पिछले दो दिन काफी सारे चिट्ठे पढे. उन में से कई लेखों ने मुझे बहुत प्रेरणा दी, और मुझे उम्मीद है कि इन्हे पढ कर आप भी लभान्वित होंगे. काश मेरी कलम भी इतनी शक्तिशाली होती:
*** पर नींद चौपट करने को क्या उपद्रव ही होना जरूरी है? रात के पौने तीन बजे फिर नींद खुल गयी. पड़ोस में झोपड़ीनुमा मकान में कच्ची घानी का तेल पिराई का प्लांट है. उस भाई ने आज रात में ही तेल पिराई शुरू कर दी है. हवा का रुख ऐसा है कि नाक में तेल पिराई की गन्ध नें नींद खोल दी है. [पूरा लेख पढें …]
*** पहले तो ये समझिये कि चन्द्रप्रकाश ने कोई महान कलाकृति नहीं बनाई है.. जो बनाया है वह पतनशील ही है.. कुछ लोग उसे कुत्सित मानसिकता कह रहे हैं.. और ऐसा कहने के लिये मैं उनका विरोध नहीं कर सकता.. हमारे यहाँ वस्त्रहीनता और सम्भोग आदि विषयों के चित्रण के प्रति एक उदार सोच रही है.. जिसके पीछे एक निश्चित दार्शनिक-आध्यात्मिक आधार भी होता था..मगर उसकी नीयत किसी विद्रूप या उपहास की नहीं होती थी.. श्री चन्द्रमोहन ने देवताओ की तस्वीर उनकी आराधना हेतु नहीं बनाई.. जो कुछ भी मैं पढ़ रहा हूँ उसके बारे में वो कोई गुएरनिका तो नहीं प्रतीत हो रही .. उन्होने गुजरात के दंगों की विभीषिका पर नहीं बनाया है ये चित्र.. किसानों की आत्महत्याओं पर भी नहीं.. ग्लोबल वार्मिंग और आगामी पानी के संकट पर भी नहीं [पूरा लेख पढें …]
*** भारत एक ऐसे आधारभूत ढांचे पर टिका है जहां द्विदलीय पध्दति यहां की जनता को कभी पसंद नहीं आएगी। यानी यहां की जनता बहुदलीय पार्टी में ही विश्वास रखती है। क्योंकि जनता दो दल में बंधना नही चाहती है। क्योंकि वह समय आने पर अपने विकल्पों का खुलकर प्रयोग करना चाहती है। [पूरा लेख पढें …]
*** इन अम्मा और बापों के खेल में सहना आम आदमी को ही है. कभी धर्म के नाम पर ज़िन्दा जलाने का खेल, कभी जाति के नाम पर गोलियों से भूनने का खेल.राजनीति के इस शतरंज के खेल में मरना हम गधे घोड़ो को ही है. इस खेल में चाहे राजा हो या रानी उन्हें सिर्फ मात ही मिलती है. [पूरा लेख पढें …]
*** हम आइसक्रीम खाकर कागज के खाली डिब्बों, खाने-पीने की चीजों के प्लास्टिक पैक, पेपर नेपकीन व चाय-कॉफी के पेपर कप को जिस लापरवाही से फेंकते हैं देखकर शर्म आती है। गली के किसी भी मोड़ को पेशाबघर तो खुले मैदान को शौचालय बनाने के लिए तैयार रहने वाले हम भारतीय वातानुकूलित रेस्ट रूम व टॉयलेट को भी अपनी निशानी जरूर दे जाते हैं। उन्हें अगर हम गंदा न कर सके तो उनके दरवाजे, लिफ्ट के अंदर की दीवारों पर अपनी कुंठित मानसिकता को खुलकर प्रदर्शित करते हुए वातावरण को दूषित अवश्य कर देते हैं। इन स्थानों पर चित्रकारी के तमाम प्रयोग किए जाते हैं। [पूरा लेख पढें …]
[उद्दरणों की मौलिकता को सुरक्षित रखने की इच्छा के कारण उनकी भाषा की गलतियों के सम्पादन की कोशिश नहीं की गई है]