी प्रशंशा के पात्र हैं।
शाश्त्री जी, आपकी पोस्ट प्रसंशनीय है. आप यकीन रखें डाँ. अरविंद मिश्र हिम्मत के धनी है. जितना ही लोग उनको सन्यास दिलाने की कोशीश करेंगे वो उतना ही यहां ज्यादा टिकेंगे. उनको सन्यास दिलाने वालों को निराशा ही हाथ लगेगी. हां वो अपनी मर्जी से लेलें यह अलग बात है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
आप का यह प्रयास प्रशंसनीय है।
कोई एक कंपनी अमरीका में ये सभी डोमेन नेम लिये बैठी है…
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आदरणीय, अभिवादन स्वीकारे!
आज की पोस्ट पर ताउजी की टिप्पणी का में समर्थन करता हु! वैसे मिश्राजी भी मजबूत मन वचन वाले नेक दिल इन्शान है ! रिटायरमेंट लेने की जरूरत नही है जब तक आप श्री , ताउश्री, ज्ञानजी , समीरजी, जैसे सुलझे व्यक्तित्त्व वाले लोग हिंदी ब्लॉग में मोजूद है तब तक सच्चाई , इमानदारी, की रक्षा होती रहेगी.
सचमुच कितने उदारमना हैं आप ! आपकी अनुपस्थिति असह्य हो आक्रोशपूर्ण नैराश्य उपजा रही थी .आप को देखकर सचमुच करार आ गया है .
विनयावनत……
बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ने को मिला। हमेशा की तरह सार्थक पोस्ट।
नितम्ब प्रकरण से उठे विवाद के कारण उस अच्छी श्रृंखला की दिशा में परिवर्तन का जो खतरा उत्पन्न हो गया था उसको पटरी पर वापस लाने का थोड़ा प्रयास अपने समर्थन द्वारा मैने भी किया था। कदाचित उसी के बाद डॉ. अरविन्द जी से मेरा परिचय भी बढ़ा था। वैज्ञानिक विषयों को आम पाठक वर्ग तक रुचिकर ढंग से ले जाने का उनका प्रयास सराहनीय है।
बिना लाग लपेट के अपने मन की बात कह देने से यदा-कदा उन्हें कुछ आलोचना भी झेलनी पड़ती है। फिर भी मैने देखा है कि हिन्दी ब्लॉग जगत में उन्हें पसन्द करने वाले या नापसन्द करने वाले तो मिल जाएंगे लेकिन उन्हें अनदेखा करने वाले बिरले ही होंगे।
मेरे पांच सर्वाधिक प्रिय चिट्ठाकारों में से एक हैं अरविन्द जी.
और पांच कौन हैं मित्र भूत भावन -मुझे बहुत ईर्ष्या हो रही है !
आप निजी मेल पर भेज दें न उनके नाम मुझे ,ताकि उनका कुछ इंतजाम कर सकूं ..
मुझे अपने प्रेम का बटवारा कतई पसंद नहीं है ! हा हा
उन पञ्च पावन में से कोई एक ही बचेगा हा हा
आपकी पोस्ट बहुत सुन्दर है!
यह चर्चा मंच में भी चर्चित है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/02/blog-post_5547.html
अरविन्द जी की विद्वता से प्रभावित हुए बिना रहना कठिन है…
सचमुच उनकी सोच और उनके लेखन का अपना एक स्तर है और वहाँ तक पहुँचना हर किसी के वश की बात भी नहीं है…आम तौर पर लोग उनके आलेख के शब्दों में ही गडमड हो जाते हैं और चीख-पुकार मचा बैठते हैं…उनके आलेखों को महज शाब्दिक अर्थ में ले लेना और उसमें निहित उद्देश्य को नहीं समझ पाना ही एक मात्र कारण रहा है विरोध का…
जो यह समझ गया वह अरविन्दमय हो गया..बहुत अच्छा लगा….हिंदी ब्लॉग जगत के एक सशक्त मीनार की चर्चा यहाँ हुई है..
धन्यवाद…
अरविन्द भाई उन गिने चुने लोगों में से हैं जिन्हें पता होता है कि वे क्या कह रहे हैं 🙂
माननीय अरविन्द मिश्र जी की विद्वता के बारे में बात करना सूरज को दीपक दिखाने जैसा ही है …उनकी रचनाधर्मिता पर कुछ लिखने जैसे उत्कृष्ट भाषा मेरे पास नहीं है …मगर यह जरुर कहूंगी कि वे एक सरल सुलझे और निष्कपट इंसान हैं …जो मन में हो …स्नेह , क्रोध ,इर्ष्या …उनका पारदर्शी मन उन्हें जाहिर होने से नहीं रोक सकता और इसीलिए यदा कदा वे कोपभाजन के शिकार होते रहे हैं …मगर अपने संकल्पों के प्रति उनकी दृढ़ता उन्हें अविचलित रखती है …विचलित होते भी है तो कुछ पल के लिए …
ब्लॉगजगत उनका हमेशा आभारी है और रहेगा ….सादर सनेह शुभकामनायें ….!!
आप ठीक कहते हैं।
घोस्ट बस्टर की टिप्पणी हमारी भी मानी जाये। (बाकी ४ के नाम न पूछें!)
घोस्ट बस्टर की टिप्पणी हमारी भी मानी जाये। (बाकी ४ के नाम न पूछें! 🙂 )
यह तो अच्छा हुआ कि उनके वैज्ञानिक मन ने उनको पकड रोके रखा
यही बात तो मुरीद बनाती है