पापी पेट का चक्कर कुछ ऐसा चला कि चिट्ठाकारी करना भूल गया. लेकिन चिट्ठाकारी नहीं भूला. इस बीच हिन्दी शब्द संसाधक ने ऐसा चक्कर चलाया कि कुछ पूछिये मत. अब सब कुछ लगभग सामान्य दिखने लगा है.
इन दिनों सारथी पर लिख नहीं रहा था, लेकिन चिट्ठों को पढता जरूर था. कई बार बडी कुंठा होती थी कि क्या इतिहास से हम कुछ सीख पायेंगे. मेरे इतिहास के शिक्षक तो सब बहुत गडबड किस्म के थे, और इतिहास के प्रति जो प्रेम हो सकता है उसे एकाध पाठ पढाते ही “झाड” कर अलग कर देते थे. कुल मिला कर कहा जाये तो शालेय इतिहास की शिक्षा इतिहास के विरुद्ध एक तावीज/गंडा विद्यार्थी के मन में बांध देता है. ऐसा कम से कम मेरे साथ और मेरे कई मित्रों के साथ हुआ. आगे जाकर धर्मविज्ञान की शिक्षा ली तो पाया कि वहां भी इतिहास के अध्यापन/अध्ययन की स्थिति इतनी ही बदतर है.
दर असल इतिहास एक गजब का विषय है. शायद अनुभव और इतिहास मनुष्य के सबसे बडे शिक्षक हैं. लेकिन इतिहास के आस्वादन से वंचित हम में से अधिकतर लोग इतिहास से कुछ भी नहीं सीख पाते हैं. अब भारत का इतिहास ही ले लीजिये. पिछले ५००० साल का इतिहास इस बात को एकदम स्पष्ट बताता है कि देश के विकास के लिये क्या उचित है और क्या अनुचित है. लेकिन इतिहास के आस्वादन से वंचित हम लोग शायद कभी ये बातें न सीख पायेंगे और पीढी दर पीढी गुलाम ही बने रहेंगे. कल अंग्रेंजों के गुलाम थे, आज उनके व्यापारिक हितों के गुलाम हैं.
शायद अनुभव और इतिहास मनुष्य के सबसे बडे शिक्षक हैं. लेकिन इतिहास के आस्वादन से वंचित हम में से अधिकतर लोग इतिहास से कुछ भी नहीं सीख पाते हैं.
Aapki baat se sahmat hoon.
हमारे न विकसित होने का यह भी कारण है कि हमने इतिहास से वही सीखा जो हमारे स्वार्थ साधने के उपयुक्त था। शेष सब बिसार दिया हमने।
बहुत दिनों के बाद आपको हंदी में में पढ़ने का मौका मिला है। नैरंतर्य बनाए रखें।
“हंदी में में” के बजाय “हिंदी में” पढ़ें । क्षमा प्रार्थना।
कल अंग्रेंजों के गुलाम थे, आज उनके व्यापारिक हितों के गुलाम हैं.
मुझे यह देखकर सच में ताज्जुब होता है .. पढे लिखे होकर भी हम मानसिक गुलाम कैसे हो जाते हैं !!
अब सुधरेंगे की नहीं, यह तो काल ही निश्चित कर सकता है परन्तु आपकी वापसी सुखद रही.
ओर यह कांमन वेल्थ गेम क्या है??कांमन वेल्थ देशो मै कोन कोन से देश आते है?
यह गुलामी हमारी जींस मै हे…..
हम सब बचपन में पढ़ते थे कि इतिहास भूगोल बहुत बेवफा रात भर पढ़े दिन को सफा 🙂
और हम इतिहास से नहीं सीखते इसलिए उसे दुहराते रहते हैं ..
बहुत दिन बाद आयी यह पोस्ट !
इस ‘सारथी’ को आज ही देखा. राष्ट्रभाषा की सेवा में रात एक सुन्दर प्रयास.बड़ा अच्छा किया,जो. ‘परिकल्पना’ ने आपको सम्मानित किया है, आप इसके लायक है. बधाई. अब इसे देखता रहूँगा.
आपने हद दर्जे की सही बात कही है. जो इतिहास से सबक नहीं लेता, इतिहास उसे सबक लेने लायक नहीं छोड़ता.
