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अंग्रेज: लुटेरों को आदर न दें!
कुछ समय से कुछ छद्म भारतीयों ने एक नया गीत आलापना चालू कर दिया है — कि आज हम जो हैं उसे अंग्रेजों ने हमको दिया था. ये छद्म भारतीय लोग प्राचीन भारतीय समाज, संस्कृति, विज्ञान, एवं तकनीकी ज्ञान का तिरस्कार करके अंग्रेजों को भारत का मसीहा सिद्ध करने की कोशिश करते हैं. अंग्रेज शुद्ध लुटेरे थे. यूरोप की समृद्धि…
भारतीय हो, भारतीय बनो!
कई सौ सालों की गुलामी ने हम में से कईयों की सोचने की शक्ति छीन ली है. अब भाषा की बात ही ले लें: हम अंग्रेजों से तो कई दशाब्दियों पहले ही आजाद हो गये लेकिन हमारी राजभाषा अभी भी अंग्रेजी की गुलामी से आजाद नहीं हुई है. कल ही की बात है एक वाहन पर लिखा हुआ दिख गया:…
क्या भिखारी भी मानव हैं ?? (Are Beggars Also Human??)
मेरे घर के पास हाईवे पर एक बहुत ही व्यस्त चौराहा है जहां हरीबत्ती के लिये अकसर 3 मिनिट रुकना पडता है. वहां एक स्थाई भिखारिन है जिसको मैं पिछले दस साल से पैसा देता आया हूँ. मुझे देखते ही उसकी बांछें ऎसी खिल जाती हैं जैसे कि मुझ से भीख पाना उसका जन्मसिद्ध हक है. चूंकि मेरे दादाजी हमेशा…
क्या है यह स्लट-वॉक ??? (What Is This Slut-walk?)
इन दिनों स्लट-वॉक की बडी चर्चा हो रही है. दर असल स्लट-वॉक पश्चिमी सभ्यता का एक नंगा नाच है जिसे हिन्दुस्तान में आयातित किया जा रहा है. यह 3 अप्रेल 2011 को कनाडा से चालू हुआ था जहां प्रथम स्लट-वॉक में काफी सारी जवान स्त्रियों ने एक दम अर्धनग्न वस्त्रों में स्त्रियों के यौनिक शोषण का विरोध किया था. धन…
White Tiger: A Dissenting View
The White Tiger is a 320+ page English novel by Arvind Adiga which was given the 2008 Man Booker prize. He was given an award close to Rs. 4,000,000 for this novel. Going by the amount he pocketed, and the praises that I saw (a masterpiece, Compelling, Delightfully mordant wit, blazingly savage and brilliant), I remained under the impression that…
हिन्दुस्तानी हो, हिन्दुस्तानी बनो!
कई दशाब्दियों से रेलगाडी यात्रा मेरे लिये जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है. इन यात्राओं के दौरान कई खट्टेमीठे अनुभव हुए हैं, जिनमें मीठे अनुभव बहुत अधिक हैं. इसके साथ साथ कई विचित्र बाते देखने मिलती हैं जिनको देखकर अफसोस होता है कि लोग किस तरह से विरोधाभासों को पहचान नहीं पाते हैं. उदाहरण के लिये निम्न प्रस्ताव…
चिट्ठा एग्रीगेटर की कमी!
काफी अर्से पापी पेट की जरूरतों के पीछे भाग, चिट्ठाकारी को हटा कर रखने के बाद चिट्ठाकारी में लौटा तो एक बात बहुत खल गई कि कोई भी एग्रीगेटर काम नहीं कर रहा है. ऐसा लगा कि मैं अनाथ हो गया हूं. दर असल कुछ साल से यह नियम बन गया था कि रोज सुबह चिट्ठाजगत पर एक नजर डालने…
नया साल, नये सपने??
जनवरी एक को हमारे प्रार्थना समाज में सर्वदेशीय उन्नति एवं प्रगति के लिये हम एकत्रित हुए तो एक सज्जन ने एक दिलचस्प बात कही. वे बोले कि हर नये साल वे कुछ न कुछ निर्णय जरूर लेते हैं, लेकिन कभी भी उन निर्णयों का पालन नहीं कर पाते. इस कारण उन्होंने तय किया है कि इस साल वे किसी भी…
सरकार हमारी है या हम सरकार के खरीदे हैं??
जनतंत्र का मतलब यह है कि सरकार जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिये बनाई गई है. लेकिन पूर्ण जनतंत्र तभी स्थापित हो सकता है जब किसी भी जनतंत्र के सारे नियमकानून उस देश की जनता के द्वारा और जनता के लिये बनाये गये हों. विडंबना यह है कि १९४७ में तकनीकी तौर पर हम आजाद हो गये,…
एक पति, एक सौ पत्नियां!
आज एक पत्रिका पढ रहा था तो एक बात बडी खटक गई. लेख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के बारे में था. लेखक का कहना था कि प्रधान-मंत्री से बडी उम्मीदें थीं, लेकिन वे यह नहीं कर पाये या वह नहीं कर पाये. पढ कर बडा विचित्र लगा. आप न वह प्रतियोगिता देखी होगी जिसमें आदमी को कमर तक एक बोरी…