Category: भारत
अंग्रेज: लुटेरों को आदर न दें!
कुछ समय से कुछ छद्म भारतीयों ने एक नया गीत आलापना चालू कर दिया है — कि आज हम जो हैं उसे अंग्रेजों ने हमको दिया था. ये छद्म भारतीय लोग प्राचीन भारतीय समाज, संस्कृति, विज्ञान, एवं तकनीकी ज्ञान का तिरस्कार करके अंग्रेजों को भारत का मसीहा सिद्ध करने की कोशिश करते हैं. अंग्रेज शुद्ध लुटेरे थे. यूरोप की समृद्धि…
सरकार हमारी है या हम सरकार के खरीदे हैं??
जनतंत्र का मतलब यह है कि सरकार जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिये बनाई गई है. लेकिन पूर्ण जनतंत्र तभी स्थापित हो सकता है जब किसी भी जनतंत्र के सारे नियमकानून उस देश की जनता के द्वारा और जनता के लिये बनाये गये हों. विडंबना यह है कि १९४७ में तकनीकी तौर पर हम आजाद हो गये,…
राजनीति और आम जीवन!
जब देश आजाद हुआ था तब देश का भरणपालन अधिकतर आदर्शवादियों के हाथ में था. इस कारण जो देश २५०० साल से लुटतापिटता आया था उसे बहुत ही सावधानी से देश की विदेशनीति बनाई गई, आर्थिक नीति बनाई गई, हर चीज को उस तरह से नियंत्रण में रखा गया जैसे एक मां बडी समझदारी से पिताजी की सीमित आय से…
प्राचीन भारत में आर्थिक विषमता नहीं थी!
मेरे कल के आलेख एक झूठ जिसे हर कोई सच मानता है!! पर दिनेश जी ने टिपियाया: यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि विषमता इतनी अधिक नहीं थी। समाज में जब से संपत्ति का संचय आरंभ हुआ है तब से विषमता है। एक समय वह था जब दास हुआ करते थे। यह विषमता का उच्चतम शिखर था। दासों…
एक झूठ जिसे हर कोई सच मानता है!!
चित्र: केरल के राजाओं का सोने का एक सिक्का मेरे पिछले आलेख सोने की चिडिया भारत: सच या गप? में मैं ने प्राचीन भारतीय सिक्कों के आधार पर यह प्रस्ताव रखा था कि भारत एक समृद्ध देश था जिस कारण लगभग 3000 साल तक यह विदेशी व्यापारियों को आकर्षित करता रहा. मैं ने यह भी कहा था कि लोग इसे…
सोने की चिडिया भारत: सच या गप?
बचपन में बडे उत्साह से हम लोग गाते थे “मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती”. हमारे अध्यापक लोग बताते थे कि किसी जमाने में हिन्दुस्तान को “सोने की चिडिया” कहा जाता था. अंग्रेजों के राज (और सफल ब्रेनवाशिंग) के साथ साथ राष्ट्र के प्रति हमारा गर्व ऐसा गायब हुआ कि भारत के प्राचीन वैभव और संपन्नता के…
पुलीस स्टेशन का एक और चक्कर!!
केरल में अकसर पुलीस से मुलाकात होती रहती है: कभी हाईवे पर (जहां सघन जांच होती है) या पुलीस स्टेशन पर. आज पिताजी को खाना देकर अस्पताल से वापस आ रहा था कि पांच पुलीस वालों ने हाथ दिखाया. मैं समझ गया कि बेचारे बिन वाहन परेशान हो रहे हैं . वे लोग सुबह से सडक किनारे भीड-नियंत्रण कर रहे…
इधर कूँआ तो उधर खाई!!
प्रजातंत्र अपने आप में एक अच्छी चीज है लेकिन जहां विभिन्न राजनीतिक पार्टियां सीटों के लिये लडती हैं तो उनको तुष्टीकरण की गंदी नीति अपनानी पडती है. दर असल नायक को एक जज के समान होना चाहिये जो दूध का दूध और पानी का पानी कर दे, लेकिन जो वोटों के आधार पर उन्नत स्थान पर पहुंचता है वह ऐसा…
क्या सारा हिन्दुस्तान एक संडास है!!
कुछ साल पहले की बात है एक विदेशी पर्यटक से पूछा गया कि हिन्दुस्तान के बारे में आप की क्या राय है. उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि हिन्दुस्तान एक बडा संडास है. इस कथन का कारण पूछा तो उनका कहना था कि उनकी सारी भारत-यात्रा रलगाडी से हुई थी और रेलगाडी में सुबह खिडकी खोल कर बैठना एक मुश्किल कार्य…
ऐसा भी होता है!!
(एक मिनी पोस्ट): केरल का महात्मा गांधी विश्वविद्यालय हर बात में राजनैतिक दखल के कारण हिन्दुस्तान के सबसे ढीले ढाले विश्वविद्यालयों में से एक है. कल (जून 6) उन्होंने अखबार में निम्न खबर दी: “एम एससी की परीक्षा जून 10 को होगी. सामान्य परीक्षा फारम 10 जून तक, और लेट फीस के साथ 11 जून तक जमा की जा सकती…