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क्या हम कभी सुधरेंगे?

पापी पेट का चक्कर कुछ ऐसा चला कि चिट्ठाकारी करना भूल गया. लेकिन चिट्ठाकारी नहीं भूला. इस बीच हिन्दी शब्द संसाधक ने ऐसा चक्कर चलाया कि कुछ पूछिये मत. अब सब कुछ लगभग सामान्य दिखने लगा है. इन दिनों सारथी पर लिख नहीं रहा था, लेकिन चिट्ठों को पढता जरूर था. कई बार बडी कुंठा होती थी कि क्या इतिहास…

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Posted in भारत

राजनीति और आम जीवन!

जब देश आजाद हुआ था तब देश का भरणपालन अधिकतर आदर्शवादियों के हाथ में था. इस कारण जो देश २५०० साल से लुटतापिटता आया था उसे बहुत ही सावधानी से देश की विदेशनीति बनाई गई, आर्थिक नीति बनाई गई, हर चीज को उस तरह से नियंत्रण में रखा गया जैसे एक मां बडी समझदारी से पिताजी की सीमित आय से…

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एक बिजली, लाखों का नुक्सान!

सुनते हैं कि उत्तर भारत में इन दिनों गर्मी दिन प्रति दिन बढ रही है और कई जगह ४५ के ऊपर पहुंच गई है. प्रभु की दया से केरल में पिछले २ हफ्तों से जम कर पानी बरस रहा है. जम कर से मेरा मतलब है हर शाम एक घंटा बिना रुके. सालों पहले जब ग्वालियर से कोच्चि आकर बसा…

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बनारस का बुद्धिजीवी फरिश्ता!

मार्च के आखिरी हफ्ते का बडा इंतजार था, एक व्यक्ति से मिलने का जो अभी तक तो सिर्फ एक अमूर्त “नाम” था लेकिन जिसे मूर्त रूप में देखने की बडी कामना थी. इस घटना का एक पहलू …केरल में हुआ इक ब्लॉगर महामिलन ……(केरल यात्रा संस्मरण -८) में आ चुका है, लेकिन दूसरा पहलू विन्डोज ७ की तकनीकी समस्या के…

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Posted in विश्लेषण

संडास या मोबाईल फोन!

आज सुबह सुबह एक अंग्रेजी चिट्ठे पर एक विदेशी की टिप्पणी दिखी कि सन २०१० में हिन्दुस्तान में जितने संडास हैं उनसे अधिक मोबाईल फोन हैं. इस खबर पर कई लोगों ने काफी चुटकी ली एवं कई लोगों ने हंसी की तो मैं ने एकदम टिप्पणी की “क्या आप लोगों को लगता है कि हिन्दुस्तान में लोग जान बूझकर संडास…

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Posted in विश्लेषण

क्या एक भी हिंदी प्रोग्रामर नहीं है हिंदीप्रेमी?

सारथी के मित्रों ने नोट किया होगा कि पिछले दिनों मेरी चिट्ठावापसी के समय से मैं हिंदी में लिखते समय काफी संघर्ष कर रहा हूँ. दर असल नियमित रूप लिखने कि बड़ी इच्छा है लेकिन जब से संगणक पर विंडोज ७ का प्रयोग चालू कर दिया है तब से सारे के सारे यूनिकोड हिंदी औजार बेकार हो गए हैं. गूगल…

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Posted in परिचय

जालियांवाला बाग हत्याकांड!!

पिछले तीन हफ्तों से रोज सुबह ५ को दौड शुरू होती है और रात को ९ बजे खतम होती है. इस चक्कर में चिट्ठाकारी और अन्य सब कुछ पीछे रह जाता है. लेकिन कल जब बेटे के चिट्ठे पर पढ़ा कि कल जालियांवाला हत्याकांड का दिवस था तो मन एक दम से दर्द से भर गया. यह हत्याकांड ब्रिटिश बर्बरता…

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Posted in विश्लेषण

टेलिफोन विभाग को यह क्या हो गया?

मुझे अकसर टेलिफोन का पैसा चुकाने में देर हो जाती है और फाईन देना पड जाता है। लेकिन आज तो गजब हो गया। धर्मपत्नी ने याद दिलाया कि इस बार भी देर हो गई है। यहां विश्वविद्यालय में ही टेलिफोन विभाग का अच्छाखासा दफ्तर है लेकिन वे लोग सिर्फ 2 बजे तक पैसा लेते हैं। इतना ही नहीं, तारीख निकल…

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Posted in मार्गदर्शन

फलों से डर लगता है!

प्रभु की दया से हम सब लगभग सामान्य लोग हैं। किसी तरह की विकलांगता का अनुभव नहीं करते है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि समाज का एक बहुत बडा तबका जो पूर्ण रूप से सामान्य नहीं है उनकी बडी उपेक्षा होती है। मैं ने इस बात को पिछले तीन महीनों में अच्छी तरह महसूस किया है। तीन महीने…

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Posted in अविस्मरणीय

आज मरते मरते बचे!

मेरे मंझले साढू भाई की बिटिया की शादी तय करने के लिये आज सुबह दो कारों पर हम नौ जने आज सुबह लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा पर गये। एलप्पी में नाश्ते के लिये एक जानेमाने हॉटेल में उतरे और आर्डर दिया। हम लोग इंतजार कर रहे थे कि एकदम से खाकी वस्त्रधारी दस बारह लोग खिडकी के बाहर दौडते…

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