कल अंग्रेंजों के गुलाम थे, आज उनके व्यापारिक हितों के गुलाम हैं.
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके आने पर ही महफ़िल जवान होती है, आप उनमें से हैं.
सुब्रमनियन जी ने सही कहा है. 🙂
हम इतिहास का उपयोग मिथ्या गौरव के लिए करते हैं उस से सीखने के लिए नहीं।
इतिहास से दूरी तो मैंने भी शालेय जीवन में बनाए रखी थी।
बाजार की गुलामी तो हम भारतीय कर ही रहे हैं। जब तक स्वयं के उत्पाद और स्वाभिमान नहीं होगा तब तक ये गुलामी बनी रहेगी।
इतिहास की कक्षा खूब लंबी हो गई है शास्त्री जी अब तो वापिस आ जाईये
कैसे हैं आप? एक अर्सा हो गया आपसे बात किये स्वास्थ्य कैसा है? यहाँ ब्लॉग जगत में मै एक बार फ़िर दाखिल हुई हूँ नाम बदल कर यह नाम मुझे बचपन में पिता ने दिया था। तस्वीर मेरी ही है मगर कॉलेज़ के समय की। मालूम नही आपकी पारखी नजरों से बच पाऊँगी की नही। इन्तजार है आपके आने का।
पढ़े लिखे लोगों की अन्ग्रेगियत भरी मानसिकता देख बहुत अफ़सोस होता है… न जाने कब इस गुलामी की मानसिकता से हमारा भारत आजाद हो पायेगा…
….सुन्दर प्रस्तुति
नवरात्र की सभी को बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत ही अच्छा लगता है हिंदी में महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करना
.इसे कायम रखिये
हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं ” -दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
प्रिय हिंदी ब्लॉगर बंधुओं ,
आप को सूचित करते हुवे हर्ष हो रहा है क़ि आगामी शैक्षणिक वर्ष २०११-२०१२ के जनवरी माह में २०-२१ जनवरी (शुक्रवार -शनिवार ) को ”हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं ” इस विषय पर दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस संगोष्ठी को संपोषित किया जा सके इस सन्दर्भ में औपचारिकतायें पूरी की जा रही हैं. के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजन की जिम्मेदारी ली गयी है. महाविद्यालय के प्रबन्धन समिति ने संभावित संगोष्ठी के पूरे खर्च को उठाने की जिम्मेदारी ली है. यदि किसी कारणवश कतिपय संस्थानों से आर्थिक मदद नहीं मिल पाई तो भी यह आयोजन महाविद्यालय अपने खर्च पर करेगा.
संगोष्ठी की तारीख भी निश्चित हो गई है (२०-२१ जनवरी २०१२ ) संगोष्ठी में अभी पूरे साल भर का समय है ,लेकिन आप लोगों को अभी से सूचित करने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है क़ि मैं संगोष्ठी के लिए आप लोगों से कुछ आलेख मंगा सकूं.
दरअसल संगोष्ठी के दिन उदघाटन समारोह में हिंदी ब्लागगिंग पर एक पुस्तक के लोकार्पण क़ी योजना भी है. आप लोगों द्वारा भेजे गए आलेखों को ही पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा . आप सभी से अनुरोध है क़ि आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें .
आप सभी के सहयोग क़ी आवश्यकता है . अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
गांधारी विलेज , पडघा रोड
कल्याण -पश्चिम
pin.421301
महाराष्ट्र
mo-09324790726
manishmuntazir@gmail.com
http://www.onlinehindijournal.blogspot.com/ http://kmagrawalcollege.org/
jab desh ka naunihal sudharega to desh apane ap sudhar jyega. vrsho pahle bachcho ko ma ke bad dada dadi nana nani ke hawale kar diya jata tha jo apane anubhav aur achchha banane ki kissa kahani bata kar baudhik vikash karte the. ab ham sirf t v aur school ke bharose me sudhar lana chahte hai. t v show sirf aslilata unsensard karyakram bigadne ka kam jarur karti hai.kachara input hoga to kachara hi output hoga.sarkare to bane rahane ke chhakkar me chup baithi rahegi.