हिन्दी चिट्ठों से चुने हुए कुछ उद्दरण. इन लेखों/कविताओं ने मुझे प्रेरणा दी, और मुझे उम्मीद है कि इन्हे पढ कर आप भी लभान्वित होंगे:
*** छ्त्तीसगढ़ के किसी शहर में एक न्यायाधिश महोदय को टहलते वक्त किसी आवारा घोड़े ने काट लिया. इससे नाराज माननीय न्यायाधिश महोदय ने शहर के सभी आवारा घोड़ों को पकड़ने का आदेश दे दिया. नगर निगम के कर्मचारी भाग भाग कर घोड़ों को पकड़ने लगे. आनन फानन में इनाम भी घोषित कर दिया गया: प्रति घोड़ा पकड़वाई: रुपये ३०० मात्र. ७ घोड़े पकड़े जा कर कांजी हाऊस (नगर निगम द्वारा संचालित आवारा पशुओं की जेल) में बंद हैं. [पूरा लेख पढें …]
*** गांधी जी की महानता को मै कम नही कह रहा हूँ, पर हमारे सामने जिस तरह से तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है कि आज़ादी केवल गान्धी और काग्रेस के संर्घषों का परिणाम है, वह सरासर गलत है, शिक्षा प्रणाली मे मे गांधी को महान तो चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे महान क्रन्तिकारियों को शैतान(आतंकवादी) की संज्ञा दी जाती है। शिवाजी तक का अपमान किया जाता है। यहां तक कि सिक्ख धर्म गुरूओं को भी बक्सा नही जा रहा है, जो कि सिक्खों के लिये भगवान तुल्य है।रोमिला थापर जैसे बाम पंथी आपने सर्मथन की कीमत अर्नगल इतिहास पढा कर वसूल कर रहे है। [पूरा लेख पढें …]
*** जाओ
तुम भी चले जाओ।
मत छुओ मुझे
और ना ही मेरे नजदीक आओ।
कहीं मेरे अन्दर का अन्धकार
तुम्हे काला ना कर दे।
कहीं मेरे मन की तपिश
तुम्हारे ह्रदय मे भी
धधकती हुई ज्वाला ना भर दे। [पूरी कविता पढें …]
*** धर्म और लोकतंत्र एक साथ नहीं चल सकते अगर दोनों तरफ़ से बराबर की सहिष्णुता न हो. यहाँ दोनों ओर से सीमाएँ टूटती दिख रही हैं. भारतीय जटिलता की परंपरा का निर्वाह यहाँ भी हो रहा है क्योंकि कई बार यही पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि धर्म कौन चला रहा है और लोकतंत्र कौन. [पूरा लेख पढें …]
*** मानवाधिकारवादीओं को भी मारे गये गेंगस्टर,नक्सली तथा आतंकवादी के मानवाधिकार तो नजर आते है, मगर उनकि नजर में मारे जाते पुलिसकर्मी, सेना के जवान व आम नागरिक शायद ही मानव की श्रेणी में आते होंगे. वास्तविकता यह है की अपराधियों ने नेता, पुलिस, पत्रकार, कानून के जानकारो के साथ-साथ ऐसे संगठनो को भी साध लिया है, जो वक्त-बेवक्त उनके लिए ढ़ाल का कार्य करते है. [पूरा लेख पढें …]
*** दो दस और बारह साल के बच्चों के पेट पर मैं चोर हूँ लिखा गया और उनके कपडे उतार कर सड़कों पर घुमाया जा रहा था । पर उन बच्चों को किसी ने भी बचाने की कोशिश नही की। हां कुछ लोग और शायद रिपोर्टर्स उन बच्चों की फोटो खीचते हुए दिख रहे थे पर क्या सिर्फ फोटो खींच कर अखबार या टी.वी.पर दिखाना ही उनका मकसद होता है? [पूरा लेख पढें …]
[उद्दरणों की मौलिकता को सुरक्षित रखने की इच्छा के कारण उनकी भाषा की गलतियों के सम्पादन की कोशिश नहीं की गई है]
“कहीं मेरे मन की तपिशanalysis in hindi, hindi blogs, current hindi blogs, weblogs, हिन्दी लेख, चिट्ठे, हिन्दी जालस्थल
तुम्हारे ह्रदय मे भी”
यह मेरे कविता के बीच मे कहॉ से आ गया…???
@विकास
प्रिय विकास, तकनीकी गलती के कारण कुछ शब्द जुड गये थे. आईन्दा दो बार जांच कर ही छापूंगा!!
सारथी जी (फिलिप्जी) आपकी रचना पसंद आयी-
दीपक भारतदीप