Category: चुनी हुई प्रविष्ठियां
ये शिक्षक
सच ही कहा है गुरू बिन ज्ञान नहीं, गुरू नहीं जब जीवन में मिलते भगवान नहीं आज शिक्षक दिवस पर उन सभी गुरूओं को मेरा नमन जिन्होने निःस्वार्थ भाव से नन्हें, सुकोमल कच्ची मिट्टी से बने बच्चों का मार्ग दर्शन किया और उन्हें सही मार्ग दिखलाया… मगर मेरी यह कविता उन शिक्षकों के लिये है जो स्वार्थवश अपने कर्तव्य भूल…
लिखाई में प्रचलित १० ग़लतियाँ..
आज चिट्ठाभ्रमण करते समय एक बहुत ही काम का लेख नजर आया. उसका आरंभ इस तरह है: लिखाई में प्रचलित १० ग़लतियाँ….जिनके प्रयोग से आप बेवकूफ़ दिखते हैं पहले बता दूँ कि यहाँ मैं टाइप में भूल से हो जाने वाली अशुद्धियों (जिन्हेंअंग्रेज़ी में ‘टाइपो’ कहते हैं) की बात नहीं कर रहा हूँ। ऐसी गलतियाँ तो सबसे होती हैं (हालाँकि…
संत कबीर वाणी:चलें बगुले की चाल हंस कहलाये
चाल बकुल की चलत हैं, बहुरि कहावैं हंस ते मुक्ता कैसे चुंगे, पडे काल के फंस संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग चाल तो बगुले की चलते हैं और अपने आपको हंस कहलाते हैं, भला ज्ञान के मोती कैसे चुन सकते हैं? वह तो काल के फंदे में ही फंसे रह जायेंगे। जो छल-कपट में…
अमर शहीदों के नाम
साठ साल के इस बूढे भारत में, क्या लौटी फ़िर से जवानी देखो, आजादी की खातिर मर-मिटे जो, क्या फ़िर सुनी उनकी कहा्नी देखो… कहाँ गये वो लोग जिन्होने, आजादी का सोपान किया था, लगा बैठे थे जान की बाजी, आजाद हिन्दुस्तान किया था… मेरे भारत आजाद का कैसा, बना हुआ ये हाल तो देखो, अमीर बना है और अमीर,…
हमारे अज्ञान की जड़े गहरी हैं
समाज और राज्य की अलग-अलग भूमिका और इन दोनों के आपसी संबंध हमेशा दार्शनिक बहस का मुद्दा रहे हैं. इस विषय पर पश्चिमी चिंतन बहुत सीमित अनुभूतियों और अवधारणाओं पर टिका हुआ दिखता है. पश्चिमी दर्शन के मूल में या तो किसी समाज के किसी दूसरे द्वारा जीत लिये जाने का कोई ऐतिहासिक तथ्य होता है या यूरोप में प्राचीनकाल…
होता है जिस समाज में आदर खलनायक का
रचना सिंह ने कल अपने चिट्ठे सामाजिक अपराधों पर एक मार्मिक कविता आज के ताज़ा समाचार, नापुंसको की बस्ती से पोस्ट की जिसकी आखिरी पंक्तियां है: “आज के लिये इतना ही और सुनने की ताकत नहीं” सवाल यह है कि क्यों समाज के बाकी लोग नपुंसक हैं. इसका उत्तर उन्होंने नहीं दिया है, लेकिन मै उत्तर काव्य रूप में दे…
आपको सादर नमन
एक मित्र के द्वारा रचित एक मोती उनकी अनुमति से प्रस्तुत है. जिस तरह के व्यक्ति को यह कविता समर्पित है, यदि दुनियां में इस तरह के लोगों की संख्या कुछ और बढ पाती तो तो यह संसार कुछ और ही होता !! आपके कहे शब्द,बेहद भावुक कर गये,अपनी ही भावुकता,अपनी सी ना लगी,क्या मै भी इतना भावुक हो सकता…
खोमचा
सालों से मेरी आदत है कि सारा घर किताबों से भर लिया है. जहां देखों वहीं किताबें. ऐसा करने का सुझाव मेरे एक स्कूली अध्यापक ने पहली बार दिया था. इससे मेरे पठन पर गहरा असर हुआ है. सौभाग्य से हमारी अर्धांगिनी भी पुस्तक प्रेमी निकली अत: किताबों के इन टीलों पर टोका टाकी…
ब्लॉग सामग्री चोरी होने पर क्या करें?
आजकल चिट्ठाजगत मे चोरी की घटनाएं काफी बढ गयी है। अभी पिछले दिनो एक अंग्रेजी ब्लॉगर के चिट्ठों को जैसा का तैसा एक नए ब्लॉगर ने छाप दिया था, उसी तरह हमारे हिन्दी चिट्ठाकार के साथ भी ऐसी घटना घटी थी। हम सभी चिट्ठाकारों ने शोर मचाया तब जाकर रिडिफ़ ने वो ब्लॉग अपने यहाँ से हटाया। लेकिन कई कई…
सारथी चुनौतीपूर्ण उद्धरण 9
हर क्रिया की प्रतिक्रिया जरूर होती है. परिणाम जरूर दिखता है. कई बार देर से होती है अत: पहचानने में कठिनाई होती है की यह प्रतिक्रिया है, परिणाम है. पिछले कुछ हफ्तों से बहुत से स्तरीय हिन्दी चिट्ठाकर अपने स्तर से हट कर आपसी झगडे, अन्य चिट्ठाकारों की खामियां इत्यादि विषयों पर लिख रहे थे. बहुतों की चिंतन मनन की सारी ऊर्जा…